लगभग कुछ माह पूर्व भारतीय योग संस्थान के राजोरी गार्डन केंद्र के वार्षिक कार्यक्रम में जाने का अवसर मिला। वहां जा कर पता लगा कि योगाभ्यास से किस प्रकार शक्तिशाली व्यक्तित्व का विकास होता है। यही नहीं, अधिकतर समस्याएं, जो आज के समय में कम आयु में ही व्यक्ति को घेर लेती हैं, दूर रखी जा सकती हैं। उच्च रक्तचाप, हृदय संबंधी रोग, मधुमेह, दमा मानसिक तनाव आदि अधिकतर समस्याओं को दूर रख कर एक स्वस्थ्य जीवन जिया जा सकता है। किस प्रकार यह संभव है? और क्या है योग साधना? ये दो प्रश्न मेरे जेहन में उभरे। दोनों का ही उत्तर मैंने खोजने का प्रयत्न किया है।
योग के दर्शन में न जा कर सामान्य ज्ञान के लिए योगाभ्यास व्यक्ति को यह सिखाता है कि शरीर व मन को किस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में रखा जाए। अधिकतर समस्याओं का जन्म तभी होता है, जब हम अपने शरीर और मन को इस अवस्था से दूर ले जाते हैं कि दोनों ही उनको स्वीकार नहीं करते। देखा जाए, तो योग का आरंभ उस समय हुआ जब मनुष्य ने कृषि अवस्था में प्रवेश किया। लगभग ऽ००० वर्ष पहले भारत में जब नदियों के किनारे स्थायी निवास प्रारंभ हुए, तो कुछ व्यक्तियों ने प्राकृतिक नियमों तथा उससे संबंधी बातों की खोज प्रारंभ की। ये व्यक्ति, जो ऋषि-मुनि कहलाए, आत्म प्रयोगों के आधार पर अनेक समाधानों पर पहुंचे। इसके आधार पर इन्होंने अनेक नियमों और अभ्यासों को बनाया। व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबंधित नियम व अभ्यास ही योग विज्ञान बना।
आखिर कैसे योगाभ्यास अधिकतर मानसिक और शारीरिक समस्याओं को दूर करता है। इसके कई कारण हैं। एक तो योगाभ्यास से शरीर की प्राकृतिक लोच बनी रहती है। अधिकतर समस्याएं, मुख्यतः जोड़ों की, शरीर में दृढ़ता के कारण पैदा होती है। यह इसी प्रकार है कि दरवाजा यदि खुलता रहे, तो सहज रहता है। परंतु अधिक समय प्रयोग न रहने पर जम जाता है।
दूसरे, यह शरीर के विभिन्न अंगों में तालमेल स्थापित करने का अभ्यास कराता है। इससे शरीर में अनुशासन आता है। और इच्छानुसार विभिन्न अंगों को नियंत्रित किया जा सकता है।
तीसरे, यह व्यक्ति में प्रत्येक प्रकार की क्षमता को बढ़ाता है। योग्याभ्यास से हडि्डयों में लचक मांसपेशियों में संतुलन, रक्त का सुचारु संचार और विभिन्न गं्रथियों के उचित स्राव के कारण तनाव रहित जीवन संभव होता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है और व्यक्ति अधिक व अच्छा काम कर सकता है।
आज के जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति औरों से एक कदम आगे रहे। यह तभी संभव है, जब वह योगाभ्यास से शारीरिक तथा मानसिक क्षमता को अधिकतम करे।
योग के दर्शन में न जा कर सामान्य ज्ञान के लिए योगाभ्यास व्यक्ति को यह सिखाता है कि शरीर व मन को किस प्रकार प्राकृतिक अवस्था में रखा जाए। अधिकतर समस्याओं का जन्म तभी होता है, जब हम अपने शरीर और मन को इस अवस्था से दूर ले जाते हैं कि दोनों ही उनको स्वीकार नहीं करते। देखा जाए, तो योग का आरंभ उस समय हुआ जब मनुष्य ने कृषि अवस्था में प्रवेश किया। लगभग ऽ००० वर्ष पहले भारत में जब नदियों के किनारे स्थायी निवास प्रारंभ हुए, तो कुछ व्यक्तियों ने प्राकृतिक नियमों तथा उससे संबंधी बातों की खोज प्रारंभ की। ये व्यक्ति, जो ऋषि-मुनि कहलाए, आत्म प्रयोगों के आधार पर अनेक समाधानों पर पहुंचे। इसके आधार पर इन्होंने अनेक नियमों और अभ्यासों को बनाया। व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबंधित नियम व अभ्यास ही योग विज्ञान बना।
आखिर कैसे योगाभ्यास अधिकतर मानसिक और शारीरिक समस्याओं को दूर करता है। इसके कई कारण हैं। एक तो योगाभ्यास से शरीर की प्राकृतिक लोच बनी रहती है। अधिकतर समस्याएं, मुख्यतः जोड़ों की, शरीर में दृढ़ता के कारण पैदा होती है। यह इसी प्रकार है कि दरवाजा यदि खुलता रहे, तो सहज रहता है। परंतु अधिक समय प्रयोग न रहने पर जम जाता है।
दूसरे, यह शरीर के विभिन्न अंगों में तालमेल स्थापित करने का अभ्यास कराता है। इससे शरीर में अनुशासन आता है। और इच्छानुसार विभिन्न अंगों को नियंत्रित किया जा सकता है।
तीसरे, यह व्यक्ति में प्रत्येक प्रकार की क्षमता को बढ़ाता है। योग्याभ्यास से हडि्डयों में लचक मांसपेशियों में संतुलन, रक्त का सुचारु संचार और विभिन्न गं्रथियों के उचित स्राव के कारण तनाव रहित जीवन संभव होता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है और व्यक्ति अधिक व अच्छा काम कर सकता है।
आज के जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति औरों से एक कदम आगे रहे। यह तभी संभव है, जब वह योगाभ्यास से शारीरिक तथा मानसिक क्षमता को अधिकतम करे।
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