20 मई 2010

गुलाब उगाइए गृहवाटिका में

गुलाब के फूल की ख़ूबसूरती की मिसाल नहीं दी जा सकती। गुलाब में जितने रंगों के फूल देखने को मिलते हैं उतने शायद किसी दूसरे फूल में नहीं। आप चाहें तो उस खूबसूरत फूल से अपनी गृहवाटिका में चार चाँद लगा सकते हैं।


फूलों का गुण हैं खिलना, खिल कर महकना, सुगंध बिखेरना, सौंदर्य देना और अपने देखने वाले को शांति प्रदान करना। फूलों की इस खूबसूरत दुनिया में गुलाब का एक ख़ास स्थान  है क्योंकि इसे सौंदर्य, सुगंध और खुशहाली  का प्रतीक  माना गया है। तभी तो इसे 'पुष्प सम्राट' की  संज्ञा दी गयी है और 'गुले-आप', यानी फूलों की रौनक भी कहा गया है। इस की भीनीभीनी मनमोहक सुगंध, सुन्दरता, रंगों की विविध किस्मों के कारण हर प्रकृति  प्रेमी इसे अपनाना चाहता है।

भारत में गुलाब हर जगह उगाया जाता है। बागबगीचों, खेतों, पार्कों, सरकारी व निजी इमारतों के अहातों में, यहाँ तक कि घरों की ग्रह-वाटिकाओं की क्यारियों और गमलों में भी गुलाब उगा कर उस का आनंद लिया जाता है।

गुलाब पूरे उत्तर भारत में, खासकर राजस्थान में तथा बिहार और मध्य प्रदेश में जनवरी से अप्रैल तक खूब खिलता है। दक्षिण भारत में खासतौर पर बंगलौर में और महारास्ट्र और गुजरात में भी गुलाब की भरपूर खेती होती है।


उगाने का समय
आमतौर पर जुलाई-अगस्त में मानसून आते ही  गुलाब लगाया जाता है। सितम्बर-अक्टूबर में तो यह भरपूर उगाया जाता है। गुलाब लगाने की सम्पूर्ण विधि और प्रक्रिया अपनाई जाए तो यह फूल मार्च तक अपने सौंदर्य, सुगंध और रंगों से न केवल हमें सम्मोहित करता है बल्कि लाभ भी देता है।

किस्में - भारत में उगाई जाने वाली गुलाब की परम्परागत किस्में हैं, जो देश के अलगअलग इलाकों में उगाई जाते हैं, विदेशों से भी अलगअलग किस्में मांगा कर उन का 'संकरण' (2 किस्मों के बीच क्रास) कर  के अनेक नई व उन्नत किस्में तैयार की गयी हैं, जो अब अपने देश में बहुत लोकप्रिय हैं।

गुलाब की विदेशी किस्में जर्मनी, जापान, फ्रास, इंग्लैण्ड, अमेरिका, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया से मंगाई गयी हैं। भारतीय गुलाब विशेषज्ञों ने देशी किस्मों में भी नयी विकसित 'संकर' (हाईब्रिड) किस्में जोड़ कर गुलाब की किस्मों की संख्या में वृद्धि की है। इस दिशा में दिल्ली स्थित भारती कृषि अनुसंधान संस्थान का अनुसंधान कार्य ख़ास उल्लेखनीय है। दक्षिण भारत में भारतीय बागबानी अनुसंधान संसथान, बंगलौर ने भी किस्मों के विकास और  वृद्धि में भरपूर कार्य किया है।

वैसे तो विश्व भर में गुलाब की किस्मों की संख्या लगभग 20 हजार से अधिक है, जिन्हें विशेषज्ञों ने विभिन्न वर्गों में बांटा है लेकिन तक्तीकी तौर पर गुलाब के 5 मुख्य वर्ग हैं, जिन का फूलों के रंग, आकार, सुगंध और प्रयोग के अनुसार विभाजन किया गया है, जो इस प्रकार  है: हाईब्रिड टीज, फ्लोरीबंडा, पोलिएन्था वर्ग, लता वर्ग और मिनिएचर वर्ग।

हाईब्रिड टीज वर्ग : यह बड़े आकार के गुलाबों का एक महत्वपूर्ण वर्ग है, जिस में टहनी के ऊपर या सिरे पर एक ही फूल खिलता है, इस वर्ग की अधिकतर किस्में यूरोप और छीन के 'टी' गुलाबों के 'संकर' (क्रास) से तैयार की गयी है, इस वर्ग की भारतीय किस्में हैं : डा. होमी भाभा, चितवन, भीम, चित्रलेखा, चंद्बंदीकली, गुलजार, मिलिंद, मृणालिनी, रक्त्गंधा, सोमा, सुरभी, नूरजहाँ, मदहोश, डा. बैंजमन पाल आदि।

फ्लोरीबंडा वर्ग : यह हाईब्रिड टीज और पोलिएन्था गुलाबों के संकर (मिलन) से विकसित किये गए गुलाबों का वर्ग है। इस के फूल उपेक्षाकृत छोटे किन्तु गुच्छों में खिलतें हैं और आकार व वजन में बढ़िया होते हैं। इस वर्ग के फूल गृहवाटिका  की क्यारियों और गमलों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। इस किस्म की विशेषता है कि इन के पौधे कम जगह में ही उगा कर पर्याप्त फूल प्राप्त किये जा सकते हैं। ठन्डे मौसम में जब दूसरे  गुलाब नहीं खिलते हैं, इस वर्ग के फूल दिल्ली सहित उत्तर भारत के सभी राज्यों में खूब खिलते हैं। इस की मुख्य किस्में हैं : दिल्ली, प्रिन्सिस, बंजारन, करिश्मा, चन्द्रमा, चित्तचोर, दीपिका, कविता, जन्तार्मंतर, सदाबहार, लहर, सूर्यकिरण, समर, बहिश्त, आइसबर्ग, शबनम आदि।

पोलिएन्था वर्ग : इस वर्ग के गुलाब के पौधे छोटे, पत्तियां  छोटी  और फूल भी छोटे होते हैं। पौधे कलामों से उगाये जाते हैं। फूल गुच्छों  में और साल भर लगते रहते हैं। इन्हें  पोमापन  या डवार्फ  (बौने) पोलिएन्था भी कहते हैं। पौधे मजबूत होते हैं और गृहवाटिका की क्यारियों व खेतों में भरपूर खिलते हैं।
इस वर्ग की लोकप्रिय भारती किस्में हैं : प्रीती, स्वाति, इको, पिंक शावर, आइडियल, कोरल कलस्टर, आदि।

मिनिएचर वर्ग : इस के पौधे, पट्टियां  और फूल सभी छोटे  होते हैं। पौधे कलामों द्वार उगे जाते हैं। यह गमलों, पतियों आदि में उगाने की उपयुक्त किस्म है। गृहवाटिका की क्यारियों के चारों ओर बार्डर लगाने के लिये भी उपयुक्त है। गुलाब के फूल खिलने का मौसम (अक्टूबर से मार्च) में इस किस्म के गुलाब खूब खिलते हैं। विभिन्न रंगों में ये गुच्छों और डंडियों पर अलग भी उगते हैं। बेबी डार्लिंग, बेबी गोल्ड, स्टार, ग्रीन इसे, ब्यूटी सीकृत, ईस्टर मार्निंग, संड्रीलो आदि इस की लोकप्रिय किस्में हैं।

लता वर्ग : (क्लैंग्बिंग एंड रैंबलिंग रोज) : इस वर्ग के गुलाब के पौधे लताओं के रोप में बढ़ते हैं और पैराबोला पर या दीवार का सहारा पा कर बढ़ते हैं। ये साल में केवल एक बार खिलते हैं। इस की मुख्य किस्में है  : सदाबहार, समर स्नो, डा. होमी भाभा, मार्शल नील, दिल्ली वाईट पर्ल आदि।

गुलाब में जितने रंगों के फूल देखने को मिलते हैं उतने शायद किसी दूसरे फूल में नहीं। यदि सफ़ेद गुलाब हैं तो पीले, लाल, नारंगीलाल, रक्त्लाल, गुलाबी लेवेंडर रंग के दोरंगे, तींरंगे और यहाँ तक कि अब तो नीले और काले रंग के गुलाब भी पाए जाते है।

गमलों में गुलाब : निसंदेह गुलाब के पौधे गृहवाटिका में मिटटी के गमलों में आसानी से उगे जा सकते हैं, जो कम से कम 30 सेंटीमीटर घेरे के और उतने ही गहरे हों। मिनिएचर गुलाब के लिये 20 से 25 सेंटीमीटर आकार के गमले पर्याप्त हैं। गमलों को स्वाच वातावरण में रखा जाए। जैसे ही नयी कोपलें और शाखाएं अंकुरित होने लगें, उन्हें  हीसूरज ई रोशनी में रखें। दिन भर इन्हें 4-5 घंटे धूप अवश्य मिलनी चाहिए। हाँ, गरमी की कडकती धूप में 1-2 घंटे ही पर्याप्त हैं।

मिट्टी का मिश्रण : गमलों के लिये मिट्टी का मिश्रण कुछ इस तरह से रखें। 2 भाग खेत की मिटटी, एक भाग खूब सड़ी गोबर की खाद, एक भाग में सूखी हरी पत्ते की खाद (लीफ मॉल्ड) और लकड़ी  का बुरादा मिला लें। सम्भव हो तो कुछ मात्रा में हड्डी का चुरा भी मिला लें। इस से पौधों और जड़ों का अच्छा विकास होता है।

याद रहे कि गमलों में पौधों का रखरखाव वैसा ही हो, जैसी कि क्यारियों में होता है, उन की उचित निराईगुडाई में होता है। मसलन, पौधों को पूरी खुराक मिले, उन की उचित निराईगुडाई और सिंचाई हो, कीट व्याधियों से बचाव हो, गमलों के पौधों को मौसम के अनुसार समयसमय पर पानी दिया जाए और उन की कटाईछंटाई  भी की जाए। सप्ताह में एक बार गमलों की दिशा भी अवश्य बदलें और उन के तले से पानी निकलने का चित्र भी उचित रूप से खुला रखें।

                      सावधानियां                     
  • बरसात के मौसम में गमलों और क्यारियों में बहुत देर तक पानी भरा न रहने दें।
  • हर साल, पौधों की छंटाई कर, गमले के ऊपर की 2-3 इंच मिट्टी निकाल कर उस में उतनी ही गोबर की सड़ी खाद भर दें।
  • हर 2-3 साल के बाद सम्पूर्ण पौधे को मिट्टी सहित नए गमले में ट्रांसफर कर दें। चाहें तो गमले की मिट्टी बदल कर ताजा मिश्रण भरें।
  • यह प्रक्रिया सितम्बर-अक्टूबर में करें।
मात्र शौक और सजावट के लिये गुलाब का पौधा जब गमले में उगाया जाए तो किस्मों का चुनाव भी उसी के अनुसार किया जाना चाहिए। व्यावसायिक स्तर पर गुलाब की खेती करनी  हो तो वैसी ही किस्मों का चयन करें। इस बारे में प्राय: सभी बड़ी नर्सरियों में पूरी जानकारी मिल सकती है। दिल्ली में हों तो भारतीय कृषि अनुसंधान पूसा के पुष्प विज्ञान विभाग से उचित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

जब जहाँ भी चारों ओर गुलाब खिलता है तो सब ओर इस की सुरभि व्याप्त हो जाती है। फरवरी-मार्च में गुलाब अपने पूर्ण यौवन और बहार पर होता है। आओ, इसे अपनी गृहवाटिका में उगायें और इस के सौंदर्य और महक का आनंद लें।

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