02 जुलाई 2010

नन्दगोपसुतं देवि पतिं में कुरू ते नम:

वृंदावन। भगवान् श्रीकृष्ण की लीलास्थलीवृंदावन के प्राचीन कात्यायनी शक्तिपीठ परिसर के कण-कण में आध्यात्मिकता ऐसे रची बसी हुई है कि मानो यह स्थान इस धरा में नहीं बल्कि किसी दूसरे ही लोक में अवस्थितहो।

नगर की भीड-भाड से अलग यमुना नदी से कुछ ही दूरी पर एकांत राधाबागक्षेत्र में स्थित इस परिसर में प्रवेश करते ही दुनिया की आपाधापी और चिल्लम-पौंसे तो निजात मिलती ही है, साथ ही ऐसी अनुभूति भी होने लगती है कि मानो देवी कात्यायनी यहां साक्षात विराजमान होकर श्रद्धालुओं को उनके कुशलक्षेम की रक्षा करने का वरदान दे रही हो। शोरगुल से दूर यहां पूरी नीरवताछाई रहती है। केवल मंदिर की घंटियोंकी ध्वनि और श्रद्धालुओं के सुमधुर भजन गायन की मनमोहकगूंज वातावरण के सन्नाटे को चुनौती देती प्रतीनहोती है।

सामान्य धारणा यह है कि देवी के शक्तिपीठों की संख्या 51ही है लेकिन यहां के धर्माचार्योने बताया कि कुल शक्तिपीठों की संख्या तो 108है लेकिन अभी तक ज्ञात 51ही हैं।

धर्मशास्त्रों के अनुसार देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर में स्वयं को योगाग्निमें भस्म कर डाला था तो क्रुद्ध होकर भगवान् शंकर देवी की मृत देह को लेकर भूमंडल में विचरने लगे। भगवान के इतने उग्र रूप से समूचे लोक में सृष्टि के विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया। तब जगत कल्याण के लिए भगवान श्रीविष्णुने अपने चक्र से देवी सती के शरीर को विखंडित किया। इस दौरान देवी के विभिन्न अंग 108स्थानों पर गिरे और इन्हीं स्थानों पर अब शक्तिपीठ हैं। बाकी 57शक्तिपीठ अभी भी अज्ञात हैं।

गोपियों ने भगवान् श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कात्यायनी मंदिर में पूजा की थी लेकिन कालांतर में यह पीठ लुप्त हो गई थी। सन 1923में स्वामी श्री केशवानंदजीने इस लुप्त शक्तिपीठ का पता लगाकर इसका पुनरूद्धारकराया। तभी से इसकी नित नई-नई महिमा उद्घाटित होती जा रही है। वृंदावन के इस स्थान पर देवी सती के केश गिरे थे। आर्यशास्त्र,ब्रह्मवैवर्तपुराण, आद्या स्त्रोत आदि में इसका उल्लेख है। व्रजेकात्यायनी परा अर्थात वृंदावन स्थित पीठ में ब्रह्मशक्तिमहामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है।