मस्तिष्क में एक लक्ष्य रखना, गंतव्य का निर्धारण करना, उस तक जाने वाले मार्ग को पहचानना और फिर अपनी पूरी शक्ति व परिश्रम इस पर केन्द्रित कर लक्ष्य को प्राप्त करना।
विद्यार्थी अगर इस व्यक्तव्य को अपने जीवन में उत्तर लें तो ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे वह प्राप्त नहीं कर सके। अगर हम विद्यार्थी के कैरियर के चुनाव की बात कर रहे हैं तब इससे महत्वपूर्ण कोई मंत्र हो ही नहीं सकता। विद्यार्थी लक्ष्य से तारतम्य बना सके और उसके साथ ही उसे संतुष्टि का अहसास भी दे सके यह निश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
विद्यार्थी अक्सर अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार अपने कैरियर का निर्धारण करते हैं। यदि उनकी अभिरूचि व क्षमता उस कैरियर के अनुरूप हो तो उनके कैरियर की नींव मजबूत हो जाती है, परन्तु यदि कैरियर में प्रवेश पाने का परिश्रम अगर उनकी रुचि व क्षमता पर आधारित नहीं है तो दीर्घावधि में इससे संतुष्टि व प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती। यदि इन दोनों परिस्थिति की तुलना करें तो यह स्पष्ट है की विद्यार्थी की अभिरूचित व क्षमता के अनुरूप चुना गया कैरियर विद्यार्थी को न केवल संतुष्टि व प्रसन्नता देता है बल्कि जीवन में उन ऊंचाईयों तक पहुंचा देता है जहाँ वे औरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
अतः अपनी योग्यता के अनुरूप सही कैरियर का चुनाव करना चाहिए मात्र इसलिए नहीं क्योंकि अन्य छात्र भी एक कैरियर विशेष का चुनाव कर रहे हैं या आजकल सभी कैरियर विशेष में रुचि ले रहे हैं।
कैरियर प्लानिंग कब करें? यह विचारणीय प्रश्न जरूर है लेकिन अनेक काउंसलर के मतानुसार विधार्थी जीवन में नौवीं कक्षा के बाद सचेत रहना अत्यंत आवश्यक है। यही समय है जब विद्यार्थी अपनी रुचि की तरफ सचेत होता है व अपनी अलग पहचान बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव व कौशल दिखाता है। ये क्षेत्र खेल, ड्रामा, भाषण प्रतियोगिता, लेखन आदि हो सकते हैं। अगर विद्यार्थी को इस स्तर पर सही दिशा व मार्गदर्शन मिले तो विद्यार्थी अपना लक्ष्य निर्धारित कर सकता है। यदि यह समय वो चूक गया है तो वह ग्रेजुएशन के बाद भी अपनी अभिरूचि व क्षमता के अनुरूप अच्छे काउंसलर की मदद से कैरियर का चुनाव कर सकता है।
कैरियर का चुनाव एक व्यापक प्रतिक्रया है जिसमें निम्न छः बातों का यदि ध्यान रखा जाए तो विद्यार्थी सहज होकर निर्णय ले सकता है:-
1. स्वयं को पहचानना व अपने विकास की दिशा का निर्धारण कर उसके लिए तैयारी करना।
2. दूसरा महत्वपूर्ण कदम है 'अन्वेषण'! अभ्यर्थी को अपनी रुचि के विभिन्न कार्य क्षेत्रों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए तत्पश्चात कुछ वांछित कैरियर विकल्पों को शार्ट लिष्ट कर उनकी गहराई में जाकर उन कैरियर विकल्पों में आवश्यक पात्रता (शैक्षणिक, व्यवहारिक व व्यवसायिक) के विषय की बारीकी से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
3. निर्धारक कदम है कैरियर के चयन का जो आपके द्वारा तय किए गए मापदंडों पर खरा उतरता हो।
4. कैरियर लक्ष्य का निर्धारण करना और उसे प्राप्त करने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करना।
5. निर्धारित किए गए कैरियर विशेष के लिए जिन योग्यताओं की आवश्यकता उन्हें प्राप्त करना।
6. स्वयं की विशेषताओं से चुने गए कैरियर में इस दक्षता के साथ प्रस्तुत करना की नियोक्ता भी वाह! कह उठे।
यहाँ कुछ विचार कैरियर के चुनाव को लेकर प्रस्तुत किये गए हैं जो सामान्य तौर पर सर्वमान्य है। अपने अनुभव व मनोवैज्ञानिक स्तर पर किए गए शोध के आधार पर अधिकतर काउंसलर का यह मत है की कैरियर के प्रति ज्यादा लापरवाही बरतना ठीक नहीं, विद्यार्थी में नौवीं कक्षा के बाद सचेत रहना अत्यंत आवश्यक है।
विद्यार्थी अगर इस व्यक्तव्य को अपने जीवन में उत्तर लें तो ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे वह प्राप्त नहीं कर सके। अगर हम विद्यार्थी के कैरियर के चुनाव की बात कर रहे हैं तब इससे महत्वपूर्ण कोई मंत्र हो ही नहीं सकता। विद्यार्थी लक्ष्य से तारतम्य बना सके और उसके साथ ही उसे संतुष्टि का अहसास भी दे सके यह निश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
विद्यार्थी अक्सर अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार अपने कैरियर का निर्धारण करते हैं। यदि उनकी अभिरूचि व क्षमता उस कैरियर के अनुरूप हो तो उनके कैरियर की नींव मजबूत हो जाती है, परन्तु यदि कैरियर में प्रवेश पाने का परिश्रम अगर उनकी रुचि व क्षमता पर आधारित नहीं है तो दीर्घावधि में इससे संतुष्टि व प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती। यदि इन दोनों परिस्थिति की तुलना करें तो यह स्पष्ट है की विद्यार्थी की अभिरूचित व क्षमता के अनुरूप चुना गया कैरियर विद्यार्थी को न केवल संतुष्टि व प्रसन्नता देता है बल्कि जीवन में उन ऊंचाईयों तक पहुंचा देता है जहाँ वे औरों के लिए आदर्श बन जाते हैं।
अतः अपनी योग्यता के अनुरूप सही कैरियर का चुनाव करना चाहिए मात्र इसलिए नहीं क्योंकि अन्य छात्र भी एक कैरियर विशेष का चुनाव कर रहे हैं या आजकल सभी कैरियर विशेष में रुचि ले रहे हैं।
कैरियर प्लानिंग कब करें? यह विचारणीय प्रश्न जरूर है लेकिन अनेक काउंसलर के मतानुसार विधार्थी जीवन में नौवीं कक्षा के बाद सचेत रहना अत्यंत आवश्यक है। यही समय है जब विद्यार्थी अपनी रुचि की तरफ सचेत होता है व अपनी अलग पहचान बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपना प्रभाव व कौशल दिखाता है। ये क्षेत्र खेल, ड्रामा, भाषण प्रतियोगिता, लेखन आदि हो सकते हैं। अगर विद्यार्थी को इस स्तर पर सही दिशा व मार्गदर्शन मिले तो विद्यार्थी अपना लक्ष्य निर्धारित कर सकता है। यदि यह समय वो चूक गया है तो वह ग्रेजुएशन के बाद भी अपनी अभिरूचि व क्षमता के अनुरूप अच्छे काउंसलर की मदद से कैरियर का चुनाव कर सकता है।
कैरियर का चुनाव एक व्यापक प्रतिक्रया है जिसमें निम्न छः बातों का यदि ध्यान रखा जाए तो विद्यार्थी सहज होकर निर्णय ले सकता है:-
1. स्वयं को पहचानना व अपने विकास की दिशा का निर्धारण कर उसके लिए तैयारी करना।
2. दूसरा महत्वपूर्ण कदम है 'अन्वेषण'! अभ्यर्थी को अपनी रुचि के विभिन्न कार्य क्षेत्रों का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए तत्पश्चात कुछ वांछित कैरियर विकल्पों को शार्ट लिष्ट कर उनकी गहराई में जाकर उन कैरियर विकल्पों में आवश्यक पात्रता (शैक्षणिक, व्यवहारिक व व्यवसायिक) के विषय की बारीकी से जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।
3. निर्धारक कदम है कैरियर के चयन का जो आपके द्वारा तय किए गए मापदंडों पर खरा उतरता हो।
4. कैरियर लक्ष्य का निर्धारण करना और उसे प्राप्त करने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार करना।
5. निर्धारित किए गए कैरियर विशेष के लिए जिन योग्यताओं की आवश्यकता उन्हें प्राप्त करना।
6. स्वयं की विशेषताओं से चुने गए कैरियर में इस दक्षता के साथ प्रस्तुत करना की नियोक्ता भी वाह! कह उठे।
यहाँ कुछ विचार कैरियर के चुनाव को लेकर प्रस्तुत किये गए हैं जो सामान्य तौर पर सर्वमान्य है। अपने अनुभव व मनोवैज्ञानिक स्तर पर किए गए शोध के आधार पर अधिकतर काउंसलर का यह मत है की कैरियर के प्रति ज्यादा लापरवाही बरतना ठीक नहीं, विद्यार्थी में नौवीं कक्षा के बाद सचेत रहना अत्यंत आवश्यक है।
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