रामचरित मानस द्वारा मंत्रोपचार करने हेतु निम्न चौपाइयों का पाठ करें।
सहज स्वरुप दर्शन के लिए
भगत बछल प्रभु कृपा निधाना।विस्ववास प्रगटे भगवाना॥
ज्ञान प्राप्ति के लिए
छिति जल पावक गगन समीरा।पंच रचित अति अधम सरीरा ॥
भक्ति प्राप्त करने के लिए
भगत कल्पतरू प्रनत हित कृपासिंध सुख धाम।सोई निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम॥
श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए
सुमिरि पवन सुत पावन नामू।अपने वश करि राखे रामू॥
मोक्ष प्राप्ति के लिए
सत्यसन्ध छोड़े सर लच्छा।कालसर्प जनु चले सपच्छा॥
सीताराम जी के दर्शन के लिए
नील सरोरुह नील मनि, नील नीरधर स्याम।लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम॥
श्री रामचंद्र जी को वश में करने के लिए
केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।देखि भानु कुल भूषनहि विसरा सखिन्ह अपान॥
ईश्वर से अपराध क्षमा करने के लिए
अनुचित बहुत कहेंऊं अग्याता।छमहु क्षमा मंदिर दोउ माता॥
विरक्ति के लिए
भरत चरत करि नेमु तुलसी जे सदर सुनहिं।सीय राम पद प्रेमु आवसि कोई भव रस विरति॥
भगत्स्मारणा करते हुए आराम से मरने के लिए
रामचरन पद प्रीति करि बाली कीन्ह तनु त्याग।सुमन माल जिमि कंठ ते गिरत न जानइ नाग॥
प्रेम बढाने के लिए
सव नर करहिं परस्पर प्रीति।चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति॥
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काल की रक्षा के लिए
मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ।एहिं अवसर सहाय सोई होऊ॥
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निंदा से निवृत्ति के लिए
राम कृपा अबरेव सुधारी।निंदा से निवृत्ति के लिए
बिबुध धरि भइ गुनद गोहारी॥
विद्या प्राप्ति के लिए
गुरू गृह पढ़न गये रघुराई।अल्प काल विद्या सब आई॥
उत्सव होने के लिए
सिय रघुवीर विवाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं ।तिन्ह कहुं सदा उछाहु मंगलायतम राम जसु॥
कन्या को मनोवांछित वर के लिए
जै जै जै गिरिराज किशोरी।जय महेश मुख चन्द्र चकोरी॥
यात्रा की सफलता के लिए
प्रविसि नगर कीजे सब काजा।ह्रदय राखि कौसल पुर राजा॥
परीक्षा में पास होने के लिए
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी ।कवि उर अजिर नवावहिं बानी ॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती ।
जासुकृपा नहिं कृपा अघाती ॥
आकर्षण के लिए
जेहि के जेहिं पर सत्य सनेहू । सो तेहि मिलइ न कछु सन्देहू॥
स्नान से पुण्य लाभ के लिये
राम कृपा अवरेव सुधारी।
बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी॥
खोई हुई वस्तु पुन: प्राप्त करने के लिये
गई बहोर गरीब नेबाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू॥
जीविका प्राप्ति के लिये
विस्व भरन पोषन कर जोई।
ताकर नाम भरत अस होई॥
दरिद्रता दूर करने के लिये
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के ।
कामद धन दारिद द्वारिके॥
लक्ष्मी प्राप्ति करने के लिये
जिमि सरिता सागद महुं नाहीं।
जघपि ताहि कामना नाहीं॥
तिमि सुख सम्पति विनहिं बोलाएं।
धरमसील पहिं जाहिं सुभाएं॥
पुत्र प्राप्ति के लिए
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बाल चरित कर गान॥
सम्पत्ति प्राप्ति के लिये
जे सकाम न सुनहिं जे गावहिं।
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं॥
ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करने के लिये
साधक नाम जपहिं लय लाएं।
होंहि सिद्ध अनि मादक पाएं॥
सर्वसुख प्राप्त करने के लिए
सुनहिं बिमुक्त विरत अरू विषई।
चहहिं भगति गति संपत्ति नई॥
मनोरथ सिद्धि के लिये
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर और नारि।
तिन कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि॥
कुशल क्षेम के लिये
भुवन चारिदस भरा उछाहू।
जनकसुता रघुवीर विग्प्राहू॥
मुकदमा जीतने के लिये
पवन तनय बल पवन समाना।
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना॥
शत्रु के सामने जाना हो उस समय के लिये
कर सारंग साजि कटि माथा।
अरि दल दलन चले रघुनाथा॥
शत्रु को मित्र बनाने के लिये
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई।
गोपद सिंधु प्रबल सितलाई॥
शत्रुता नाश के लिये
बयरू न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई॥
शास्त्रार्थ में विजय पाने के लिये
तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा।
आयउ भृगुकुल कमल पतंगा॥
विवाह के लिये
तब जनक पाइ बसिष्ठ आयसु व्याह साज सवांरिके।
माडवी श्रुतकीरति उरमिला कुंअरि लई हवनाति के॥
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