रुद्राक्ष के पेड़ घने एवं ऊंचे होते हैं। इनकी ऊंचाई ५० फुट से २०० फुट तक होती है। इनके पत्ते लगभग ३ से ६ इंच तक लंबे होते हैं। इनके फूल सफेद रंग के तथा फल गोलाकार हरी आभायुक्त नील वर्ण के आधे से एक इंच व्यास तक के होते हैं।
रुद्राक्ष के फल खाने में कुछ मीठे व कुछ कसैले, खटास भरे होते हैं। जंगल में पैदा होने वाले इस पेड़ पर फल कार्तिक मास के अंत में या मार्गशीर्ष में लगने लगते हैं। इसके फलों को अनेक पक्षी, विशेषकर नीलकंठ, बड़े चाव से खाते हैं।
रुद्राक्ष का वृक्ष बारहों मास हरा-भरा रहता है, इसमें हमेशा फूल और फल लगे रहते हैं। इसका फल ८-९ मास में सूखकर जब स्वतः पृथ्वी पर गिरता है, तब इसके ऊपर छिलके का आवरण चढ़ा रहता है, जिसे एक विशेष प्रक्रिया द्वारा पानी में गलाकर साफ किया जाता है और इससे मजबूत गुठली के रूप में रुद्राक्ष प्राप्त होता है। रुद्राक्ष के ऊपरी सतह पर प्राकृतिक रूप से संतरे के समान फांकें बनी होती हैं, जिन्हें आध्यात्मिक भाषा में मुख कहा जाता है।
कुछ रुद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छिद्र पाए जाते हैं, जो कि उत्तम कहलाते हैं। रुद्राक्षों का मूल्यांकन उनमें पाए जाने वाले छिद्र, मुख, आकार आदि के अनुरूप किया जाता है।
रुद्राक्ष की जाति के समान दूसरे फल हैं- भद्राक्ष एवं इंद्राक्ष। भद्राक्ष में रुद्राक्ष के समान मुखजनित धारियां नहीं होतीं और इंद्राक्ष वर्तमान में लुप्तप्राय हो चुका है और कहीं देखने को नहीं मिलता।
इसकी पैदावार हेतु उष्ण व सम शीतोष्ण जलवायु एवं २५ से ३० डिग्री सेल्सियस का तापमान अनुकूल माना गया है। इसी कारणवश रुद्राक्ष के वृक्ष समुद्र तल से २००० मीटर तक की ऊंचाई पर पर्वतीय व पठारी क्षेत्रों तथा नदी या समुद्र के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
भारत में रुद्राक्ष मुख्यतः हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों, बंगाल, असम, बिहार, मध्यप्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के जंगलों, सिक्किम, उत्तरांचल में हरिद्वार, गढ़वाल एवं देहरादून के पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण भारत के नीलगिरि, मैसूर और अन्नामलै क्षेत्र में पाए जाते हैं। उत्तरकाशी में गंगोत्री-यमुनोत्री क्षेत्र में भी रुद्राक्ष पाए जाते हैं। कर्नाटक में पाए जाने वाले रुद्राक्ष को मान्यता प्राप्त नहीं है, क्योंकि वानस्पतिक दृष्टिकोण से यहां पाए जाने वाले पेड़ रुद्राक्ष के वृक्ष की जाति से कुछ अलग होते हैं तथा उन पर लगने वाले फल पर मुख जनित धारियां नहीं पाई जाती हैं।
रामेश्वरम में एक मुखी से तीन मुखी तक के रुद्राक्ष पैदा होते हैं। यहां एक मुखी चंद्राकार (जो कि काजू के दाने के आकार का होता है) रुद्राक्ष बड़ी संख्या में प्राप्त होते हैं। गोलाकार एकमुखी रुद्राक्ष के अप्राप्य होने की वजह से वर्तमान बाजार में चंद्राकार (काजू दाना) एकमुखी रुद्राक्ष का प्रचलन सर्वाधिक है।
हिमाचल प्रदेश के परवानू में राजकीय पुष्प उद्यान में करीब ९-१० वर्ष पहले जो रुद्राक्ष का पेड़ नेपाल से लाया गया था, वह अब पूर्ण रूप से विकसित होकर करीब २५-२७ फुट ऊंचा हो गया है और फल देने लगा है।
नेपाल में सबसे बड़े आकार का रुद्राक्ष पैदा होता है तथा यहां के रुद्राक्ष अच्छी किस्म के होते हैं। नेपाल में रुद्राक्ष हिमालय के पहाड़ों पर पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त नेपाल में रुद्राक्ष के पेड़ धरान, ढीगला आदि स्थानों में भी हैं।
संसार में सर्वोत्तम किस्म का एकमुखी बड़े आकार का गोलाकार रुद्राक्ष नेपाल में ही होता है और इसका मूल्य लाखों में होता है। राज्य के नियमानुसार यहां जितने भी एक मुखी रुद्राक्ष उत्पन्न होते हैं, वे सब नेपाल नरेश कोष (शाही खजाने) में जमा करवाने पड़ते हैं, उनके बाजार में बिकने पर प्रतिबंध है। नेपाल का एकमुखी गोलाकार रुद्राक्ष अति दुर्लभ है।
संसार में सर्वाधिक (करीब ७० प्रतिशत) रुद्राक्ष के वृक्ष इंडोनेशिया में पाए जाते हैं। जबकि नेपाल और भारत में लगभग २५ प्रतिशत तथा शेष स्थानों में ५ प्रतिशत होते हैं। संसार में रुद्राक्ष सबसे अधिक भारत में बिकते हैं जिनमें से ६०-७० प्रतिशत केवल हरिद्वार में बिकते हैं।
भारत और नेपाल में पाए जाने वाले रुद्राक्ष आकार में बड़े होते हैं जबकि मलयेशिया और इंडोनेशिया में पाए जाने वाले रुद्राक्ष मटर के दाने के आकार के होते हैं। इनके वृक्ष बौने, पत्ते हरे तथा फल भूरे होते हैं जो आगे सूखकर भूरे, लाल, काले आदि रंगों में बदल जाते हैं। बिना धारी वाला सबसे बड़े आकार का रुद्राक्ष जावा में पाया गया था।
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