माघ मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, अरोग्य सप्तमी आदि नामों से प्रसिद्ध है। इसी कारण पुराणों में इस तिथि के व्रत की विभिन्न नामों से अलग-अलग विधियां निर्दिष्ट हैं। भविष्यपुराणमें अचला सप्तमी के व्रत का माहात्म्य विस्तार से वर्णित है। इस व्रत का विधान भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। षष्ठी के दिन एक समय भोजन करें। सप्तमी को प्रात:काल किसी नदी या सरोवर में स्नान करें। स्नान हेतु अरुणोदय वेला को सर्वाधिक प्रभावकारी कहा गया है। किसी पात्र में तिल का तेल डालकर दीपक प्रज्वलित करें। दीपक को सिर पर रखकर भगवान सूर्य और सप्तमी तिथि का इस प्रकार ध्यान करें-
तत्पश्चात् दीपक को जल के ऊपर तैरा दें। फिर स्नान करके देवताओं और पितरोंका तर्पण करें। इसके बाद चंदन से अष्टदल कमल बनायें। कमल के मध्य में शिव-पार्वती की स्थापना कर प्रणव-मंत्र से पूजा करें। कमल के आठ दलों में पूर्व से प्रारंभ करके भानु, रवि, विवस्वान्,भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरणतथा सर्वात्मा का पूजन करें। पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक सूर्यदेव की पूजा करने के उपरान्त- स्वस्थानं गम्यताम्-यह कहकर विसर्जितकर दें। अन्त में ताम्र अथवा मिट्टी के पात्र में गुड और घी सहित तिलचूर्णतथा कान का आभूषण रखकर वह पात्र दुख-दुर्भाग्य के नाश की कामना से किसी आचार्य को दान दे दें। सूर्यनारायण से प्रार्थना करें सपुत्रपशुभृत्याय मेऽर्कोऽयंप्रीयताम्।
गुरु को वस्त्र, तिल आदि दक्षिणा में देकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत को समाप्त करें। जो पुरुष उपर्युक्त विधि से अचला सप्तमी को स्नान करता है, उसे सम्पूर्ण माघ-स्नान का फल प्राप्त करता है। इस व्रत में एक समय नमकरहित(अलोना) खाना अथवा फलाहार किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अचलासप्तमीका व्रत करने पर सालभरके रविवारोंके व्रत का पुण्यफलप्राप्त हो जाता है।
नमस्तेरुद्ररूपायरसानाम्पतयेनम:।
वरुणायनमस्तेऽस्तुहरिवासनमोऽस्तुते॥
यावज्जन्मकृतंपाप मयाजन्मसुसप्तसु।
तन्मेरोगंचशोकंचमाकरीहन्तुसप्तमी॥
जननी सर्वभूतानांसप्तमी सप्तसप्तिके।
सर्वव्याधिहरेदेवि नमस्तेरविमण्डले॥
तत्पश्चात् दीपक को जल के ऊपर तैरा दें। फिर स्नान करके देवताओं और पितरोंका तर्पण करें। इसके बाद चंदन से अष्टदल कमल बनायें। कमल के मध्य में शिव-पार्वती की स्थापना कर प्रणव-मंत्र से पूजा करें। कमल के आठ दलों में पूर्व से प्रारंभ करके भानु, रवि, विवस्वान्,भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरणतथा सर्वात्मा का पूजन करें। पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक सूर्यदेव की पूजा करने के उपरान्त- स्वस्थानं गम्यताम्-यह कहकर विसर्जितकर दें। अन्त में ताम्र अथवा मिट्टी के पात्र में गुड और घी सहित तिलचूर्णतथा कान का आभूषण रखकर वह पात्र दुख-दुर्भाग्य के नाश की कामना से किसी आचार्य को दान दे दें। सूर्यनारायण से प्रार्थना करें सपुत्रपशुभृत्याय मेऽर्कोऽयंप्रीयताम्।
गुरु को वस्त्र, तिल आदि दक्षिणा में देकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत को समाप्त करें। जो पुरुष उपर्युक्त विधि से अचला सप्तमी को स्नान करता है, उसे सम्पूर्ण माघ-स्नान का फल प्राप्त करता है। इस व्रत में एक समय नमकरहित(अलोना) खाना अथवा फलाहार किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अचलासप्तमीका व्रत करने पर सालभरके रविवारोंके व्रत का पुण्यफलप्राप्त हो जाता है।
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