25 दिसंबर 2009

ब्राह्माण्ड का रहस्य!



सृष्टि के आरंभ से मानव की जिज्ञासा प्रकृति से जुड़ी तमाम चीजों को जानने की रही है। यह सवाल भी वैज्ञानिकों को हमेशा परेशान करता रहा है कि ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे हुई, बिग बैंग यानी महाविस्फोट की सच्चाई क्या है, इसी महाविस्फोट के रहस्य को समझने के लिए फ्रांस और स्विट्जरलैैंड की सीमा पर दुनिया का सबसे बड़ा प्रयोग चल रहा है। इसके नतीजे धीरे-धीरे हमारे सामने आएंगे। इसी महाप्रयोग के बहाने इस बार चर्चा ब्राह्माण्ड से जुड़ी कई दिलचस्प बातों की। आखिर क्या है ब्राह्माण्डआमतौर पर हम ब्राह्माण्ड के अंतर्गत आकाश के उन सभी पिण्डों को तथा आकाश गंगाएं, उल्का पिंड, धूमकेतु तथा सौर परिवार आदि को सम्मिलित करते हैं। ब्राह्माण्ड में हम करीब 3 हजार से भी ज्यादा तारों को देख सकते हैं जिनका नामकरण विभिन्न पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किया गया है। 12 तारा मंडलों के ऎसे ही समूह को राशियों के रू प में मान्यता है तथा ये राशियां पृथ्वी के कक्ष के समान ही सूर्य के चारों ओर घूमती हैं। ये सभी 12 राशियां सूर्य के चक्कर लगाते हुए अपनी स्थितियां बदलती रहती हैं। ब्राह्माण्ड का दूसरा प्रमुख संघटक आकाश गंगाएं हैं जिनमें असंख्य चमकते तारों की सर्पिलाकार व्यवस्था होती है, इसमें एक लाख मिलियन तारे माने गए हैं। सौरमंडल पड़ोसी, आकाशगंगा शहरब्राह्माण्ड में हमारे लिए सर्वाधिक महžवपूर्ण संघटक सौर मंडल माना जाता है जिसमें पृथ्वी स्थित है। हमारा सौर मंडल आकाश गंगा में स्थित है। यदि ऎसा माना जाए कि पृथ्वी हमारा घर है, तो सौर मंडल हमारा पड़ौसी, आकाश गंगा हमारा शहर तथा ब्राह्माण्ड हमारी दुनिया है। इस ब्राह्माण्ड रूपी दुनिया की रचना को समझने के लिए इसकी रहस्यमय उत्पत्ति को समझना आवश्यक है। यूनानी, रोमवासी, भारतीय, अरबवासी लंबे समय से इस बारे में जानकारी जुटाते रहे हैं। लेकिन ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में सही जानकारी लंबे समय बाद ही प्राप्त हो पाई। पूर्व यूनानी और रोमन सभ्यता के विद्वान भी ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति और रचना का आधार धार्मिक ही मानते रहे हैं। ज्योतिषियों ने लगाए अंदाजसारी दुनिया में पंद्रहवीं शताब्दी से पूर्व तक यही माना जाता रहा है कि ब्राह्माण्ड का केंद्र पृथ्वी है तथा सारे ग्रह, उपग्रह तथा सूर्य सहित सभी तारे पृथ्वी के चक्कर लगाते हैं। सूर्य केंद्रित विचारधारा को विकसित करने का श्रेय सोलहवीं शताब्दी में प्रसिद्ध विद्वान कॉपरनिकस को जाता है। सत्रहवीं शताब्दी में जब गैलीलियों ने दूरबीन बनाई तो आकाशीय पिंडों के बारे में अधिक स्पष्ट जानकारी मिल पाई। इसी समय यूरोप के प्रसिद्ध ज्योतिष वैज्ञानिक केपलर ने आकाशीय पिण्डों की गति के बारे में नियमों की जानकारी दी तथा स्पष्ट किया कि ये आकाशीय पिंड दीर्घ वृत्ताकार मार्गोü पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। महाविस्फोट के सिद्धांत की खोजलेकिन अभी तक यह जिज्ञासा बरकरार थी कि ब्राह्माण्ड बना कैसे, बीसवीं सदी के शुरू में अचानक बदलाव आया जब वृहद् विस्फोट द्वारा ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति सिद्ध की गई। ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में वृहद् विस्फोट का विचार सन् 1627 में बेल्जियम के वैज्ञानिक जॉर्ज लैमेतंर ने दिया था, इसे बिग बैंग सिद्धांत भी कहते हैं। अब तक ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में इसी विचार को प्रामाणिक माना जा रहा है। ये है महाविस्फोट की थ्योरीमहाविस्फोट के विचार के अनुसार आज से लगभग 15 अरब वर्ष पहले ब्राह्माण्ड में सारा पदार्थ एक विशाल अग्निपिण्ड के रूप में था, इसमें तापमान और दाब की अधिकता थीं। इसके कारण इसमें भयंकर विस्फोट हुआ। इस विस्फोट से अग्निपिंड के रूप में विद्यमान पदाथो का ब्राह्माण्ड में बिखराव हुआ तथा विस्फोट से पदार्थोü के इस बिखराव की प्रक्रिया को महाविस्फोट कहा गया। इन सामान्य पदार्थों का अलगाव होने लगा तथा इससे काले पदार्थों का निर्माण हुआ। बाद में इस काले पदार्थ का एकत्रीकरण (समूहन) हो गया। कालांतर में इन पदार्थोü से अनेक केंद्रीभूत पिंड बन गए। निरंतर जमा पदार्थोü से इन पिण्डों का आकार बढ़ता गया तथा ये आगे बढ़ते गए। ये जितने आगे बढ़ते गए उतनी ही उनकी गति बढ़ती गई। इसी प्रक्रिया से वर्तमान ब्राह्माण्ड की रचना हुई। वर्तमान में यह माना जाता है कि आकाश गंगा के तारें ठण्डे हो रहे हैं। इस सिद्धांत के अनुसार ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति 4.5 अरब वर्ष पूर्व हुई।अभी जिज्ञासा अधूरीप्राचीन काल से धार्मिक, ज्योतिष और वैज्ञानिक आधार पर ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति का रहस्य जानने के अनेक प्रयास किए, लेकिन हमारी जिज्ञासा वास्तविकता से अभी भी दूर रही। कालांतर में वृहद् विस्फोट सिद्धांत की भी आलोचना हुई, क्योंकि इस विस्फोट में सबसे पहले जिस विशाल अग्निपिंड की परिकल्पना की गई वह असंभव प्रतीत होता है। वैज्ञानिक यह मानते हैं कि इतना बड़ा अग्निपिंड होना संभव नहीं, जिससे इस विशाल ब्राह्माण्ड की उत्पत्ति हो सकें। फिर यह भी संशय की बात है कि इस पदार्थ से ब्राह्माण्ड, आकाश गंगा, तारों तथा ग्रहों व उपग्रहों की क्रमबद्ध प्रक्रिया से बार-बार विस्फोट एवं एकत्रीकरण से उत्पत्ति हों।डॉ. बी.सी. जाटवैज्ञानिक खोज की शुरूआतब्राह्माण्ड की उत्पत्ति को जानने के लिए सदी का महाप्रयोग किया जा रहा है। इसे इक्कीसवीं सदी का महाप्रयोग कहा गया है। लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (मशीन) में महाविस्फोट कि प्रक्रिया करके महाप्रयोग की शुरूआत 6 सितंबर 08 को जेनेवा की प्रयोगशाला में की। इस प्रयोग को एक मशीन द्वारा एक सुरंग में किया जा रहा है जिसकी लंबाई 27 किमी है। इसमें घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में प्रोटोन पुंज छोड़े हैं। ये पुंज प्रकाश की तरह गतिशील हो जाएंगे। इसके बाद दूसरे चरण में इसके विपरित दिशा में प्रोटोन पुंज छोड़ेगें। अब वैज्ञानिक यह चाहते हैं कि इन प्रोटोन पुंजों के टकराने से महाविस्फोट होना चाहिए इससे छोटा ब्लैक हॉल (प्रोटोन के बादल) बन जाएं।तब जान पाएंगे रहस्यमहाविस्फोट में कणों के टकराव के बाद आएं परिणामों से हम जान पाएंगे कि इस सृष्टि की रचना कैसे हुई। इन कणों में विद्यमान आकर्षण कहां से आता है। इस तरह यह प्रयोग भी एक तरह से बिग बैंग (वृहद् विस्फोट) जैसे ही एक बड़े विस्फोट पर आधारित है। ब्राह्माण्ड की रचना का रहस्य जानने के लिए शुरू किए इस अभियान के परिणाम धीरे-धीरे आएंगे क्योंकि इसमें बिग बैंग की स्थिति बनने में अभी काफी समय लगेगा। "हिग्स बोसोन" नामक मूल कणों को आद्य पदार्थ माना गया है जिनसे ब्राह्माण्ड बनता है। इनमें इन मूल कणों की प्राप्ति अगले वर्ष जून तक होने की संभावना है। ये ही वे कण हैं जिनकी तलाश के लिए वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयोग में बीम के टकराने से उत्पन्न अवशिष्ट पदार्थ से यदि ये कण मिले तथा इनमें द्रव्यमान और गुरूत्व का पता चला, तो ब्राह्माण्ड की रचना के बारे में प्रचलित बिग बैंग विचार को सिद्ध किया जा सकेगा।