वर्तमान समय में देखा जाता है की जब दो व्यक्ति के मध्य शत्रुता बढ़ती है, तो एक दूसरे को किसी भी प्रकार से हानि पहुंचाने से पीछे नहीं रहते हैं. इसके लिये भौतिक साधनों का प्रयोग तो किया ही जाता है. इसके अतिरिक्त लोग एक दूसरे पर तंत्र प्रयोग करवाने से भी नहीं चूकते हैं. यह तंत्र फिर अनेक परेशानियों को जन्म देने वाला बन जाता है.
जिस पर तंत्र प्रयोग करवाया जाता है, उसका नजदीक होना आवश्यक नहीं होता. यदि वह मीलों दूर है, तो भी तांत्रिक की शक्ति सटीक रूप से उस पर कार्य करती है.
अब यहाँ प्रश्न यह उठता है की जो व्यक्ति सम्मुख नहीं है, कोसों डोर स्थित है, जिस पर सीधा वार नहीं किया जा सकता, वह भी किस प्रकार से पीड़ित हो सकता है. ऐसा कैसे सम्भव होता है?
वस्तुतः प्रत्येक व्यक्ति में एक विशिष्ट शक्ति पायी जाती है, जिसे 'अर्थवा' कहते हैं यह सभी प्राणियों के शरीर से बहने वाली प्राणतत्त्व की एक अदृश्य धारा या सूत्र है. जिस प्रकार मोबाइल फोन के माध्यम से हजारों मील दूर स्थित व्यक्ति तक भे आवाज तुरंत पहुँच जाती है. उसी प्रकार तंत्र शक्ति भी इस अर्थवा की धारा के सहारे कहीं भी पहुँच सकती है. जिस प्रकार गंध के सहारे हम घर घर में पहुँच सकते हैं, जैसे मछली की गंध बहुत दूर से ही महसूस हो जाती है और फिर उस गंध के द्वारा उस स्थान तक पहुंचा जा सकता है. यहाँ गंध कोई भौतिक वास्तु नहीं है, जिसे देखकर या पकड़कर हम वहां तक पहुँच रहे हैं. उसी प्रकार यह अर्थवा शक्ति भी अदृश्य शक्ति है, जो उस व्यक्ति से जुडी रहती है और तंत्र इसी अरिश्य अर्थवा शक्ति के सहारे सम्बंधित व्यक्ति तक पहुँच जाता है. कई बार दूर स्थित अपने किसी निकटतम व्यक्ति के दुःख या तकली को हम महसूस कर लेते हैं. परामनोविज्ञान में मीलों दूर स्थित व्यक्ति से टेलीपैथी के माध्यम से सन्देश पहुंचा दिया जाता है. यह सब भी अर्थवा शक्ति का ही कमाल है. इस अर्थवा शक्ति को महसूस करने की क्षमता कुत्तों, चीटियों, चिड़ियाओं या कुछ विशेष जंगली जंतुओं में अधिक होती है. इसी कारण खोजी कुत्ते अपराधी तक सूंघते हुए पहुँच जाते हैं. चीटियाँ दूर तक जाने के बाद भी शाम को अपने घर तक सकुशल पहुँच जाती हैं और पक्षी मीलों दूर उड़ने के बाद भी विशेष मौसम में सम्बंधित स्थान पर पहुँच जाते हैं. हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में यह शक्ति समाहित होती है. यहाँ तक कि पहने हुए वस्त्रों में भी यह उपस्थित होती है. समस्त तांत्रिक क्रियाएं इसी विशिस्ट अर्थवा शक्ति का आश्रय लेकर संचालित की जाती हैं.
अधिकाँश तांत्रिक प्रयोगों में इसी कारण नाखून, बाल, पहने हुए वस्त्र या अन्य किसी प्रकार की वास्तु का प्रयोग किया जाता है, क्योंकी ये भले ही कितनी ही दूर क्यों न हों, इनका संबंध शरीर में स्थित उस शक्ति से होता है और जब इनके साथ कुछ तांत्रिक क्रियाएं की जाती हैं, तो वह तांत्रिक प्रयोग उस वास्तु की अर्थवा शक्ति में जुड़कर सूक्ष्म रूप से सम्बंधित व्यक्ति तक पहुँच जाता है और उस पर असर करता है.
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