21 जून 2011

शेखचिल्ली - बेगम के पैर

बात उन दिनों की है, जब महेंद्रगढ़ झज्जर के नवाब के अधीन था। उत्तर-पश्चिम भारत पर विदेशी आक्रान्ताओं के आक्रमण हो रहे थे और रोहतक, पानीपत और रेवाड़ी, दिल्ली के रास्ते में पड़ने के कारण इन काक्रान्ताओं की निर्दयता के शिकार होते थे।

नवाब उन दिनों झज्जर के बुआवाल तालाब को ठीक कराने में लगे थे, ताकि संकट के समय रिवाय को पानी का कष्ट न हो, अचानक दुर्राने के तेज हमले की खबर आई। पता चला कि दुर्रानी के सेना रेवाड़ी के पास पहुँचने वाली है।

तुरंत नवाब ने रियासत के जांबाज सिपहसालारों और वजीरों मनसबदारों की एक बैठक बुलाई। अहम मसला था कि अगर दुर्रानी झज्जर का रूख करे, तो उसासे कैसे निबटा जाए? और अगर हमले की सूरत में रोहतक या रेवाड़ी से मदद की गुहार आए, तो क्या किया जाए?

सभी का कहना था कि रियाया को तुरंत आगाह कर दिया जाए कि हमले की सूरत में उसे अपना बचाव कैसे करना है और दुश्मन से जूझने के लिये पूरी तैयारी की जाएं। दूसरी रियासतों की भी भरपूर मदद की जाए।

उसी दिन पूरी रियासत में नवाब की ओर से डुग्गी पिटवा डी गई कि हमले की सूरत में रियासत के कमजोर और बीमार लोग, औरतें और बच्चें भागकर पास के जंगल में चिप जाएं। नौजवान, दुश्मन का मुकाबला करने में फ़ौज का साथ दें।

डुग्गी शेखचिल्ली ने भी सुनी। उनकी बेगार निहायत मोटे किस्म की थीं। उन्हें देखकर अक्सर लोग यह मान ही नहीं पाते थे कि शेखचिल्ली के घर फाके भी होते होंगे। वह एकदम हक्के-बक्के और परेशान हो उठे- 'अब कोई समझाए नवाब को कि हमला हुआ, तो इतनी मोटी बेगम भागकर इतने दूर जंगलों में कैसे जाएँगी? बीच ही में न धर ली जाएंगे!..... फिर खुदा न खास्ता, दुर्रानी की फ़ौज आदमखोर हुई, तो बेगार उनका एक दिन का नाश्ता साबित होंगी.'''''धत तेरे की! मैं भी क्या उलटा-सीधा सोचने लगा! कमबख्तों की धजियाँ न उड़ा दूंगा, अगर उन्होंने बेगार की ओर देखा''' मगर रास्ते ही में पकडे जाने पर वे उन्हें देखेंगे नहीं, तो क्या आँखें बंद कर लेंगे? अंधे भी तो नहीं होंगे वे।

'हाँ, शेख फारूख एक दिन कह तो रहे थे दुर्रानी एकदम अंधा है। मैदान में उतरता है तो अपने-पराए में फर्क नहीं कर पाता। '''''मगर दुर्रानी अंधा है, तो क्या उसके सिपाही भी अंधे होंगे?

'बड़ी मुसीबत में जान फंस गई। मेरा क्या है, मैं तो उसकी फ़ौज के गुबार से ही उड़कर कहीं का कहीं जा पहुंचूंगा। मगर सवाल तो बेगार का है। वह तो जन्नत में भी मेरे बिना सबको फटकार लगाएंगी। अल्लाह मियाँ को भी नहीं बख्शेंगी। '''उफ़, अगर कहीं से उड़ने वाला कालीन मिल जाए तो'''

'मैं भी कितना अहमक हूँ! नवाब साहब ने घोड़ा दे रखा है, फिर भी नाहक परेशान हो रहा हूँ। बेगार को घोड़े पर बैठाकर दौड़ा दूंगा। दुर्रानी की कमबख्त सारी फ़ौज हाथ मालती रह जाएगी।

'मगर घोड़ा भी तो जानवर है। पता नहीं, बेगार का बोझ सह पाएगा या नहीं? ऐसा न हो कि बीच में पिचक जाए! या खुदा, ऐसा हुआ, तो क्या होगा? घोड़ा कहीं गिरेगा, बेगम कहीं बिरंगी! उनसे तो गिरकर उठा भी नहीं जाएगा।

'फिर घोड़ा नवाब का है। क्या पता, सीधा जंगल में जाएगा या लड़ने क जोश में कमबख्त दुर्रानी की फ़ौज में ही जा घुसेगा! बेगम बेचारी तो जोर-जोर से फटकार लगाने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकतीं। माना कि उनके अब्बा हजूर एक जांबाज सिपाही थे, तलवार ऐसी चलाते थे कि दुश्मन को छठी का दूध याद आ जाता था, मगर धुल पड़े उनके दकियानूसी ख्यालात पर! बेगार को जबान चलाना तो सिखा दिया, तलवार चलानी नहीं सिखाई। सिखा देते, तो उस समय काम न आती जब घोड़ा उन्हें लिये दुर्रानी की फ़ौज में जा घुसता!

'मगर '''यह माना कि घोड़ा दुर्रानी के फ़ौज में घुस जाएगा, मगर बेगार क पास तलवार कहाँ से आएगी? अल्लाह मियाँ आसमान से तो टपका नहीं देंगे कि लो मेरे बन्दे शेखचिल्ली की बेगा, तलवार लो और काट डालो दुर्रानी की गर्दन!

'अल्लाह मियाँ इतने मेहरबान होंगे, तो बेगम दुर्रानी की गर्दन जरूर काट डालेगी। कितना मजा आएगा उस दिन! दुर्रानी की फ़ौज में दहशत छा जाएगी। उसके सारे सिपाही मैदान छोड़कर भाग जाएंगे। नवाब उन्हें हैरानी से भागता देखेंगे।

पूछेंगे--यह अनहोनी कैसे हुई? किस आसमानी ताकत ने यह सब किया?

तभी भेदिया आकर नवाब को बताएगा-- हुजूर, एक मोटी औरत ने तलवार से दुर्रानी की गर्दन उड़ा दी।

'नवाब और हैरान होंगे। तपाक से कहेंगे-- वह औरत है या फरिश्तों की मलिका? उसे पूरी इज्जत के साथ दरबार में पेश करो!

'पेश करो''' नहीं-नहीं, नवाब कहेगा कि हम खुद उसकी कदमबोसी करेंगे।

'फिर वह घोड़े से उतारकर नागे पैर बेगम की तलाश में निकलेगा, वैसे ही जैसे शहंशाह अकबर नंगे पैर वैष्णो देवी की जियारत पर निकले थे।

'बेगम, दुर्रानी का खून से लथपथ सिर तलवार की नोक पर टाँगे मैदाने-जंग में खडी होंगी। नवाब उसकी कदमबोसी करेगा। बार-बार सजदे में झुकेगा।

'अपने सभी अमीर-उमराव को बेगम
के पैरों की धुल माथे से लगाने को कहेगा। पैर चूमने को कहेगा।

'सभी बेगम
के पैर चूमेंगे। नवाब मुझसे भी उनके पैर चूमने को कहेगा। '''भला अपनी बेगम क पैर मैं कैसे चूम सकता हूँ? मैं कहूंगा नहीं।

'नवाब जोर से चिल्लाएगा--चूमो!
'मैं फिर कहूंगा-- नहीं।
'नवाब बौखला उठेगा। सिपाहियों से कहेगा-- पकड़ लो इस मरदूद को और डाल दो इस आसमानी ताकत
के पैरों पर!
'नवाब
के सिपाही मुझे पकड़ लेंगे और फिर'''
और जोर से धाम की आवाज हुई तो शेखचिल्ली ने देखा-- वह चारपाई से लुढ़ककर नीचे सब्जी छीलती बेगम
के पैरों में गिर पड़े हैं।
''आग लगे इस बौडमपने में!" बेगम जोर से चीखीं--"अच्छा हुआ, दरांती पर नहीं गिरे। हो जाती ख़त से गर्दन अलग!"
और शेखचिल्ली बेचारे क्या कहते! खिसियाना हो, चुपचाप छत पर चले गए। हाँ, अलबत्ता दुर्रानी
के हमले का डर उन्हें और ज्यादा सताने लगा था कि कहीं सचमुच में बेगम के पैर ही चूमने न पड़ जाएं।