रिश्ता क्या हुआ?
किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये।
उसके जाने पर रानी और बेटी जंगल से निकलकर आयीं और राजा को मरा देखकर बड़ी दु:खी हुईं। वे दोनों शोक करती हुईं एक तालाब के किनारे पहुँची। उसी समय वहाँ चंडसिंह नाम का साहूकार अपने लड़के के साथ, घोड़े पर चढ़कर, शिकार खेलने के लिए उधर आया। दो स्त्रियों के पैरों के निशान देखकर साहूकार अपने बेटे से बोला, “अगर ये स्त्रियाँ मिल जों तो जायें जिससे चाहो, विवाह कर लेना।”
लड़के ने कहा, “छोटे पैर वाली छोटी उम्र की होगी, उससे मैं विवाह कर लूँगा। आप बड़ी से कर लें।”
साहूकार विवाह नहीं करना चाहता था, पर बेटे के बहुत कहने पर राजी हो गया।
थोड़ा आगे बढ़ते ही उन्हें दोनों स्त्रियां दिखाई दीं। साहूकार ने पूछा, “तुम कौन हो?”
रानी ने सारा हाल कह सुनाया। साहूकार उन्हें अपने घर ले गया। संयोग से रानी के पैर छोटे थे, पुत्री के पैर बड़े। इसलिए साहूकार ने पुत्री से विवाह किया, लड़के ने रानी से हुई और इस तरह पुत्री सास बनी और माँ बेटे की बहू। उन दोनों के आगे चलकर कई सन्तानें हुईं।
इतना कहकर बेताल बोला, “राजन्! बताइए, माँ-बेटी के जो बच्चे हुए, उनका आपस में क्या रिश्ता हुआ?”
यह सवाल सुनकर राजा बड़े चक्कर में पड़ा। उसने बहुत सोचा, पर जवाब न सूझ पड़ा। इसलिए वह चुपचाप चलता रहा।
बेताल यह देखकर बोला, “राजन्, कोई बात नहीं है। मैं तुम्हारे धीरज और पराक्रम से खुश हूँ। मैं अब इस मुर्दे से निकला जाता हूँ। तुम इसे योगी के पास ले जाओ। जब वह तुम्हें इस मुर्दे को सिर झुकाकर प्रणाम करने को कहे तो तुम कह देना कि पहले आप करके दिखाओ। जब वह सिर झुकाकर बतावे तो तुम उसका सिर काट लेना। उसका बलिदान करके तुम सारी पृथ्वी के राजा बन जाओगे। सिर नहीं काटा तो वह तुम्हारी बलि देकर सिद्धि प्राप्त करेगा।”
इतना कहकर बेताल चला गया और राजा मुर्दे को लेकर योगी के पास आया।
23 दिसंबर 2009
बेताल पच्चीसी – चौबीसवीं कहानी
Posted by Udit bhargava at 12/23/2009 07:41:00 am
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