यह सच है कि तीर्थ का संबंध आध्यात्मिक एवं पावन स्थल से है फिर वह किसी मन्दिर, नदी, घाट आदि किसी भी रूप में क्यों न हो, किसी भी धर्म, जाती एवं देश का क्यों न हो। लोग उन स्थानों पर जाकर स्वयं को धन्य करते हैं, स्नान करते हैं या अपने इष्ट के स्थल के दर्शन करते हैं। ऐसे स्थालों पर लोग दान-पुण्य भी करते हैं। इन सब के पीछे उनकी एक ही धारणा होती है और वह है पापों से मुक्ति, जन्मों के बंधन से छुटकारा या फिर अपने इस जीवन को धन्य बनाना। परन्तु इन कारणों के अलावा भी अनेक कारण हैं जिसके लिये तीर्थ यात्रा जरूरी ही नहीं हितकारी भी है।
ऊर्जा का केंद्र
अक्सर मन में यह सवाल उठता है कि भगवान तो सब में सब जगह व्याप्त है शरीर में भी, घर में भी और मन्दिर में भी। फिर तीर्थ क्यों जाएं? जिस तरह घर के हर कमरे का अपना अलग महत्वा है उसी तरह धरती पर हर स्थल का भी अपना महत्व है। क्या आपने कभी सोचा है कि हम रसोई में क्यों नहीं नहाते? या स्नानघर में खाना क्यों नहीं खाते? और जब भगवान् सब जगह सब में व्याप्त है तो फिर मन्दिर में क्यों जाते हैं? क्योंकि जहाँ हम अपना नित्य कर्म करते हैं वहां उसी तरह के भाव, सुगंध, तरंग एवं ऊर्जा आदि प्रवाहित होने लगती है। जो हमने रूपांतरित करने में हमारी मदद करती है। इसीलिये जो ऊर्जा तीर्थ स्थलों पर बहती है वह अन्य स्थानों से अधिक प्रभावशाली एवं पवित्र होती है। यही कारण है कि ऐसे स्थलों पर हजार भक्तों एवं श्रद्धालुओं के मन स्वतः ही मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। वहां का नजारा, भजन-कीर्तन में डूबे लोग शहरी दुनिया से दूर मन में अध्यात्मिक शक्ति का संचार करते हैं जिससे मन हल्का एवं तनाव मुक्त होने लगता है।
स्वास्थ्यवर्धक
तीर्थ यात्रा स्वास्थ्य की दृष्टि से भेए हितकारी होती है क्योंकि जहाँ पर भी तीर्थ है वहां का वातावरण एकदम स्वच्छ एवं सुरमय होता है। वहां की वनस्पति आँखों को राहत एवं ठंडक देती है। लगातार चलते एवं सीढियां चढ़ने-उतरने से तथा भजन-कीर्तन में तालियों के साथ गाने से हथेली एवं तलवों पर दवाव पड़ता है जिसे एक्यूप्रेशर कहा jaaटा है जिससे कई रोग दूर होते हैं. saatvik भोजन evm fala
25 मई 2011
क्यों जरूरी है तीर्थ यात्रा?
Posted by Udit bhargava at 5/25/2011 06:00:00 pm
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें