19 जून 2011

व्यापारी शेखचिल्ली

एक दिन शेखचिल्ली की माँ ने कहा-बेटा! ऐसे कब तक काम चलेगा। तुम्हें कुछ कारोबार करना चाहिए। ऐसा कहकर उसने खद्दर का थान बाजार से लाकर शेखचिल्ली को देकर कहा-बेटा! इस थान को लेजाकर बाजार में बेच आओ।

शेखचिल्ली ने पूछा-माँ इस थान को किस भाव से बाजार में बेचूंगा? मुझे तो कुछ भी मालूम नहीं है।

माँ ने कहा-बेटा! इसमें जानने की कोई ख़ास बात नहीं। दो पैसे ऊंचे रखकर बेच देना।

नादाँ शेखचिल्ली थान लेकर बाजार में एक तरफ बैठ गया।

एक ग्राहक शेखचिल्ली के पास आया और पूछने लगा क्यों भाई? इस थान का क्या दाम है?

शेखचिल्ली को माँ की बात का ख़याल आ गया?

उसने कह दिया- इसमने दाम दर की क्या बात है भाई! दो पैसे ऊपर-दो पैसे नीचे रखकर ले लो।

ग्राहक ने देखा कि महा मूर्ख से पाला पडा है, इसलिए उसने अपनी जेब से चार पैसे निकाल कर दो पैसे तो थान के ऊपर रख दिए और दो पैसे थान के नीचे रख दिए।

शेखचिल्ली ने थान को उस ग्राहक के हवाले किया और आप वही चार पैसे उठाकर घर को चल दिए।

वह रास्ते में चला जाता था। उसी वक्त उसे एक व्यक्ति मिला जो कि तरबूज बेच रहा था शेख्चिल्ले ने बड़े-बड़े फल देखे तो पूछने लगा-क्यों भाई यह क्या चीज है?

उस आदमी ने उसकी शक्ल देखकर ही समझ लिया कि यह कोई महामूर्ख है। उसने कहा-भाई! यह हाथी का अंडा है।

शेख्चिली यह सुनकर मन ही मन बड़ा खुश हुआ और कहने लगा भाई इसका दाम क्या है?

उस आदमी ने खा-यह बहुत सस्ता है। इसका दाम दो पैसे है।

उन दिनों तरबूज एक-एक पैसे के बिकते थे। शेखचिल्ली ने दो पैसे देकर वह तरबूज मोल ले लिया और मन में यह सोचता हुआ खुश होकर चला कि चलो दो पैसे में ही हाथी का अंडा हाथ आ गया। अब घर चलकर इस अंडे की सेवा करूंगा। इसमें से हाथी का बच्चा मिकलेगा तो उसकी सेवा करूंगा। वह बड़ा होगा तो उसे बेचकर बहुत रूपये कमाऊँगा।

शेखचिल्ली चलता जा रहा था। तब तक उसे टट्टी लगी। वह तरबूज को लिये एक खेत में घुस गया। एक जगह उसने तरबूज को रख दिया और आप टट्टी करने बैठ गया।

इतने में एक गिलहरी तरबूज के पास से निकल गई।

शेखचिल्ली ने उसे देखकर सोचा कि यह तो हाथी का ही बच्चा मालूम होता है। वह उठकर उसकी ओर दौड़ा, मगर गिलहरी भला कब हाथ आने वाली थी वह लपक-लपक एक ओर निकल गई।

शेखचिल्ली हाथ मलता हुआ घर की ओर लौट पडा।
घर की ओर लौटते हुए उसे रास्ते में ही बड़ी भोख लगी तो एक नानवाई की दुकान से उसने दो पैसे की रोटियाँ और सब्जी ली, तथा खाने लगा। ज्योंही उसने एक ग्रास मुंह में डाला था कि एक कुतिया दम हिलाती हुए सामने आ खडी हुई। उसने समझा कुतिया भूखी है इसलिए सारा खाना उसके सामने डाल दिया।

कुतिया ने देखते-देखते सब कुछ चाट कर लिया तो वह घर कि ओर चल पडा।

घर आपने पर उसने देखा उसकी माँ घर पर नहीं है। वह भीतर गया और अपनी औरत से सारा हाल सुनाने लगा।

उसकी औरत ने जब सब हाल सुन लिया तो गुस्सा होकर कहने लगी लानत है तुम पर जो तुमने हाथी का बच्चा खो दिया। अगर वह आज घर में होता तो मैं उस पर किस शान से सवारी करती।

इतना सुनना था कि शेखचिल्ली ने खाना छोड़कर अपनी औरत को मारना शुरू कर दिया। उसने कहा हरामजादी! हाथी का बच्चा इतना छोटा और तू भैंस जैसी औरत! अगर तू उस पर सवारी करती, तो वह बच्चा मर नहीं जाता?

अभी यह सब झमेले हो ही रहे थे कि शेखचिल्ली की माँ लौटकर घर आ गई। उसने जब अपनी पतोहू के रोने की आवाज सुनी तो ऊपर आकर पूछा-क्यों बेटा। यह सब क्या तमाशा है?

इस पर शेखचिल्ली ने थान को बेचने से लेकर हाथी का अंडा खरीदने तक की कुल बातें अपनी माँ को सुना डी।

शेखचिल्ली की माँ ने यह सब हवाला सुना तो मरे गुस्से से आग-बबूला हो गयी। उसने शेख्चिल्ल्ली को बहुत भला-बुरा कहा। फिर खाने लगी बेईमान! तुझे मैंने अपनी कुल जमा पूंजी बेचकर खद्दर का थान दिया था। तू जा और जब तक थान लेकर वापस नहीं आएगा मैं तुझे घर में घुसाने नहीं दूंगी। यह कहते हुए उसने शेखचिल्ली को खूब पीटा और उसे बाहर भगा दिया।

शेख्चिल्ले वहां से चल पड़ा। चलते-चलते उसी दुकान के पास उसने उस कुतिया को देखा, जिसे उसने रोटी खिलाई थी। बस फिर क्या था? शेखचिल्ली लगा उसे मारने। उसको खूम मार पडी थी, इसलिए उसने सारा गुस्सा उस कुतिया पर निकालना शुरू कर दिया कुतिया एक तरफ को भाग चली।

उसे पिटते हुए शेखचिल्ली भी उसके साथ ही साथ दौड़ने लगा। दौड़ते-भागते आखिर उसकी मार से बचने के लिये कुतिया एक मकान में घुस गई।

शेखचिल्ली भी उसके साथ ही उस मकान के अंदर घुस गया।

उस वक्त उस मकान की मालकिन अपना बाक्स खोल कर श्रृंगार करने बैठी थी बस उसी समय किसी काम से पडौस में चली गई थी। मगर बास्क को बंद करना भूल गई थी। कुतिया जब कमरे में घुसी तो शेखचिल्ली ने खुला हुआ संदूक देखा। उसके अंदर बहुत से जेवरात और रूपये रखे हुए थे। उन्हें देखकर उसने अपने कंधे पर से अंगोछा उतारा और बाक्स में रखे तमाम जेवरात तथा रूपये उसमें बाँध लिये और आसानी से बाहर निकल आया।

घर आकर उसने अपनी माँ को वह सारा सामान दे दिया। उसकी माँ इतनी ज्यादा दौलत देखकर बहुत खुश हुई। शेखचिल्ली ने उस दौलत के मिलने का सारा हाल बयान कर दिया।

उसकी माँ ने सब जेवरात मकान के अंगार में जमीन में गाड़ दिए।

मगर उसी वक्त उसे यह ख़याल आया कि शेखचिल्ली तो बेवकूफ है। कहीं अगर किसी की बातों में आकर कुछ किसी से कह दिया तो आफत होगी।

यह सोचकर उसने बाजार से एक आदमी भेजकर रूपये की धान की खोल और कुछ मिठाइयां मंगवाई और रात के वक्त जब शेखचिल्ली सो गया तो उन्हें आँगन में बिखेर दिया।

फिर बहुत सुबह उसने शेखचिल्ली को जगाकर कहा उठ बेटा! देख! आज हमारे आँगन में धान की खोल और मिठाइयों की बारिश हुई है।

शेखचिल्ली ने यह सुना तो दौड़कर चाट आँगन में आ गया और धान की खोल और मिठाई के टुकड़ों को बीन बीन कर खाने लगा।

जिस आदमी के मकान में चोरी हुई थी, उन्होंने शहर के कोतवाल को रिपोर्ट लिखा दी। तहकीकात होने लगी। जब वे ढूंढते हुए शेखचिल्ली के मकान पर आए तो शेखचिल्ली मकान के सामने खडा था।

शहर के कोतवाल ने उससे पूछा-तुम जानते हो यह चोरी किसने की है।

शेखचिल्ली ने छूटते ही कहा-यह चोरी तो मैंने ही की थी। तब शहर कोतवाल ने पूछा-दौलत कहाँ है?

शेखचिल्ली ने कहा- वह तो मेरी माँ ने आँगन में उसी दिन गाध दिया था, जिस रात की सुबह हमारे आँगन में धान की खील और मिठाइयों की बारिश हुई थी।

यह सुनकर शहर कोतवाल बहुत हंसा। उसने सोचा भला ऐसा भी कहीं हुआ है कि किसी के आँगन में धान की खील और मिठाइयों की बारिश हो।

वह समझा- यह कोई पागल आदमी है और वह सिपाहियों के साथ चला गया।

इस प्रकार शेखचिल्ली की माँ की जान बच गई। कुछ दिनों तक उसी धन से अपना घर चलाती रही।