हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का विधान किया गया है। ये सारे संस्कार विज्ञानसम्मत हैं। हर संस्कार का संपादन उसके उपयुक्त समय और मुहूर्त पर किया जाता है। इस तरह हर संस्कार के मुहूर्त निर्धारित हैं। इन संस्कारों में विवाह एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है। इसके भी अपने मुहूर्त हैं। सफल और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए विवाह का उपयुक्त मुहूर्त में होना आवश्यक है। यहां ऐसे कुछ प्रमुख मुहूर्तों का उल्लेख और विवेचन प्रस्तुत है जिनके अपनुरूप विवाह करने से वैवाहिक जीवन की सफलता की संभावना प्रबल होती है।
विवाह मुहूर्त : मूल, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, हस्त, उत्तरा भाद्रपद, स्वाति, मघा और रोहिणी नक्षत्रों तथा ज्येष्ठ, माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष और आषाढ़ महीनों में विवाह करना शुभ है।
विवाह में कन्या के लिए गुरुबल, वर के लिए सूर्यबल और दोनों के लिए चंद्रबल का विचार करना आवश्यक है।
गुरुबल विचार : बृहस्पति ग्रह कन्या की राशि से नवम, पंचम, एकादश, द्वितीय और सप्तम राशि से शुभ, दशम, तृतीय, षष्ठ और प्रथम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम द्वादश में दान देने से अशुभ माना गया है।
सूर्यबल विचार : सूर्य ग्रह वर की राशि से तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश, पंचम, सप्तम और नवम राशि में दान देने से शुभ और चतुर्थ, अष्टम तथा द्वादश राशियों में अशुभ माना गया है।
चंद्रबल विचार : चंद्र ग्रह वर और कन्या की राशि से तृतीय, षष्ठ, सप्तम, दशम और एकादश शुभ, प्रथम, द्वितीय, पंचम और नवम दान देने से शुभ तथा चतुर्थ, अष्टम और द्वादश अशुभ होता है।
विवाह में अंधा लग्न : दिन में तुला और वृश्चिक लग्न, रात्रि में तुला लग्न और मकर लग्न बहरे होते हैं। दिन में सिंह, मेष तथा वृष और रात्रि में कन्या, मिथुन तथा कर्क अंधे लग्न होते हैं। दिन में कुंभ और रात्रि में मीन ये दो लग्न पंगु होते हैं। किसी-किसी आचार्य के मत से धनु लग्न तुला और वृश्चिक अपराह्न में वधिर होते हैं। मिथुन, कर्क और कन्या ये लग्न रात्रि में अंधे होते हैं। सिंह, मेष और वृष लग्न दिन में अंधे होते हैं और मकर, कुंभ तथा मीन ये लग्न प्रातः तथा सायंकाल कुबड़े होते हैं।
अंधादि लग्नों का फल : यदि विवाह बहरे लग्न में हो तो वर और वधू दरिद्र होते हैं। दिवांध लग्न में हो तो कन्या विधवा हो जाती है। रात्रांध लग्न में हो तो संतान की मृत्यु और पंगु लग्न में हो तो धन का नाश होता है।
विवाह में शुभ लग्न विचार : तुला, मिथुन, कन्या, वृष एवं धनु शुभ तथा अन्य लग्न मध्यम होते हैं।
विवाह में लग्न-शुद्धि : लग्न से द्वादश शनि, दशम मंगल, तृतीय शुक्र, लग्न में चंद्र और क्रूर ग्रह अच्छे नहीं होते हैं। लग्नेश शुक्र, चंद्र षष्ठ और अष्टम में अशुभ होते हैं। लग्नेश और सौम्य ग्रह अष्टम में अच्छे नहीं होते हैं और सप्तम स्थान में कोई भी ग्रह शुभ नहीं होता है।
जब सूर्य, चंद्र एवं गुरु इन तीनों महत्वपूर्ण ग्रहों की शुभ गोचर स्थिति को ध्यान में रखते हुए शुद्ध विवाह मुहूर्त दिन का विचार कहते हैं तो इसे त्रिबल-शुद्धि विचार कहा जाता है। वर की जन्म रात्रि से सूर्य व चंद्र का बल तथा कन्या की जन्म राशि से गुरु व चंद्र का बल विशेष रूप से देखा जाता है। सूर्य, चंद्र व गुरु के बलाबल के बिना विवाह-कार्य शुभ नहीं माना जाता। मुनि गर्गाचार्य के अनुसार-
स्त्रीणां गुरुबलं श्रेष्ठं पुरुषाणां रवेर्बलम्। तयोः चंद्रबलं श्रेष्ठमिति गर्गेण निश्चितम्॥
वर की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में सूर्य भाव ३, ६, १० या ११ में हो, तो शुभ और भाव १, २, ५, ७ या ९ में किंचित् अशुभ एवं पूज्य परंतु यदि ४, ८, या १२ में हो, तो अशुभ एवं त्याज्य होता है। कन्या की जन्म राशि से विवाह मुहूर्त के समय गोचर में गुरु यदि भाव २, ५, ७, ९ या ११ में हो, तो शुभ और १, ३, ६ या १० में हो तो सामान्य पूज्य होता है किंतु यदि ४, ८ या १२ में हो, तो अशुभ होता है। परंतु आजकल क्योंकि कन्याओं का विवाह प्रायः प्रौढ़ायु होने पर ही किया जाता है, अतएव आचार्यों के अनुसार कन्या के लिए भाव ४, ८ या १२ स्थित गुरु निंद्य एवं त्याज्य नहीं बल्कि पूज्य होता है।
वर तथा कन्या दोनों की राशियों से विवाह मुहूर्त समय की राशि भाव १, ३, ६, ७, १० या ११ में चंद्र हो, तो शुभ और २, ५, ९ या १२ में हो, तो कुछ अशुभ एवं निंद्य होता है। यदि वर और कन्या की राशि से सूर्य, चंद्रादि गोचर ग्रह नीच या शत्रु राशिस्थ हों अथवा किसी शत्रु या अशुभ ग्रह से दृष्ट हों, तो ऐसा मुहूर्त शास्त्रानुसार ग्राह्य होते हुए भी पूज्य विवाह मुहूर्त माना जाएगा।
उदाहरण हेतु, मिथुन राशि के वर व कन्या का यदि वैशाख मास में मघा नक्षत्र में विवाह करना अभीष्ट हो, तो त्रिबल शुद्धि चक्र के अनुसार मिथुन राशि को वैशाख में सूर्य के भाव ११ में एवं मेष में उच्चराशिस्थ होने से यह महीना अत्यंत शुभ होगा। मघा नक्षत्र कालीन चंद्र के तृतीय स्थान में सिंह राशिस्थ होने से मिथुन राशि के लिए श्रेष्ठ एवं उत्तम मुहूर्त होगा। इसी भांति, कुंभ राशि के वर और कन्या का यदि मार्गशीर्ष (नवंबर) मास में एवं अनुराधा नक्षत्र (वृश्चिक राशि) कालीन विवाह करना अभीष्ट हो, तो मार्गशीर्ष मास में कुंभ जातक के लिए त्रिबल-शुद्धि के अनुसार, सूर्य के दशम होने से तथा वृश्चिक के चंद्र के भी गोचरवश दसवें में होने से विवाह ग्राह्य माना जाएगा। परंतु कुंभ राशि का स्वामी ग्रह शनि तथा सूर्य और चंद्र की राशि वृश्चिक के स्वामी ग्रह मंगल के शत्रु ग्रह होने से प्राप्त विवाह-मुहूर्त सामान्य एवं मध्यम कोटि का होगा। इसमें मंगल ग्रह की विशेष पूजा व उससे संबंधित ग्रह का दान आदि करना शुभ होगा।
विवाह में ग्राह्य शुभ लग्न : मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार विवाह लग्न काल में भाव ३, ६, ८ या ११ में सूर्य तथा इन्हीं स्थानों में राहु, केतु और शनि शुभ होते हैं। भाव ३, ६ या ११ में मंगल, २, ३ या ११ में चंद्र तथा ३, ६, ७ और ८वें स्थानों को छोड़कर अन्य किसी भी भाव में स्थित शुक्र शुभ होता है। ११वें भाव में सूर्य तथ केंद्र त्रिकोण में गुरु लग्नगत अनेक दोषों का परिहार करते हैं।
लग्ने वर्गोत्तमे वेन्दौ घूनाथे लाभगेऽथवा।
केंद्र कोणे गुरौ दोषा नश्यन्ति सकलाऽपि॥
- मुहूर्त्तगणपति' के अनुसार विवाहादि शुभ कार्य के लग्न में, केंद्र त्रिकोण में गुरु, शुक्र एवं बुध तथा ११वें भाव में चंद्र या सूर्य अथवा सप्तमेश हो, तो अनेक दोषों का नाश हो जाता है।
क्रूर ग्रह युति, वेध, मृत्युबाण आदि दोषों की शुद्धि के उपरांत यदि वांछित मुहूर्त में शुद्ध विवाह-लग्न न निकलता हो, तो मुहूर्त ग्रंथाचार्यों ने गोधूलि का लग्न ग्रहण करने का निर्देश दिया है।
गोधूलि काल : जब सूर्यास्त होने वाला हो और गाय आदि चौपाये अपने-अपने घरों को लौटते हुए अपने खुरों से पथ की धूलि को आकाश में उड़ाकर जाने लगें, तो उस काल को गोधूलि की संज्ञा दी गई है। इसे विवाहादि सब मांगलिक कार्यों में प्रशस्त माना गया है। यह लग्न, मुहूर्त, अष्टम, जामित्रादि दोषों को प्रायः नष्टकर देता है।
नो वा योगो न मृतिभवनं नैव जामित्र दोषो।
गोधूलिः सा मुनिभिरुदिता सर्व कार्येषु शस्ता॥
पति और पत्नी का संबंध बहुत नाजुक एवं संवेदनशील होता है। भारतीय समाज में अब भी जाति, गोत्र, समाज, आदि के आधार पर संबंध स्थिर किए जाते हैं। पति और पत्नी के संबंध को सात जन्मों का संबंध माना जाता है। इसलिए विवाह पूरी तरह सोच-विचार कर करना चाहिए। ऊपर वर्णित तथ्यों पर यदि गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए और सही मुहूर्त में विवाह संपन्न हो तो दाम्पत्य सुखमय हो सकता है।
23 अक्तूबर 2010
विवाह में मुहूर्त का महत्व
Posted by Udit bhargava at 10/23/2010 09:14:00 am
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