08 अगस्त 2010

मीरा कुमार ( Meera Kumar )


मारे देश में जातीय भेदभाव का दंश ग्रामीण अनपढ़ स्त्रियाँ ही नहीं, पढीलिखी शहरी औरतें भी झेल रही है, इसे लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष मीरा कुमार से अधिक और कौन महसूस कर सकता है। सार्वजनिक बैठकों में भी मीरा कुमार सामाजिक भेदभाव का जिक्र जरूर करती हैं और उसे मिटाने के लिये अपील भी।

15वीं  लोकसभा के अध्यक्ष पद के लिये मीरा कुमार को नामित किया गया। लेकिन लोकसभा के विभिन्न सत्रों में शोरशराबे के बीच अपनी मधुर आवाज का जादू बिखरने वाली इस विनम्र महिला ने अपनी काबिलीयत की चाप से विरोधियों की बोलती बंद कर दी।

63 वर्षीय मीरा कुमार को राजनीति विरासत में मिली। पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं विद्यात दलित नेता बाबू जगजीवन राम और स्वतन्त्रता सेनानी इन्द्रानी देवि की पुत्री मीरा कुमार ने 1985 में राजनीति में कदम रखा। कांग्रेस की ओर से 1985 में वे उत्तर प्रदेश के बिजनौर से लोकसभा सदस्य चुनी गईं। इस के बाद उन्होंने दिल्ली के करोल बाग़ और फिर पिता की परम्परागत सीट बिहार के सासाराम से चुनाव जीते।

2004 में वे केंद्र में समाज कल्याण एवं अधिकारित मंत्री बनीं। इस मंत्रालय में रहते उन्होंने सामाजिक उत्थान वाली योग्नाओं पर काम किया। मीरा कुमार से ही समाज सुधर आन्दोलन में सक्रिय रही हैं। उन्होंने हमेशा जातिवादी व्यवस्था का विरोध किया। मानवाधिकार और लोकतंत्र की पैरवी की।

दलितों के साथ छुआछूत को लेकर उन्होंने आवाज उठाई। उन्होंने अंतरजातीय विवाह करने वालों को 50 हजार रूपये सरकार की ओर से दिलाने के प्रयास किये।

भेदभाव के खिलाफ
निचली जातियों के साथ हुई भेदभाव की घटनाओं पर वे कई जगहों पर गईं। सभाएं की और जाती उन्मूलन के लिये काम किया। जातीय भेदभाव के खिलाफ बैठकें की, प्रदर्शनों में भाग लिया तथा सुप्रीम कोर्ट में दलितों को न्याय दिलाने के लिये जनहित याचिकाएं दायर कीं।

राजनीति में आने से पहले मीरा कुमार भारतीय विदेश सेवा में थीं। वे स्पेन, यू.के. और मारीशस दूतावास में रहीं। वे इंडियामारीशस जौइंट कमीशन में सदस्य भी रहीं।

मीरा कुमार एक अच्छी खिलाड़ी भी रही हैं। राइफल शूटिंग में उन्होंने कई मैडल प्राप्त किये।
1 पुत्री व 3 पुत्रों की माँ मीरा कुमार का जन्म बिहार के भोजपुर जिले में आरा के निकट चंदवा में हुआ था। उन का विवाह सुप्रीम कोरे के वकील मंजुल कुमार के साथ हुआ था। मीरा कुमार देश में सामाजिक समानता चाहती हैं।

1 टिप्पणी:

  1. किसी ने भी ईमानदारी से मानवाधिकार के लिए काम नहीं किया ..! अगर एक भी सत्ता के उच्च शिखर पर बैठा व्यक्ति इसके लिए ईमानदारी से काम किया होता समर्पित भाव से तो मानवाधिकार की आज यह दुर्दशा नहीं होती ...?

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