घटना काफी समय पहले की है। लगभग पांच वर्ष पहले की। सर्दी के मौसम में धुंध एक समस्या बन जाती है, मुख्यतः हवाई जहाजों की उड़ान में। एक रात दस बजे जेट एअरलाइंस की यात्रा का समय हो गया था। तभी धुंध बननी प्रारंभ हो गई। जेट के कर्मचारियों ने जल्दी-जल्दी यात्रियों को प्लेन में भेजा और सामान चढ़ाया। प्रयत्न यह था कि धुंध के अधिक होने से पहले टेकअप हो जाए। परंतु धुंध एकदम से बढ़ गई और प्लेन को उड़ने की इजाजत नहीं मिली। प्लेन टेक्सी कर चुका था और उड़ने को तैयार था। उसको वापस लाना भी एक कठिन काम था। परंतु जेट एअरवेज के कर्मचारियों ने स्थिति को बड़ी कुशलता के साथ संभाला। इस बात का पूरा ख्याल रखा गया कि यात्रियों को किसी तरह की असुविधा न हो। यात्रियों को पेय पदार्थ सर्व किए गए। लॉबी में पहुंचते ही उनको टिकट शीट और होटल के वाउचर दे दिए गए। बाहर धुंध अधिक थी और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। कर्मचारियों ने ह्यूमन चेन बनाकर यात्रियों को बस तक गाइड किया। होटल पहुंचने पर जेट के कर्मचारी यात्रियों की सहायता के लिए मौजूद थे। अगले दिन यात्रियों को एअरपोर्ट पहुंचाकर मुंबई के प्लेन में बैठा दिया गया। प्रत्येक यात्री जेट एअरलाइंस के कर्मचारियों की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न था और सबने तय किया कि भविष्य में वह केवल जेट से ही यात्रा किया करेंगे।
उसी रात इंडियन एअरलाइंस का प्लेन 7 बजे मुंबई जाने वाला था । यात्री समय पर एअरपोर्ट पहुंच गए, परंतु प्लेन लेट था। आखिर यात्री नौ बजे प्लेन में बैठ गए, पर जहाज को उड़ङ्गने की इजाजत नहीं मिली। यात्री जब लॉबी में आए, तो वहां पूरी तरह अराजकता थी। किसी को कुछ पता नहीं था कि क्या करना है। यात्री एक काउंटर से दूसरे काउंटर भटकते रहे। टिकट शीट लेने में भी छीना झपटी हो रही थी। न होटल का प्रबंध, न बस का और न ही यह पता कि अगली उड़ान कब जाएगी। मेरा एक मित्र उस फ्लाइट पर था और वह आधी रात में किसी तरह कंपनी के गेस्ट हाउस पहुंचा। अगले दिन शाम तक उसको मुंबई की फ्लाइट मिली। उसने तय किया कि वह कभी भी इंडियन एअर लाइंस से यात्रा नहीं करेगा।
कोई शक नहीं है कि दस वर्ष में जेट एअरवेज देश की सर्वप्रथम एअरलाइंस बन गई है। यह कमाल है, उनमें काम करने वाले कर्मचारियों का। मैंने पता लगाने का प्रयत्न किया कि जेट की कार्यक्षमता और यात्रियों कोअधिकतर सुविधा पहुंचाने के प्रयास के पीछे क्या था?
जेट में कर्मचारियों में यह भावना भरी जाती है कि उनको अपनी कंपनी को शिखर पर पहुंचाना है। इसके लिए टीम वर्क पर अधिकतम जोर दिया जाता है और टीम नेता को पूरे अधिकार दिए जाते हैं। चूंकि मौके पर टीम लीडर ही उपस्थित होता है इसलिए उसको ही यह तय करना होता है कि इस संकट की घड़ी में क्या किया जाए। उसको किसी से पूछने की जरूरत नहीं होती। जब एअरपोर्ट पर यह सब हंगामा हो रहा था, तो जेट के उच्च अधिकारियों को कुछ पता नहीं था। जब सब ठीक हो गया, तो उनको अगले दिन सुबह बता दिया गया कि संकट था और उसको किस तरह से संभाला गया। प्रत्येक को शाबाशी मिली।
इंडियन एअरलाइंस में ऐसा कुछ नहीं है, प्रत्येक छोटी सी बात के लिए उच्च अधिकारियों से पूछा जाता है। उसकी आज्ञा का इंतजार किया जाता है। इससे निर्णय लेने में देर होती है। मौके पर उपस्थित न होने के कारण उन्हें पता ही नहीं होता कि मामला कितना गंभीर है। यात्रियों की परेशानियों को वे महसूस ही नहीं कर पाते। परिणाम यह होता है कि संगठन के प्रति लोगों का विश्वास कम हो जाता है। ऐसा ही उस रात हुआ, जिसका परिणाम यह हुआ कि जेट को यात्रियों का विश्वास प्राप्त हुआ और इंडियन एअर लाइंस को नहीं। आज के समय में सफलता अधिकार के कारण नहीं, बल्कि कार्य के कारण मिलती है। जो इसे समझ लेते हैं, सफलता के मार्ग पर बढ़ते रहते हैं।
उसी रात इंडियन एअरलाइंस का प्लेन 7 बजे मुंबई जाने वाला था । यात्री समय पर एअरपोर्ट पहुंच गए, परंतु प्लेन लेट था। आखिर यात्री नौ बजे प्लेन में बैठ गए, पर जहाज को उड़ङ्गने की इजाजत नहीं मिली। यात्री जब लॉबी में आए, तो वहां पूरी तरह अराजकता थी। किसी को कुछ पता नहीं था कि क्या करना है। यात्री एक काउंटर से दूसरे काउंटर भटकते रहे। टिकट शीट लेने में भी छीना झपटी हो रही थी। न होटल का प्रबंध, न बस का और न ही यह पता कि अगली उड़ान कब जाएगी। मेरा एक मित्र उस फ्लाइट पर था और वह आधी रात में किसी तरह कंपनी के गेस्ट हाउस पहुंचा। अगले दिन शाम तक उसको मुंबई की फ्लाइट मिली। उसने तय किया कि वह कभी भी इंडियन एअर लाइंस से यात्रा नहीं करेगा।
कोई शक नहीं है कि दस वर्ष में जेट एअरवेज देश की सर्वप्रथम एअरलाइंस बन गई है। यह कमाल है, उनमें काम करने वाले कर्मचारियों का। मैंने पता लगाने का प्रयत्न किया कि जेट की कार्यक्षमता और यात्रियों कोअधिकतर सुविधा पहुंचाने के प्रयास के पीछे क्या था?
जेट में कर्मचारियों में यह भावना भरी जाती है कि उनको अपनी कंपनी को शिखर पर पहुंचाना है। इसके लिए टीम वर्क पर अधिकतम जोर दिया जाता है और टीम नेता को पूरे अधिकार दिए जाते हैं। चूंकि मौके पर टीम लीडर ही उपस्थित होता है इसलिए उसको ही यह तय करना होता है कि इस संकट की घड़ी में क्या किया जाए। उसको किसी से पूछने की जरूरत नहीं होती। जब एअरपोर्ट पर यह सब हंगामा हो रहा था, तो जेट के उच्च अधिकारियों को कुछ पता नहीं था। जब सब ठीक हो गया, तो उनको अगले दिन सुबह बता दिया गया कि संकट था और उसको किस तरह से संभाला गया। प्रत्येक को शाबाशी मिली।
इंडियन एअरलाइंस में ऐसा कुछ नहीं है, प्रत्येक छोटी सी बात के लिए उच्च अधिकारियों से पूछा जाता है। उसकी आज्ञा का इंतजार किया जाता है। इससे निर्णय लेने में देर होती है। मौके पर उपस्थित न होने के कारण उन्हें पता ही नहीं होता कि मामला कितना गंभीर है। यात्रियों की परेशानियों को वे महसूस ही नहीं कर पाते। परिणाम यह होता है कि संगठन के प्रति लोगों का विश्वास कम हो जाता है। ऐसा ही उस रात हुआ, जिसका परिणाम यह हुआ कि जेट को यात्रियों का विश्वास प्राप्त हुआ और इंडियन एअर लाइंस को नहीं। आज के समय में सफलता अधिकार के कारण नहीं, बल्कि कार्य के कारण मिलती है। जो इसे समझ लेते हैं, सफलता के मार्ग पर बढ़ते रहते हैं।
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