बांके बिहारी मंदिर में प्रवचन सुनाते हुए पंडित गोविंद राम ने कहा कि इंसान को मंदिर में, श्मशान में,रोगी के पास और महात्मा के पास सांसारिक बातें नहीं करनी चाहिए। ऐसे ही जीवन के लिए चार महावाक्य होते हैं, इनमें मेरा कुछ नहीं हैं,मुझे कुछ नहीं चाहिए, सब प्रभु का है केवल प्रभु मेरे अपने हैं।
पंडित जी ने कहा कि शरीर के लिए परिवार को, परिवार के लिए समाज को और समाज के लिए राष्ट्र को कभी नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। ममता रहित होकर ही शरीर की सेवा करने में शरीर का हित और अपना कल्याण भी निहित है। यूं तो जीवन अनमोल है, लेकिन मृत्यु का डर वास्तव में उन्हीं को होता है जो वर्तमान का गलत प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार असल प्रेमी अपने प्रेमास्पदसे किसी प्रकार का सुख नहीं चाहता, वह तो सदा अपने प्रियतम के सुख में ही सुखी रहता है। अर्थात प्रभु को रस देने में ही मानव को रस मिलता है। यदि परमात्मा के साथ प्रेम किया है तो उनसे पे्रम के अलावा और कुछ मत चाहो। प्रभु तो सदा ही भक्त के प्रेम के भूखे होते हैं और सदा प्यार के बदले प्यार देने को तत्पर रहते हैं फिर अडचन क्या हैं? क्या वास्तव में हम उनसे उनका प्यार चाहते हैं या कुछ और? सच तो यह है कि हम उनकी याद भी इसलिए करते हैं कि वह हमारी इच्छाओं को पूरी करते रहें। हम संसार से काम लेना चाहते हैं पर स्वयं संसार के काम आने से खुद को बचाते हैं। हम भगवान को अपना बनाना चाहते हैं पर स्वयं उनका होने से डरते हैं। इन्हीं कारणों से जीवन में अनेक उलझनें उत्पन्न हो जाती है। उन्होंने कहा कि शिक्षा जीवन में सौंदर्य प्रदान करती है। शिक्षित व्यक्ति की मांग सदैव ही समाज को रहती है। शिक्षा एक प्रकार की सामर्थ्य है, पर शिक्षा के साथ दीक्षा अत्यंत आवश्यक है। अशिक्षित व्यक्ति से समाज को उतनी क्षति नहीं होती, जितनी दीक्षा रहित शिक्षित से होती है। एक दीक्षित व्यक्ति ही शिक्षा का सदुपयोग कर सकता है। प्रभु के मंगलमय विधान से हमें सेवा का सामर्थ्य और भावना हमारे पास है यदि आगे नहीं बढे तो मिला हुआ अवसर हाथ से निकल जाएगा और हम पीछे ढकेल दिए जाएंगे।उन्होंने कहा कि जीवन में जैसी भी परिस्थिति हो मानव यदि उसी के अनुसार आगे बढे तो उसे रास्ता अवश्य मिल जाएगा। बस शर्त यहीं है आग बढें। संयोग निश्चित नहीं है, विनाश निश्चित है। मनुष्य मिले हुए के सदुपयोग या दुरुपयोग करने में स्वतंत्र है, परंतु उसका फल भोगने में परतंत्र है।
21 फ़रवरी 2012
जीवन में चार बातें होती हैं महत्वपूर्ण: गोविंदराम
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 2/21/2012 12:27:00 pm
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