मेडिटेशन यानी ध्यान हमारे मस्तिष्क को शांत रखने में सहायक है। यह हमें शांत मस्तिष्क के साथ साथ जीवन के विभिन्न आयामों में सफलता की तरफ ले जाता है। तब हम विचलित हुए बिना सफल होते हैं। अगर हमारे मन में शांति नहीं है, तो हमारी सफलता उस फूल की तरह है, जिसमें सुगंध नहीं होती।
हमारे अंदर असुरक्षा की भावना आने के पीछे विगत का असंतोष, वर्तमान का भ्रम और भविष्य के प्रति एक अविश्वास का होना है। किसी भी व्यक्ति को अपने विगत के अनुभव से सीखना चाहिए, वर्तमान का आनंद लेना चाहिए और भविष्य के लिए उसके मन में एक योजना होनी चाहिए। ये तीनों बातें हमारे अंदर की असुरक्षा की भावना को कम करने में सहायक हैं। मनस्थिति की ये अलग अलग अवस्थाएं हैं।
इसका भाव यही है कि अगर अतीत में ही उलझे रहोगे, तो वर्तमान के आनंद से वंचित हो जाओगे। अगर विगत से अनुभव नहीं लोगे, तो जीवन को बेहतर नहीं बना पाओगे, और भविष्य के लिए अगर योजना नहीं होगी तो आगे के सफर में मन में विचलन रहेगा।
यथार्थ जीवन हमारी अंतश्चेतना में समाया रहता है। वह हमारी प्रवृत्तियों में नजर आता है। इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि अगर किसी व्यक्ति का मस्तिष्क बिल्ली की तरह है, तो वह बाहरी जीवन के किसी चीज का प्रभाव पड़ने पर बिल्ली की प्रवृति के अनुकूल ही काम करेगा।
इस प्रवृति के लोगों में भी यही व्यवहार देखा जाता है, उन्हें केवल अपने से मतलब होता है। दूसरी प्रवृत्ति कुत्ते की है जो केवल तब तक दुम हिलाता है जब तक उसे प्यार मिलता है। मेडिटेशन हमारे मस्तिष्क की ऐसी प्रवृत्तियों को दूर करता है। मेडिटेशन मस्तिष्क के इस तरह के क्षणिक स्वभाव को दूर करने में सहायक है। मेडिटेशन से हमारा मस्तिष्क स्थिर और शांत होता है। मेडिटेशन की अवस्था के अलग अलग चरण हैं। इसमें आनंद की अवस्था धीरे-धीरे आती है। मेडिटेशन से जब हमारे व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगे तो यह अवस्था कुछ पा जाने की है। मेडिटेशन से विचारों पर तो एकदम प्रभाव पड़ता है, लेकिन महत्व इस बात का है कि मेडिटेशन आपके व्यवहार में भी बदलाव ला दे। यह अवस्था अभ्यास से लाई जाती है। दिमाग की अवस्था हमेशा एक सा होनी चाहिए। हमेशा संतुलन की स्थिति होनी चाहिए। विचलन की स्थिति ठीक नहीं। हमारे दिमागी संतुलन और मस्तिष्क चेतना के लिए मेडिटेशन की पुरानी और आधुनिक पदतियां उपयोगी साबित हुई हैं। इससे दिमागी असंतुलन को दूर करने में मदद मिली है। यह हमें व्यावहारिक रूप से भी सहज बनाता है। उसमें भी एक तरह का संतुलन लाने में सहायक हुआ है।
हमारे अंदर असुरक्षा की भावना आने के पीछे विगत का असंतोष, वर्तमान का भ्रम और भविष्य के प्रति एक अविश्वास का होना है। किसी भी व्यक्ति को अपने विगत के अनुभव से सीखना चाहिए, वर्तमान का आनंद लेना चाहिए और भविष्य के लिए उसके मन में एक योजना होनी चाहिए। ये तीनों बातें हमारे अंदर की असुरक्षा की भावना को कम करने में सहायक हैं। मनस्थिति की ये अलग अलग अवस्थाएं हैं।
इसका भाव यही है कि अगर अतीत में ही उलझे रहोगे, तो वर्तमान के आनंद से वंचित हो जाओगे। अगर विगत से अनुभव नहीं लोगे, तो जीवन को बेहतर नहीं बना पाओगे, और भविष्य के लिए अगर योजना नहीं होगी तो आगे के सफर में मन में विचलन रहेगा।
यथार्थ जीवन हमारी अंतश्चेतना में समाया रहता है। वह हमारी प्रवृत्तियों में नजर आता है। इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि अगर किसी व्यक्ति का मस्तिष्क बिल्ली की तरह है, तो वह बाहरी जीवन के किसी चीज का प्रभाव पड़ने पर बिल्ली की प्रवृति के अनुकूल ही काम करेगा।
इस प्रवृति के लोगों में भी यही व्यवहार देखा जाता है, उन्हें केवल अपने से मतलब होता है। दूसरी प्रवृत्ति कुत्ते की है जो केवल तब तक दुम हिलाता है जब तक उसे प्यार मिलता है। मेडिटेशन हमारे मस्तिष्क की ऐसी प्रवृत्तियों को दूर करता है। मेडिटेशन मस्तिष्क के इस तरह के क्षणिक स्वभाव को दूर करने में सहायक है। मेडिटेशन से हमारा मस्तिष्क स्थिर और शांत होता है। मेडिटेशन की अवस्था के अलग अलग चरण हैं। इसमें आनंद की अवस्था धीरे-धीरे आती है। मेडिटेशन से जब हमारे व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगे तो यह अवस्था कुछ पा जाने की है। मेडिटेशन से विचारों पर तो एकदम प्रभाव पड़ता है, लेकिन महत्व इस बात का है कि मेडिटेशन आपके व्यवहार में भी बदलाव ला दे। यह अवस्था अभ्यास से लाई जाती है। दिमाग की अवस्था हमेशा एक सा होनी चाहिए। हमेशा संतुलन की स्थिति होनी चाहिए। विचलन की स्थिति ठीक नहीं। हमारे दिमागी संतुलन और मस्तिष्क चेतना के लिए मेडिटेशन की पुरानी और आधुनिक पदतियां उपयोगी साबित हुई हैं। इससे दिमागी असंतुलन को दूर करने में मदद मिली है। यह हमें व्यावहारिक रूप से भी सहज बनाता है। उसमें भी एक तरह का संतुलन लाने में सहायक हुआ है।
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