12 जनवरी 2011

बोझ से वरदान बनती आबादी

वक्त के साथ बदलाव का एक रोचक नमूना देखना हो तो भारत की आबादी पर नजर डाली जा सकती है। बीते कल के चश्मे से देखने पर जो आबादी महज एक बोझ और समस्या नजर आती थी आज उसे भारत के भविष्य की सबसे बड़ी ताकतों में से एक कहा जा रहा है। इसकी वजह है बाजार के नजिरये से इस आबादी में छिपी विशाल संभावनाएं।पिछले सौ साल के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था ने तरक्की तो की लेकिन आबादी की तेज रफ्तार तरक्की के फायदे तेजी से हजम भी करती रही। यही वजह थी कि हाथों के लिए काम और खाने के लिए पर्याप्त भोजन की कमी ने आबादी को देश के लिए बोझ बना दिया।भारत के गांवों और शहरों में रहने वाले अरबों लोगों की जरूरतें संभावनाओं का एक महासागर पैदा कर रही हैं जिसका फायदा उठाने के लिए दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत की तरफ दौड़ रही है ।

लेकिन अब ये बोझ हमारी ताकत में बदल रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत के गांवों और शहरों में रहने वाले अरबों लोगों की जरूरतें संभावनाओं का एक महासागर पैदा कर रही हैं जिसका फायदा उठाने के लिए दुनिया की हर बड़ी कंपनी भारत की तरफ दौड़ रही है । इसलिए बाजार के नजरिये से देखा जाए तो भारत का भविष्य उज्ज्वल है।लेकिन लोगों की संख्या ही काफी नहीं। जरूरतों को पूरा करने के लिए उन के हाथ में पैसा भी होना चाहिए। पैसा जितना ज्यादा होगा, जरूरतें उतनी ही अधिक और फलस्वरूप खपत उतनी ही ज्यादा। निराशावादी लोग कह सकते हैं कि जिस देश में अभी भी करोड़ों लोग गरीबी की रेखा से नीचे जिंदगी बिता रहे हों वहां भविष्य के उज्ज्वल होने की बात कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन ये सच है कि गरीबी के बावजूद आबादी बढ़ी है और अभावों के बावजूद लोगों ने जिंदगी में आगे बढ़ना सीखा है। इसके अलावा आबादी के हर वर्ग की अपनी जरूरतें हैं और यही वजह है कि बाजार के पास भी विकल्पों की कमी नहीं । बड़े ब्रांड्स के लिए भी कंज्यूमर्स हैं और छोटे ब्रांड्स के लिए भी। अतीत हमें बताता है कि वक्त के साथ जरूरतों के समाधान निकल आते हैं। लोगों की बुनियादी जरूरतें जब हल हो जाती हैं तो इसके बाद वे बड़ी जरूरतें पैदा कर लेते हैं। इसलिए भारत में हर तरह के ब्रांड के लिए खपत की संभावना मौजूद है।


कहा जा सकता है कि आबादी का ये आंकड़ा वर्तमान और भविष्य के भारत के लिए एक बड़ी ताकत साबित होने जा रहा है। एक ऐसी ताकत जिसके चलते दुनिया की हर बड़ी कंपनी इस तरफ दौड़ेगी। परंपरागत बाजारों की गर्मी अब ठंडी पड़ रही है और इसलिए मार्केटिंग कंपनियों का भविष्य भारत जैसे उभरते बाजार ही तय करेंगे।