संसार में प्रत्येक व्यक्ति सुखी रहना चाहता है और ऐसा होना स्वाभाविक ही है।
शरीर को यथासंभव निरोग रखने के उपाय करते रहना चाहिए और दूसरी बात आर्थिक रूप से कुछ बचत सुरक्षित रखना आवश्यक है, जिससे अपनी प्रतिदिन की आवश्यकताओं के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े। कहा गया है - पहला सुख निरोगी काया। दूजा सुख जब घर में हो माया।
2. साठ साल की उम्र हो जाए तो अधिकार का सुख छोड़ दीजिए। तिजोरी की चाबी भी बेटे को दे दीजिए।
3. मगर हाँ अपने लिए इतना जरूर बचा लेना चाहिए की कल को किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
* आस्ट्रेलिया के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. हार्न ने कहा है की लोग जितना खाते हैं, उसका एक तिहाई भी पचा नहीं पाते। सर विलियम टेम्पिल ने अपनी किताब 'लांग लाइफ' में भी मिताहार पर बहुत जोर दिया है और कहा है - यदि अधिक जीना हो तो अपनी खुराक को घटाकर उतनी ही रखें, जितने से पेट को बराबर हल्कापन महसूस होता रहे। मिताहार को हर युग में श्रेष्ट कहा गया है।
* प्रतिदिन की दिनचर्या इस प्रकार रखिये की व्यवस्था बनी रहे। शरीर को उपयोगी कार्यों में वयस्त रखिये।
अपनी रुचि के अनुसार कार्य करें। यथा - बागवानी, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, लेखन, कलात्मक कार्य, पेंटिंग, चित्रकारी, सत्संग, समाज सेवा के कार्यों में भाग लेना आदि। व्यस्त रहने से और शारीरिक श्रम से आपको अच्छी भूख लगेगी, निद्रा भी ठीक रहेगी और अनावश्यक चिंताओं से मुक्ति भी मिलेगी।
* वृद्धजनों को समय और परिस्थिति के अनुसार अपनी सोच को बदलना चाहिए। पूर्वाग्रह को छोड़ना ही श्रेष्ट है। जिन परिवारों में बुजुर्ग समय के अनुसार अपनी विचारधारा में परिवर्तन कर लेंते हैं, वहां वृद्धजनों को पर्याप्त सम्मान मिलता है।
* मित्र बनें और मित्रता करें। जीवन में सच्चे मित्र का होना अत्यंत आवश्यक है। सुख-दुःख की चर्चा मित्र से ही की जा सकती है। मित्र से खुलकर बातें करने से तनाव दूर होता है, मन को शांति मिलती है।
* सदैव प्रसन्न रहें। खूब हंसें और दूसरों को भी हंसाएं - इसमें आपका कुछ भी खर्च नहीं होता। आपको मानसिक शांति मिलेगी। तनाव दूर होगा। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी आश्चर्यजनक सुधार होगा।
* यदि आप परिवार के साथ रहते हैं तो केवल एक बात का ध्यान रखें - बेटों-बहुओं की आलोचना-निंदा बिलकुल न करें। बच्चों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने का सुख कम नहीं होता। पारिवारिक कार्यों में सहायक बनें।
* क्रोध कभी न करें और सहनशील बनें। कमाऊ व्यक्ति का क्रोध परिवार के सदस्य सहन भी कर लेते हैं, परन्तु अब आप कमाऊ नहीं हैं। क्रोध करना तो किसी प्रकार भी उचित नहीं माना जाता।
* अतीत की अप्रिय घटनाओं अथवा दुखद क्षणों को भूलना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अच्छा होता है। बीती हुई दुखद बातों को मन में गाँठ बांधकर रखना स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।
* यदि सभी आपको अप्रिय, कटु एवं व्यंग्यात्मक वाणी भी सुनने को मिले तो उस पर भी ध्यान न दीजिये, बल्कि उस स्थान को छोड़कर एकांत में जाकर प्रभु का जप करें। उक्त अवसरों पर अपनी सहनशीलता की शक्ति का परिचय दीजिये।
* वृद्धावस्था में अकेले रहने की गलती न कीजिएगा। अकेला रहने वाला व्यक्ति तनावपूर्ण जीवन जीता है, वह अनेक बीमारियों का शिकार बन जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से भी अकेला रहना ठीक नहीं है।
शरीर को यथासंभव निरोग रखने के उपाय करते रहना चाहिए और दूसरी बात आर्थिक रूप से कुछ बचत सुरक्षित रखना आवश्यक है, जिससे अपनी प्रतिदिन की आवश्यकताओं के लिए किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े। कहा गया है - पहला सुख निरोगी काया। दूजा सुख जब घर में हो माया।
वृद्धावस्था को सुखी बनाने के लिए निम्न शिक्षा को ग्रहण करना अच्छा होगा -
1. जरूरत से ज्यादा मत बोलिए। बिना मांगे बहू-बेटे को सलाह मत दीजिये। 2. साठ साल की उम्र हो जाए तो अधिकार का सुख छोड़ दीजिए। तिजोरी की चाबी भी बेटे को दे दीजिए।
3. मगर हाँ अपने लिए इतना जरूर बचा लेना चाहिए की कल को किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।
वृद्धावस्था में शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ उपयोगी सूत्र इस प्रकार हैं -
रहे निरोगी जो कम खाय। बात न बिगरे जो गम खाय।
कम खाने वाला शारीरिक रूप से हमेशा निरोग और गम खाने वाला लड़ाई-झगड़ों से बचा रहेगा। * आस्ट्रेलिया के सुप्रसिद्ध चिकित्सक डा. हार्न ने कहा है की लोग जितना खाते हैं, उसका एक तिहाई भी पचा नहीं पाते। सर विलियम टेम्पिल ने अपनी किताब 'लांग लाइफ' में भी मिताहार पर बहुत जोर दिया है और कहा है - यदि अधिक जीना हो तो अपनी खुराक को घटाकर उतनी ही रखें, जितने से पेट को बराबर हल्कापन महसूस होता रहे। मिताहार को हर युग में श्रेष्ट कहा गया है।
* प्रतिदिन की दिनचर्या इस प्रकार रखिये की व्यवस्था बनी रहे। शरीर को उपयोगी कार्यों में वयस्त रखिये।
अपनी रुचि के अनुसार कार्य करें। यथा - बागवानी, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, लेखन, कलात्मक कार्य, पेंटिंग, चित्रकारी, सत्संग, समाज सेवा के कार्यों में भाग लेना आदि। व्यस्त रहने से और शारीरिक श्रम से आपको अच्छी भूख लगेगी, निद्रा भी ठीक रहेगी और अनावश्यक चिंताओं से मुक्ति भी मिलेगी।
* वृद्धजनों को समय और परिस्थिति के अनुसार अपनी सोच को बदलना चाहिए। पूर्वाग्रह को छोड़ना ही श्रेष्ट है। जिन परिवारों में बुजुर्ग समय के अनुसार अपनी विचारधारा में परिवर्तन कर लेंते हैं, वहां वृद्धजनों को पर्याप्त सम्मान मिलता है।
* मित्र बनें और मित्रता करें। जीवन में सच्चे मित्र का होना अत्यंत आवश्यक है। सुख-दुःख की चर्चा मित्र से ही की जा सकती है। मित्र से खुलकर बातें करने से तनाव दूर होता है, मन को शांति मिलती है।
* सदैव प्रसन्न रहें। खूब हंसें और दूसरों को भी हंसाएं - इसमें आपका कुछ भी खर्च नहीं होता। आपको मानसिक शांति मिलेगी। तनाव दूर होगा। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी आश्चर्यजनक सुधार होगा।
* यदि आप परिवार के साथ रहते हैं तो केवल एक बात का ध्यान रखें - बेटों-बहुओं की आलोचना-निंदा बिलकुल न करें। बच्चों के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहने का सुख कम नहीं होता। पारिवारिक कार्यों में सहायक बनें।
* क्रोध कभी न करें और सहनशील बनें। कमाऊ व्यक्ति का क्रोध परिवार के सदस्य सहन भी कर लेते हैं, परन्तु अब आप कमाऊ नहीं हैं। क्रोध करना तो किसी प्रकार भी उचित नहीं माना जाता।
* अतीत की अप्रिय घटनाओं अथवा दुखद क्षणों को भूलना प्रत्येक व्यक्ति के लिए अच्छा होता है। बीती हुई दुखद बातों को मन में गाँठ बांधकर रखना स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।
* यदि सभी आपको अप्रिय, कटु एवं व्यंग्यात्मक वाणी भी सुनने को मिले तो उस पर भी ध्यान न दीजिये, बल्कि उस स्थान को छोड़कर एकांत में जाकर प्रभु का जप करें। उक्त अवसरों पर अपनी सहनशीलता की शक्ति का परिचय दीजिये।
* वृद्धावस्था में अकेले रहने की गलती न कीजिएगा। अकेला रहने वाला व्यक्ति तनावपूर्ण जीवन जीता है, वह अनेक बीमारियों का शिकार बन जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से भी अकेला रहना ठीक नहीं है।
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