03 नवंबर 2011

कमाल करते हैं चीनी भी..

 एक समय था कि चीन को केवल बहुसंख्य देश माना जाता था। आज उसने अपना सिक्का आर्थिक ही नहीं, सामाजिक क्षेत्रों में भी जमाया है। चुप रहकर काम करते रहने वाले चीनियों की जीवनशैली और सोच बहुत कुछ कहती है।

सचमुच हद की बात है। दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है चीन। वह कमियों और अभावों से जूझता होता तो हैरानी नहीं होती लेकिन वह अर्थव्यवस्था में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है, यह देखकर कहना ही होगा कि कमाल करते हैं चीनी भी। चीन से हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

सीखें कि हर व्यक्ति की क्षमता उपयोगी है।
चीन में हर परिवार में एक ही बच्चे के जन्म का नियम है। उस बच्चे पर भरपूर ध्यान दिया जाता है। उसकी क्षमताओं और गुणों को निखारने में उनके परिवार और शिक्षा व्यवस्था पूरा ध्यान देती है। उनके स्कूल-कॉलेजों में प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर रहती है। ऐसे माहौल से निकले बच्चे दूसरे देशों के बच्चों को आसानी से पीछे छोड़ ही जाएंगे।

अपेक्षाओं को विस्तार देखकर देखें।
चीनियों का मानना है कि पश्चिमी देशों में बच्चों को काफी नरमी से पाला जाता है। इस हद तक कि वे नाज़ुक बन जाते हैं और जब ज़िंदगी की कसौटी इम्तेहान लेती है, तो वे टूटे-टूटे से लगते हैं। यही हाल वहां के कामकाजियों का है। चीनियों का मानना है कि अपनी अपेक्षाओं को निरंतर विस्तार देते रहना चाहिए। इतना भी खुद का ख्याल न रखें कि काम की गुणवत्ता पर असर पड़ने लगे। कामयाबी और विकास को एक निगाह से देखते हैं चीनी।

साथ चलेंगे, तो मंज़िल पाएंगे।

चीनी समाज में आपको व्यक्ति के रूप में उभरे हीरो कम मिलेंगे क्योंकि ये पश्चिमी देशों की तरह एक लीडर के सिद्धांत पर विश्वास नहीं करता। एक के आगे और बाकी के पीछे चलने के सिद्धांत पर विश्वास करने से प्रतियोगिता और महत्वाकांक्षा तो बढ़ती है, लेकिन इससे प्रयोगधर्मिता में कमी आती है तथा लीडर व अन्य में अंतर बहुत बढ़ जाता है, ऐसा चीनी मानते हैं।


कामयाबी सतत काम से मिलती है।
चीनी हार मानने वाले लोग नहीं होते। उनका मानना है कि लगातार किसी न किसी काम को करते रहने से मंज़िल ज़रूर हासिल होती है। खुशी भी इसी का नाम है। उनके एक दार्शनिक चुआंग ज़ू का कहना है, ‘अगर आप खुश हैं, तो मान लीजिए कि खुशी की तलाश का आनंद आप खो चुके हैं।’ कहने का मतलब है कि कामयाबी का प्रयास और खुशी की तलाश इनके लिए एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।