10 जनवरी 2011

पुण्यप्रदायिनी माघी पूर्णिमा

माघी पूर्णिमा को स्नान, दान, जप, हवन आदि करने से अनंत फल की प्राप्ति के साथ ही नवग्रह जनित दोष समाप्त हो जाते हैं।
माघ का महीना अन्य महीनों में विशिष्ट स्थान रखता है। मकर के सूर्य में अमृतकण धरती के जल से निकलते हैं। कुंभ के गुरु में मकर से मेष तक का सूर्य पुण्यदायी है, इसीलिए महाकुंभ का पावनकाल हरिद्वार में माना गया है। माघ मास की पूर्णिमा को ही कलियुग का आरंभ हुआ था। ऐसे में माघी पूर्णिमा को स्नान, दान, जप, हवन आदि करने से अनंत फल की प्राप्ति के साथ ही नवग्रह जनित दोष समाप्त हो जाते हैं। माघी पूर्णिमा का स्नान सारे पापों को नष्ट करता है, साथ ही दान अनंत पुण्यदायी होता है। मकर राशि का संबंध राशिपति होने के कारण शनि से तथा उच्च राशि होने के कारण मंगल से है। सूर्य की गर्मी इस माह में कम रहती है, अत: चंद्रमा बलवान होता है।

बुध, गुरु एवं शुक्र भी माघ मास में क्रमश
युवा विद्यार्थी, बौद्धिक कार्य करने वाले पुरुष एवं महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। राहु-केतु भी माघी पूर्णिमा से धरती पर उत्पन्न होने वाली ऋत अग्नि एवं ऋत सोम का संचालन करते हैं। कह सकते हैं कि सारे नवग्रहों का संबंध माघ मास एवं माघी पूर्णिमा से बना रहता है। माघी पूर्णिमा का अनंत फल प्राप्त करने के लिए अरुणोदयकाल में सूर्योदय से डेढ़ घंटा पहले स्नान करना सवरेत्तम माना जाता है। तारों की छांव में स्नान करने पर अनंत फल, तारे छिपने पर मध्यम फल तथा सूर्योदय होने पर स्नान सामान्य फलदायी होता है। पद्मपुराण के अनुसार माघी पूर्णिमा या त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीन दिन भी लगातार स्नान, दान, जप, हवन-पूजन, कीर्तन किया जाता है तो पूरे मास जितना फल प्राप्त होता है।

सूर्य यदि हीन बली हो तो हृदयरोग, चंद्रमा निर्बल हो तो मनोरोग, मंगल क्षीण स्थिति में हो तो रक्तचाप, बुध कमजोर हो तो उदर व्याधि एवं आयरन की कमी, गुरु क्षीण बली होने पर लीवर से जुड़े विकार एवं मधुमेह, शुक्र तेज की कमी, शनि वातरोग, चर्मरोग, कमरदर्द, राहु जोड़ों में दर्द तथा केतु अस्थि विकार आदि करवाते हैं। माघी पूर्णिमा को प्रात: स्नान करके यदि सूर्य को अघ्र्य दें तथा सात अनाजों का दान करें तो सूर्य का दोष समाप्त हो जाता है। चंद्रमा के निमित्त मिश्री, शक्कर एवं चावल का दान करें। मंगल के निमित्त चने की दाल एवं गुड़ का। बुध के निमित्त केला, आंवला एवं आंवले के तेल का।

गुरु के निमित्त सरसों के तेल, सिकी मक्का, एक रत्ती सोना आदि का। शुक्र के लिए घी, मक्खन, सफेद तिल, गजक आदि। शनि के लिए काले तिल, तिल्ली का तेल, लोहपात्र, काला वस्त्र आदि। राहु के लिए जूते-चप्पल, भोजन अधोवस्त्र आदि तथा केतु के निमित्त स्कार्फ, टोपी, पगड़ी, विकलांग लोगों की सहायता, कंबल आदि का दान इन सभी ग्रहों के कारण होने वाले विकारों को दूर करते हैं। माघी पूर्णिमा के दिन पितरों को तर्पण करने का विशेष महत्व होता है। इस बार माघी शुक्ल पूर्णिमा शनिवार को है तथा पुष्य नक्षत्र का संयोग है, जो एक अद्भुत योग बना रहा है। इसी दिन होलिकारोपण भी है जो पापों पर पुण्य की विजय का प्रत्यक्ष संकेत देता है। माघी पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी अमृतमयी रश्मियों से पृथ्वी के जल में एक विशिष्ट तत्व का संचार करता है, जो आमजन का कष्ट निवारक बन जाता है।