समय-समय पर लोगों को सद्मार्ग दिखाने के लिये परमात्मा जीवात्मा के रूप में धरती पर आते हैं। वह कुछ ऐसा कर दिखाते हैं कि लोग उनके शरणागत हो जाते हैं। बचपन से ही कुछ ऐसे गुण थे स्वामीनारायण सम्प्रदाय के संस्थापक भगवान् स्वामीनारायण में। उन्होंने अपने जीवन दर्शन के माध्यम से लोगों को आदर्श जीवन जीने का सन्देश दिया।
उनके अनुयायी लगातार उनके सन्देश को प्रचारित-प्रसारित करने का काम कर रहे हैं। आज देश ही नहीं विदेशों में भी इस जीवन-दर्शन पद्वति को मानने वाले करोड़ों की संख्या में हैं।
चैत्र सुद 9 संवत 1837 को अयोध्या के निकट छपिया गाँव में जन्मे भगवान् स्वामी नारायण का नाम माता-पिता ने घनश्याम रखा था। बचपन से ही वे ऐसे चमत्कार करने लग गए थे कि लोगों को उनमें देवत्व का आभास होने लगा था। दस वर्ष की उम्र में ही उन्होंने सारे वैदिक ज्ञान को प्राप्त कर लिया था। उनकी विद्वता तब उजागर हुई थी जब उन्होंने काशी में पंडितों के बीच शास्त्रार्थ में रामानुज के विशिष्ट द्वैत के व्यवहारिक महत्व को दूसरे दर्शन से तुलना कर बताया। इसके बाद वहां उपस्थित काशी नरेश समझ गए थे कि यह कोई साधारण मानव नहीं है। ग्यारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने गृह त्याग कर दिया। इसके बाद उन्होंने कल्याण यात्रा शुरू की। इसके माधाम से धार्मिक स्थलों की पवित्रता को अक्षुण बनाए रखने और लोगों को ईश्वर की उपासना कर उद्दार का रास्ता बताने का काम किया। इस यात्रा के दौरान वह नीलकंठ के नाम से प्रख्यात हुए। उन्होंने 187 पवित्र समाधिस्थालों का भ्रमण किया। देशभर में हिमालय, नेपाल, बंगाल, कन्याकुमारी, गुजरात आदि स्थानों पर उनके चमत्कारिक गुण से प्रभावित होकर उन्हें धन-दौलत और राज्य आदि उपहारस्वरूप दिया जाने लगा, लेकिन उन्होंने सब ठुकरा दिया।
स्वामीनारायण की फिलासफी को स्वामीनारायण दर्शन के नाम से जाना जाता है। इसमें पांच अनंत सत्य पर विश्वास किया जाता है। जीव, ईश्वर, माया, ब्रह्म और परम्प्रह्म। इसमें ब्रह्म को अक्षर या अक्षरब्रह्म के रूप में जाना जाता है। इसी से मन्दिर का नाम अक्षरधाम मन्दिर पडा। भगवान् स्वामीनारायण ने शिक्षापत्री में जीवन जीने की राहें बताई हैं। इसमें पांच चीजों पर जोर दिया गया है। धर्म, ज्ञान, वैराग्य और भक्ति। उन्होंने इहलोक और परलोक में खुश रहने के लिये निम्न बाते बताई हैं-
अहिंसा -- जीव की ह्त्या न ही यज्ञ के लिये करें और न ही भोजन के लिये। आत्महत्या या नरहत्या महापाप है।
भक्ति -- शिवरात्री, रामनवमी, जन्माष्टमी और एकादशी मनाएं। प्रतिदिन पूजा करें और प्रसाद वितरण करें। प्रतिदिन मन्दिर जाएँ, भगवान् की गाथा से सम्बंधित भजन गायें और शास्त्रों का अध्ययन करें।
सत्संग -- चोर, नशाबाज, विधर्मी, दुराचारी और लालची व्यक्ति से दूर रहें।
दान -- आमदनी का दसवां भाग भगवान् और भिक्षा के नाम खर्च करें।
पर्यावरण जागरूकता -- सार्वजनिक स्थानों, नदी, बगीचा और झील जैसी जगहों पर थूकना और मल विसर्जन नहीं करना चाहिए।
शिक्षा -- संस्कृत और धार्मिक अध्ययन का प्रबंध करना चाहिए।
वित्तीय प्रबंधन -- दोस्त, औलाद या रिश्तेदार किसी से भी लेनदेन लिखित में करें। आय से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। प्रतिदिन के खर्च को अपने हाथ से लिखें, कर्मचारी को सहमती के हिसाब से मजदूरी दें।
स्वस्थ और खानपान -- प्रतिदिन स्नान करें, स्वच्छ पानी पीयें, दूध और अन्य तरल पर्दार्थ ग्रहण करें, शाकाहारी बनें, शराब और तम्बाकू जैसे नशीले पर्दार्थों का सेवन न करें।
नैतिकता -- अनैतिकता सम्बन्ध न बनाएं, अभद्र कपडे न पहने, विवाहित महिला, विधवा, नौकरानी और साधु का ख़ास ख़याल रखें। विष्णु, गणपति, पार्वती और आदित्य के प्रति आस्था रखें। आठ शास्त्रों में विशवास करें - चारों वेद, व्यास के वेदान्त सूत्र, श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु सहस्त्रनाम, भगवद्गीता, विदुरनीति, वासुदेव महात्म्य और याज्ञवल्क्य स्मृति।
आदर -- अपने से बड़ों, साधु और पवित्र स्थानों का आदर करें।
17 जून 2010
पांच अनंत सत्य और स्वामी नारायण सम्प्रदाय
Posted by Udit bhargava at 6/17/2010 08:21:00 am
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