06 जनवरी 2012

आत्मसम्मान

उस समय मैं दिल्ली के एक कॉलेज में पढ़ाता था। एक दिन सुबह एक मित्र अपने यहां काम करने वाली माई के बेटे राज को लेकर आए। उसके नंबर बहुत अच्छे तो नहीं थे, परंतु वह आगे पढ़ना चाहता था। साथ ही उसको वित्तीय सहायता की भी आवश्यकता थी। लड़के की आवश्यकता और एक गरीब परिवार की सहायता के उद्‌देश्य से मैंने न केवल उस लड़के को बीए में दाखिला दिया, बल्कि उसके लिए आर्थिक सहायता का भी प्रबंध कर दिया। कुछ दिनों के बाद मुझे वह लड़का एक लड़की के साथ रेस्तरां में बैठा हुआ दिखा। तीन साल में वह पढ़ने में कम और अन्य बातों में अधिक समय व पैसा लगाने लगा था। उसने किसी तरह बीए तो पास कर लिया परंतु आज 30 साल बाद वह एक सरकारी दफ्तर में क्लर्क है।

कुछ ही समय बाद मैं टाइम्स ऑफ इंडिया की मैगजीन में संपादन करने लगा। एक दिन दफ्तर में एक लड़का मामूली से कपड़े पहने आया। वह एक सामान्य परिवार का था और दिल्ली के कॉलेज में पढ़ना चाहता था। उसकी भी वही समस्या थी। दाखिला और आर्थिक सहायता। परंतु राज और मानस में एक अंतर था। मानस स्कॉलरशिप और अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता नहीं चाहता था। वह ट्‌यूशन करना चाहता था, जिससे वह जो भी धन प्राप्त करे, वह उसकी मेहनत से कमाया हुआ हो। मानस के लिए भी मैंने दाखिले और ट्‌यूशन की व्यवस्था कर दी। मानस ने सदैव स्वयं को संतुलित रखा। उसने कठिन मेहनत की और सिविल सर्विसेज में अच्छे अंक लाया। आज वह आईएएस है तथा दिल्ली में जॉइंट सेक्रेटरी है।

क्या कारण है कि दो लड़कों में से एक निम्न स्तर पर रह गया परंतु दूसरा सफलता की ऊंचाइयों को पार करता चला गया। दोनों में आत्मसम्मान का फर्क है। राज में आत्मसम्मान नहीं था, जबकि मानस में यह भरपूर था। राज ने पैसे को लापरवाही से गंवाया और मानस ने इसका प्रयोग अपनी स्किल्स को बेहतर करने में लगाया, यदि आप सफल व्यक्तियों केजीवन का अध्ययन करें, तो इस अंतर को अवश्य पहचान सकते हैं।

कैसे होते हैं आत्मसम्मानी? कई बातों से आप इसको पहचान सकते हैं। पहला, वे आशावादी होते हैं, कभी भी उत्तरदायित्व से नहीं भागते। गांधी जी का ही उदारहण लें। अधिकतर लोग मानते थे कि अंग्रेजी राज्य कभी समाप्त नहीं हो सकता। गांधी जी ने विश्वास दिलाया कि अंग्रेजों को भारत छोड़ना होगा। उन्होंने अपना पूरा उत्तरदायित्व भी निभाया। जिन लोगों में आत्मसम्मान की कमी होती है। वे दूसरों की आलोचना ही करते रहते हैं और बताते रहते हैं कि काम क्यों नहीं हो पा रहा है। वे काम के बजाए गप्पबाजी में ज्यादा समय गुजारते हैं।

दूसरे, मानस जैसे व्यक्तियों में आत्मविश्वास होता है और कुछ कर गुजरने का जुनून। वे दूसरे व्यक्तियों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उनके आत्मसम्मान की इज्जत करते हैं। राज जैसे व्यक्ति बातें ज्यादा करते हैं और अपने बारे में ही बोलते रहते हैं। दूसरों को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। इससे उनकी दूसरों से अनबन बनी रहती है और कोई उनका विश्वास नहीं करता। मानस जैसे व्यक्तियों को लोग आदर से देखते हैं।

समय है आत्मसम्मानी बनने का।