वासनाओं से मुक्त कैसे हो? यह प्रश्न उन सबके लिए है, जो आदतों से छुटकारा पाना चाहते हैं।
तुम आदतों को छोड़ना चाहते हो, क्योंकि उनसे तुम्हें कष्ट होता है, वे तुम्हें सीमित करती हैं। वासनाओं का स्वभाव है, तुम्हें विचलित करना, तुम्हें बाँध देना और जीवन का स्वभाव है मुक्त होने की चाह। जीवन मुक्त रहना चाहता है। पर जब यह नहीं मालूम कि कैसे मुक्त हों, तब आत्मा-जन्मान्तरों तक मुक्ति की खोज में भटकती रहती है।
समय और स्थान को ध्यान में रखकर संकल्प करो। संकल्प समयबद्ध होना चाहिए। फिर तुम्हारा व्यवहार भी अच्छा होगा और तुम पथ से विचलित होने से भी बच जाओगे। इसलिए समय और स्थान का ध्यान रखकर संकल्प करो।
उदहारण के लिये किसी को सिगरेट पीने की आदत है और वह कहता है, 'मैं सिगरेट पीना छोड़ दूंगा।' पर वह सफल नहीं होता। ऐसे लोग निर्धारति समय, जैसे तीन महीने या 90 दिनों के लिये संकल्प ले सकते हैं। अगर किसी को गाली देने की आदत है, तो वह 10 दिनों तक बुरे शब्दों का प्रयोग नहीं करने का संकल्प करें। जीवन भर के लिये संकल्प मत करो, क्योंकि तुम उसे निभा नहीं पाओगे। यदि कोई संकल्प बीच में टूट भी जाए, तो चिंता मत करो। फिर से शुरू करो। धीरे-धीरे समय की सीमा बढ़ाते जाओ, जब तक वही तुम्हारा स्वभाव ना बन जाए। यही 'संयम' है। हर एक में कुछ संयम होता ही है। जब मन व्यर्थ की चिंताओं में उलझा रहता है, तब दो बातें होती हैं। पहली, तुम्हारी पुरानी आदतें वापस आ जाती है और तुम निरुत्साहित हो जाते हो। तुम अपने को दोषी ठहराते हो और सोचते हो कि तुम्हारा कोई विकास नहीं हुआ।
दूसरी ओर तुम इसे संयम अपनाने का एक नया अवसर मानकर प्रसन्न हो सकते हो। संयम के बिना जीवन कभी सुखी और रोग-मुक्त नहीं हो सकता। उदहारण के लिए, तुम्हें पता है कि एक साथ तीन आइसक्रीम या प्रतिदिन आइसक्रीम खाना उचित नहीं है। ऐसा किया तो बीमार पड़ जाओगे।
जब जीवन में उत्साह और रस का अभाव है, तब आदतें तुम्हें अवरूद्ध कर देती हैं। जब जीवन को एक दिशा मिल जाती है, तब 'संयम' के द्वारा तुम आदतों से ऊपर उठ जाते हो। जो भी आदतें तुम्हें परेशान करती हैं, उन्हें संकल्प के द्वारा संयम में बाँध लो।
तुम आदतों को छोड़ना चाहते हो, क्योंकि उनसे तुम्हें कष्ट होता है, वे तुम्हें सीमित करती हैं। वासनाओं का स्वभाव है, तुम्हें विचलित करना, तुम्हें बाँध देना और जीवन का स्वभाव है मुक्त होने की चाह। जीवन मुक्त रहना चाहता है। पर जब यह नहीं मालूम कि कैसे मुक्त हों, तब आत्मा-जन्मान्तरों तक मुक्ति की खोज में भटकती रहती है।
समय और स्थान को ध्यान में रखकर संकल्प करो। संकल्प समयबद्ध होना चाहिए। फिर तुम्हारा व्यवहार भी अच्छा होगा और तुम पथ से विचलित होने से भी बच जाओगे। इसलिए समय और स्थान का ध्यान रखकर संकल्प करो।
उदहारण के लिये किसी को सिगरेट पीने की आदत है और वह कहता है, 'मैं सिगरेट पीना छोड़ दूंगा।' पर वह सफल नहीं होता। ऐसे लोग निर्धारति समय, जैसे तीन महीने या 90 दिनों के लिये संकल्प ले सकते हैं। अगर किसी को गाली देने की आदत है, तो वह 10 दिनों तक बुरे शब्दों का प्रयोग नहीं करने का संकल्प करें। जीवन भर के लिये संकल्प मत करो, क्योंकि तुम उसे निभा नहीं पाओगे। यदि कोई संकल्प बीच में टूट भी जाए, तो चिंता मत करो। फिर से शुरू करो। धीरे-धीरे समय की सीमा बढ़ाते जाओ, जब तक वही तुम्हारा स्वभाव ना बन जाए। यही 'संयम' है। हर एक में कुछ संयम होता ही है। जब मन व्यर्थ की चिंताओं में उलझा रहता है, तब दो बातें होती हैं। पहली, तुम्हारी पुरानी आदतें वापस आ जाती है और तुम निरुत्साहित हो जाते हो। तुम अपने को दोषी ठहराते हो और सोचते हो कि तुम्हारा कोई विकास नहीं हुआ।
दूसरी ओर तुम इसे संयम अपनाने का एक नया अवसर मानकर प्रसन्न हो सकते हो। संयम के बिना जीवन कभी सुखी और रोग-मुक्त नहीं हो सकता। उदहारण के लिए, तुम्हें पता है कि एक साथ तीन आइसक्रीम या प्रतिदिन आइसक्रीम खाना उचित नहीं है। ऐसा किया तो बीमार पड़ जाओगे।
जब जीवन में उत्साह और रस का अभाव है, तब आदतें तुम्हें अवरूद्ध कर देती हैं। जब जीवन को एक दिशा मिल जाती है, तब 'संयम' के द्वारा तुम आदतों से ऊपर उठ जाते हो। जो भी आदतें तुम्हें परेशान करती हैं, उन्हें संकल्प के द्वारा संयम में बाँध लो।
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