जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को `मंत्र´ कहते है। किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही `मंत्र जप´ कहलाता है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम निकलता है?
हमारे मन को दो भागों में बांटा जा सकता है- १। व्यक्त चेतना (Conscious Mind) तथा २. अव्यक्त चेतना (Unconscious Mind)। हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं। अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएँ, गुप्त भावनाएँ इत्यादि विद्यमान हैं। व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यन्त शक्तिशाली हैं। हमारे संस्कार, वासनाएँ - यह सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं। किसी मंत्र का जब जप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है। मंत्र में एक लय होती है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है। मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नसों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगती है। मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं। १. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological Effect) और २. ध्वनि प्रभाव (Sound Effect) - मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ते से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है। मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना। इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया-शक्ति भी तीव्र बन जाती है, जिसके परिणाम स्वरूप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है। मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते है।
मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे पर एक अपूर्व तेज छलकने लगता है, चेहरे पर एक अपूर्व आभा आ जाती है। आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाय, तो जब शरीर शुद्ध और स्वस्थ होगा, शरीर स्थित सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करेंगें, तो इसके परिणाम स्वरूप मुखमण्डल में नवीन कांति का प्रादुर्भाव होगा ही।
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