20 अप्रैल 2011

हर प्रयास आख़िरी मानो

मर्पण : आपको जितनी जिम्मेदारी दी गयी है, उससे कुछ ज्यादा नतीजे देने की। आपने क्रिकेट के खेल में देखा होगा जब गेंद बाउंड्री की और जा रही होती है तो कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जो उसे रोकने के खुद को पूरी तरह से झोंक देते हैं। उसे देख कर लगता है जैसे उसने मान लिया हो की यही जिन्दगी का आख़िरी मौक़ा है। छलांग लगा कर, घिसटते हुए, पलटते हुए, लुढ़कते हुए, किसी भी तरह उसे रोकना जरूरी है। हर मौके पर अपना बेहतरीन प्रयास और पूरा समर्पण करना जरूरी है।

संतोष : हम संतोष नहीं करते और खुश रहना नहीं जानते। एक हो जाए तो चार क्यों नहीं, यह सोच कर निराश रहते हैं। उपलब्धियों को ले कर 'और और' की भावना तो अच्छी है लेकिन इन चीजों को ही उपलब्धि नहीं मान लेना चाहिए। इससे आपका तनाव बढेगा और कामयाबी आपसे दूर हो जाएगी।

लीडरशिप : मैं भी एक लीडर हूँ। मेरे परिवार के 22 हजार सदस्य हैं, जिनके साथ मैं काम करता हूँ। आप जब यह मानने लगेंगे की भगवान् ने जितने लोगों को बनाया है, उसमें अपना कुछ हिस्सा लगा दिया है, तो आप अपने साथ के लोगों का महत्व भी स्वीकार करने लगेंगे। फुटपाथ पर सोया आदमी भी अपने अन्दर एक बेशकीमती चीज छुपाए है। आपको जिन लोगों के साथ काम करना है, कम से कम उनके अन्दर की उस चीज को जरूर पहचान होगा।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : दुनिया आपको मुफ्त में कुछ नहीं देती। सफलता जैसी बेशकीमती चीज तो बिलकुल नहीं। जो लोग सफलता का पकवान चखना चाहते हैं, उन्हें कड़ी मेहनत के लिए तैयार रहना ही होगा। मैं दिन में 14 से 16 घंटे काम करता हूँ। 60 साल का हूँ और आज भी रात नौ बजे तक दफ्तर में काम करता हूँ।

मेरी सफलता = समर्पण + संतोष + लीडरशिप 
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आर.ए. माशेलकर, वैज्ञानिक और सीएसआईआर के निदेशक