लगभग 25 साल पहले मेरे कैरियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। कॉलेज की आराम की नौकरी छोड़कर एक नई पत्रिका कैरियर कम्पटीशन टाइम्स के संपादन का ऑफर मिला। निमंत्रण भारत के एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र समूह से था, परंतु मुझे डर था कि मैं इस महत्वपूर्ण कार्य को सफलता से कर पाऊंगा या नहीं। मार्ग निर्देशन के लिए मैं अपने एक सम्मानित गुरु केपास गया, वे जेएनयू में प्रोफेसर थे,। उनको सब बातें बताईं और पूछा कि क्या निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने कहा, 'अवश्य जाओ, क्योंकि इस प्रकार का अवसर जीवन में एक बार ही मिलता है, परंतु याद रखना सफल व्यक्ति के मित्र कम शत्रु अधिक बनते हैं। सबसे अधिक खतरा अपनों से होता है, संभलकर चलना, तो कोई समस्या नहीं आएगी।'
मैंने घर आकर उनकी राय पर सोचा। संक्षेप में उन्होंने अंतरव्यक्तिगत संबंधों पर महत्व देने को कहा था। काफी सोचने के बाद मैंने तय किया कि हां करने से पहले मैं पत्रिका में काम करने वाले व्यक्तियों से मिल लूं। समय लेकर मैं पत्रिका के दफ्तर गया। सब लोगों ने जोरदार स्वागत किया। मैंने केवल एक प्रश्न पूछा, 'आपमें से किसी का हक तो नहीं मारा जाएगा? यदि आपमें से कोई भी इस पद का दावेदार है, तो मैं नहीं आऊंगा।' सबने कहा कि उनमें से कोई भी इस पद की अपेक्षा नहीं करता है। मैंने जॉइन कर लिया है। नौ वर्षों में मुझे सबका पूर्ण सहयोग मिला है और कभी कोई समस्या नहीं आई।
यह सारी समझ संवेदनशील होने की है। यह संवेदनशीलता अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है, जब आप सफलता की उच्चतम सीढ़ी पर होते हैं और अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। जैसे-जैसे आप सफल होते जाते हैं, वैसे-वैसे आपके पास अधिक अधिकार या पैसा या दोनों ही आते जाते हैं। आपके मित्र तथा संबंधी आपसे मदद की आशा करने लगते हैं। ऐसा प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि या तो आप पैसे से उनकी मदद करें या उनको उनके कामों में मदद पहुंचाएं। ऐसा उम्मीद करना स्वाभाविक है, क्योंकि यह मानवीय स्वभाव है कि हम दूसरे से मदद की अपेक्षा करें। मदद करने में कोई हानि भी नहीं है, यदि इससे अन्य व्यक्तियों को नुकसान नहीं पहुंचता। यहीं पर संवेदनशीलता की आवश्यकता आती है।
हर एक व्यक्ति का हर काम नहीं कराया जा सकता है और न ही कराना चाहिए। यहां पर विवेक से काम लेना होता है। देखना होता है कि कौन सा काम कराना चाहिए और कौन सा नहीं। जो काम हो सकता है, उसको करने से आपसी संबंध अच्छे होते हैं, परंतु समस्या तब आती है, जब काम कराना संभव नहीं होता है। उस समय यदि आप संभलकर नहीं चले, तो व्यक्तिगत संबंध खराब हो जाते हैं, जो आपके पास काम लेकर आया है वह बहुत आशा रखता है और मानकर चलता है कि आप पर उसका हक है। यदि आप टका सा जवाब दे देते हैं, तो वह अपमानित अनुभव करता है। अच्छा हो कि आप उसको कारण बताएं और समझाएं कि आप उसकी पूरी मदद करना चाहते हैं, परंतु उसका काम क्यों नहीं हो सकता। यदि उसको यकीन हो जाएगा कि आपके प्रयत्न के बावजूद काम नहीं हुआ, तो उसको कोई गिला नहीं होगा और आपके आपसी संबंध बरकरार रहेंगे।
मैंने घर आकर उनकी राय पर सोचा। संक्षेप में उन्होंने अंतरव्यक्तिगत संबंधों पर महत्व देने को कहा था। काफी सोचने के बाद मैंने तय किया कि हां करने से पहले मैं पत्रिका में काम करने वाले व्यक्तियों से मिल लूं। समय लेकर मैं पत्रिका के दफ्तर गया। सब लोगों ने जोरदार स्वागत किया। मैंने केवल एक प्रश्न पूछा, 'आपमें से किसी का हक तो नहीं मारा जाएगा? यदि आपमें से कोई भी इस पद का दावेदार है, तो मैं नहीं आऊंगा।' सबने कहा कि उनमें से कोई भी इस पद की अपेक्षा नहीं करता है। मैंने जॉइन कर लिया है। नौ वर्षों में मुझे सबका पूर्ण सहयोग मिला है और कभी कोई समस्या नहीं आई।
यह सारी समझ संवेदनशील होने की है। यह संवेदनशीलता अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है, जब आप सफलता की उच्चतम सीढ़ी पर होते हैं और अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। जैसे-जैसे आप सफल होते जाते हैं, वैसे-वैसे आपके पास अधिक अधिकार या पैसा या दोनों ही आते जाते हैं। आपके मित्र तथा संबंधी आपसे मदद की आशा करने लगते हैं। ऐसा प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि या तो आप पैसे से उनकी मदद करें या उनको उनके कामों में मदद पहुंचाएं। ऐसा उम्मीद करना स्वाभाविक है, क्योंकि यह मानवीय स्वभाव है कि हम दूसरे से मदद की अपेक्षा करें। मदद करने में कोई हानि भी नहीं है, यदि इससे अन्य व्यक्तियों को नुकसान नहीं पहुंचता। यहीं पर संवेदनशीलता की आवश्यकता आती है।
हर एक व्यक्ति का हर काम नहीं कराया जा सकता है और न ही कराना चाहिए। यहां पर विवेक से काम लेना होता है। देखना होता है कि कौन सा काम कराना चाहिए और कौन सा नहीं। जो काम हो सकता है, उसको करने से आपसी संबंध अच्छे होते हैं, परंतु समस्या तब आती है, जब काम कराना संभव नहीं होता है। उस समय यदि आप संभलकर नहीं चले, तो व्यक्तिगत संबंध खराब हो जाते हैं, जो आपके पास काम लेकर आया है वह बहुत आशा रखता है और मानकर चलता है कि आप पर उसका हक है। यदि आप टका सा जवाब दे देते हैं, तो वह अपमानित अनुभव करता है। अच्छा हो कि आप उसको कारण बताएं और समझाएं कि आप उसकी पूरी मदद करना चाहते हैं, परंतु उसका काम क्यों नहीं हो सकता। यदि उसको यकीन हो जाएगा कि आपके प्रयत्न के बावजूद काम नहीं हुआ, तो उसको कोई गिला नहीं होगा और आपके आपसी संबंध बरकरार रहेंगे।
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