बात तो टके की है ज्यादा सुनोगे तो ज्यादा पाओगे, किन्तु ऐसा होता नहीं है। आँफिस हो या कोइ ऐसी महत्वपूर्ण जगह आमतौर पर लोग सुनते कम हैं और बोलने की कोशिश ज्यादा करते हैं या फिर अपने आपको बेहतर सिद्ध करने के चक्कर में बातचीत के कुछ अंश सुनकर और उन्हीं को पकड़कर सामने वाले पर हावी होने के प्लान बनाने लगते हैं। ऐसे मौके बार-बार आते हैं। मसलन इंटरव्यू देते समय, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से चर्चा के समय या फिर ऐसी कोई ख़ास जगह जहाँ पर अपने आपको श्रेष्ठ घोषित करना होता है। अंगरेजी में एक कहावत है की 'We often hear but Seldom Listen', यानी हम सुनते तो हैं, लेकिन अच्छे श्रोता नहीं बन पाते। इससे हम कई जगह नुकसान कर लेते हैं, जो हमारे कैरियर के लिए ठीक नहीं है। वैसे सुनाने के कई फायदे हैं। सामने वाला क्या कह रहा है, उसकी हर बात पर गौर कर सकते हैं। यह भी पहचान सकते हैं की वह कितना बुद्धिमान है? वह जो कह रहा है वह आपके लिए कितना लाभदायक है? कई बार तो एक छोटी-सी बात आपके लिए महत्वपूर्ण बन जाती है। आप उसी के आधार पर आँफिस में कोई 'आइडियल आइडिया' रख सकते हैं।, जिससे आपके प्रोमोशन का मार्ग खुल सकता है, पर अधिकाँश समय ऐसा नहीं होता है। दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है, इसे ठीक से सुनना काफी प्रयासों की मांग करता है। यदि आप भी अच्छे श्रोता नहीं हैं तो आप कई बड़े-बड़े फायदों से वंचित रह सकते हैं।
आपको अपने आप में अच्छा श्रोता बनाने के गुणों को विकसित करना है, तो कुछ आदतों से छुटकारा पाना बहुत जरूरी है।
- दूसरा व्यक्ति क्या कह रहा है, हम अक्सर उसे बहुत कम सुन पाते हैं, क्योंकि हमारे दिमाग में पहले से ही कई दूसरे सवाल घूम रहे होते हैं जैसे की "यह व्यक्ति वास्तव में क्या सोच रहा या महसूस कर रहा है?" या "यह सारी बातें बताने के पीछे इसका मकसद क्या है?" या "कहीं यह मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश तो नहीं कर रहा है?
- आपका दिमाग इस बात की तैयारी में जुटा रहता है की आगे क्या बोलना है और आप इस ओर बिलकुल लापरवाह हो जाते हैं की क्या कहा जा रहा है?
- आप सिर्फ उन्हीं बातों को सुन रहे होते हैं, जिन्हें आप सुनना चाहते हैं और उन बातों को नजरअंदाज कर जाते हैं, जो आपके मनमाफिक नजर नहीं आतीं।
- आमने-सामने की बातचीत के दौरान आपका ध्यान भटक जाता है और अधिकाँश बात अनसुनी कर जाते हैं।
- आप अन्य व्यक्ति द्वारा कही जा रही बातों को अपने अनुभवों से जोड़ने में जुड़ जाते हैं।
- आप जैसे ही संवेदनवाहक का मूल्यांकन करने लगते हैं, सन्देश को सुनना भूल जाते हैं।
- बातचीत के मुद्दों को जल्दी-जल्दी बदलना यह दिखाता है की जो बात कही जा रही है, उसमें आपकी दिलचस्पी नहीं है।
- आप जो कहा गया है, उसे सुनते तो हैं, लेकिन तत्काल ही उसे भुला भी देते हैं।
- घर में नीले रंग के वस्त्र, नीले रंग के पर्दे, नीले रंग की चादरें व दीवारों पर भी नीला रंग करें। हर बात पर सहमत हो जाना भी यह दिखाता है की आप या तो भलमनसाहत में सब सुन रहे हैं या फिर टकराव को टालने के लिए।
- कई बार आप जिन शब्दों या विचारों के बारे में जानते नहीं हैं, उन्हें नजरअंदाज कर जाते हैं। ऐसे में भी आप पूरी बात नहीं सुन पाते।
कितनी अच्छी बातें बताती पोस्ट..... थैंक यू
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