'यह सब क्या है? मैं आप पर नाराज हो रहा हूं जबकि आप अपने हाथ को देख रहे हैं और मुसकरा रहे हैं,' एक नए फौजी अफसर ने गुस्से से सूबेदार मेजर की ओर देखते हुए कहा।
'कुछ नहीं सर। मैं आपकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहा हूं। आप जो भी कह रहे हैं, सही है।' सूबेदार मेजर ने जवाब दिया।
'मैं देखता हूं क्या माजरा है,' लेफ्टिनेंट ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा। वह सूबेदार मेजर के पास गया और ऊपर से नीचे तक उसे देखा। फिर चारों ओर देखा, परंतु वहां ऐसा कुछ नहीं था, जिसके कारण वह प्रसन्न होता। अचानक उसने देखा कि उसके बाएं हाथ पर कुछ लिखा हुआ है। पास जाकर पढ़ा, तो लिखा था, 'यह वक्त भी गुजर जाएगा'।
सूबेदार मेजर आर्मी में जूनियर कमिशंड ऑफिसर होता है। अंगरेजों ने इस श्रेणी को उस समय बनाया था, जब फौज में भारतीय अफसर नहीं होते थे। ऐसा अंगरेजी राज में सौ साल से अधिक रहा। जेसीओ फौज की रीढ़ की हड्डी बन गए क्योंकि ये अंगरेजी अफसरों और भारतीय जवानों के बीच एकमात्र कड़ी थे। आज भी इनका महत्व फौज में उतना ही है।
यह सूबेदार मेजर पिछले 20 सालों से सेवा में था। यह बात 80 के दशक की है। शांत और गंभीर जसवंत हर काम को बहुत जिम्मेदारी से करता था। अधिकतर यह उन नए अफसरों के साथ काम करता था, जिन्हें काम के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती थी और उन्हें जसवंत के गुणों का पता नहीं होता था। वे अकसर उसे काम करने का वह तरीका बताते, जो सही नहीं होता था। तब जसवंत उनको काम करने का ठीक तरीका बताता था। कुछ अफसर तो समझ जाते, परंतु अधिकतर भड़क जाते थे। जसवंत उनकी बात सुनता रहता और हाथ पर गुदी हुई सूक्ति को पढ़कर मुसकरा देता। उसने कभी अपना आपा नहीं खोया। जल्दी ही अफसर की समझ में आ जाता कि जसवंत किस मिट्टी का बना है और उसको काम की पूरी समझ है। जसवंत एक ऐसा उदाहरण है, जो बताता है कि अपने काम को ठीक तरीके से करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। समय की कद्र करनी चाहिए और बदलते समय का मिजाज पहचान चाहिए। व्यक्ति शांत रहकर जो प्राप्त कर सकता है, वह लड़-झगड़कर कभी नहीं। जो तुरंत लाभ हासिल करना चाहते हैं, वह शीघ्र ही परेशान हो जाते हैं क्योंकि अकसर मात खानी पड़ जाती है। यदि हम समय का सम्मान करें, तो शायद अच्छे नतीजे हासिल हो सकते हैं।
मेरा एक मित्र नौकरी के लिए आया और मैंने उसको अपने संपादक मित्र के पास भेज दिया। वह एक अच्छा पत्रकार था, परंतु संपादक शीघ्र कोई निर्णय लेने में असमर्थ था। मेरे मित्र को लगा कि वह जानबूझ कर देर कर रहा है। एक दिन उसके दफ्तर में जाकर कहने लगा कि आज मुझे बता दो 'हां या नहीं'।
संपादक ने मना कर दिया और कुछ महीनों तक मेरे मित्र को नौकरी नहीं मिली। संपादक ने मुझे बताया कि यदि वह केवल कुछ दिन और रुक जाता, तो उसको रखना लगभग तय हो चुका था। शांत रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि समय बदलता रहता है। ठीक ही कहा गया है, 'अच्छा समय, बुरा समय, बदलता समय।'
'कुछ नहीं सर। मैं आपकी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहा हूं। आप जो भी कह रहे हैं, सही है।' सूबेदार मेजर ने जवाब दिया।
'मैं देखता हूं क्या माजरा है,' लेफ्टिनेंट ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा। वह सूबेदार मेजर के पास गया और ऊपर से नीचे तक उसे देखा। फिर चारों ओर देखा, परंतु वहां ऐसा कुछ नहीं था, जिसके कारण वह प्रसन्न होता। अचानक उसने देखा कि उसके बाएं हाथ पर कुछ लिखा हुआ है। पास जाकर पढ़ा, तो लिखा था, 'यह वक्त भी गुजर जाएगा'।
सूबेदार मेजर आर्मी में जूनियर कमिशंड ऑफिसर होता है। अंगरेजों ने इस श्रेणी को उस समय बनाया था, जब फौज में भारतीय अफसर नहीं होते थे। ऐसा अंगरेजी राज में सौ साल से अधिक रहा। जेसीओ फौज की रीढ़ की हड्डी बन गए क्योंकि ये अंगरेजी अफसरों और भारतीय जवानों के बीच एकमात्र कड़ी थे। आज भी इनका महत्व फौज में उतना ही है।
यह सूबेदार मेजर पिछले 20 सालों से सेवा में था। यह बात 80 के दशक की है। शांत और गंभीर जसवंत हर काम को बहुत जिम्मेदारी से करता था। अधिकतर यह उन नए अफसरों के साथ काम करता था, जिन्हें काम के बारे में अधिक जानकारी नहीं होती थी और उन्हें जसवंत के गुणों का पता नहीं होता था। वे अकसर उसे काम करने का वह तरीका बताते, जो सही नहीं होता था। तब जसवंत उनको काम करने का ठीक तरीका बताता था। कुछ अफसर तो समझ जाते, परंतु अधिकतर भड़क जाते थे। जसवंत उनकी बात सुनता रहता और हाथ पर गुदी हुई सूक्ति को पढ़कर मुसकरा देता। उसने कभी अपना आपा नहीं खोया। जल्दी ही अफसर की समझ में आ जाता कि जसवंत किस मिट्टी का बना है और उसको काम की पूरी समझ है। जसवंत एक ऐसा उदाहरण है, जो बताता है कि अपने काम को ठीक तरीके से करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए। समय की कद्र करनी चाहिए और बदलते समय का मिजाज पहचान चाहिए। व्यक्ति शांत रहकर जो प्राप्त कर सकता है, वह लड़-झगड़कर कभी नहीं। जो तुरंत लाभ हासिल करना चाहते हैं, वह शीघ्र ही परेशान हो जाते हैं क्योंकि अकसर मात खानी पड़ जाती है। यदि हम समय का सम्मान करें, तो शायद अच्छे नतीजे हासिल हो सकते हैं।
मेरा एक मित्र नौकरी के लिए आया और मैंने उसको अपने संपादक मित्र के पास भेज दिया। वह एक अच्छा पत्रकार था, परंतु संपादक शीघ्र कोई निर्णय लेने में असमर्थ था। मेरे मित्र को लगा कि वह जानबूझ कर देर कर रहा है। एक दिन उसके दफ्तर में जाकर कहने लगा कि आज मुझे बता दो 'हां या नहीं'।
संपादक ने मना कर दिया और कुछ महीनों तक मेरे मित्र को नौकरी नहीं मिली। संपादक ने मुझे बताया कि यदि वह केवल कुछ दिन और रुक जाता, तो उसको रखना लगभग तय हो चुका था। शांत रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि समय बदलता रहता है। ठीक ही कहा गया है, 'अच्छा समय, बुरा समय, बदलता समय।'
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