हमारे ग्रन्थ/भृगु संहिता जातक के भविष्य कथन को लेकर भृगु संहिता जितना चर्चित ग्रन्थ है, उतना ही विवादस्पद भी। कुछ दैवज्ञ तो इस तरह के किसी ग्रन्थ को ही नकार देते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, इसकी परीक्षा के लिये जब महर्षि भृगु ने विश्वपालक श्री विष्णु के वृक्षस्थल पर प्रहार किया, तो पास बैठी विष्णुपत्नी, धन्देवी महालक्ष्मी ने भृगु को शाप दे दिया कि अब वे किसी ब्रह्मण के घर निवास नहीं करेंगी।
परिणामस्वरूप सरस्वती पुत्र ब्रह्मण सदैव दरिद्र ही रहेंगे। अनुश्रुति है कि उस समय महर्षि भृगु की रचना 'ज्योतिश संहिता' अपनी पूर्णता के अंतिम चारण पर थी, इसलिए उन्होंने कह दिया, 'देवी लक्ष्मी, आपके कथन को यह ग्रन्थ निरर्थक कर देगा।' लेकिन महालक्ष्मी ने भृगु को सचेत किया कि इसके फलादेश की सत्यता आधी रह जायेगी। लक्ष्मी के इन वचनों ने भृगु के अहंकार को झकझोर दिया। वे लाक्स्मी को शाप दें। इससे पहले विष्णु ने भृगु से कहा, 'महर्षि आप शांत हो। आप एक अन्य संहिता ग्रन्थ की रचना करें। इस कार्य के लिये मैं आपको दिव्य दृष्ट देता हूँ। तब तक लाक्स्मी भी शांत हो गयी थी। उन्हें ज्ञात हो गया था कि महर्षि ने पदप्रहार अपमान की दृष्टी से नहीं, परीक्षा के लिये किया था। विष्णु के कथानुसार, भृगु ने जिस संहिता ग्रन्थ की रचना की थी वही जगत में 'भृगुसंहिता' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान की सम्पूर्ण जानकारी देने वाला यह ग्रन्थ भृगु और उनके पुत्र शुक्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूम में है।
एक किन्वंदाती के अनुसार लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व काठमांडू स्थितीत एक पुस्तकालय से इस संहिता के लगभग दो लाख पृष्ठों को एक ब्रह्मण हाथ से लिखकर होशियारपुर (पंजाब) के टूटो माजरा गाँव आया था। वैसे होशियारपुर के कुछ ज्योतिषी असली भृगुसंहिता के अपने पास होने का दावा करते हैं। मान्यता है कि इस ग्रन्थ में विश्व के प्रत्येक जातक की जन्मकुण्डली है और यदि वह मिल जाती है, तो जातक के जीवन के तीनों कालों की जानकारी यथार्थ रूप में प्राप्त हो सकती है।
बाजार में 'भृगु संहिता' के नाम से जो ग्रन्थ उपलब्ध है, वह मूल संहिता ग्रन्थ की एक झलक मात्रा देते है। इसमें में ग्रहों के योगों की संभावनाओं पर ही विशेषरूप से प्रकाश डाला गया है. इसमें कुण्डली संख्या पंद्रह सौ से दो हजार तक है. कहते हैं कि इस कुंडलियों पर चिंतन-मनन करने से दैवज्ञ भविष्य फल कथन करने में निष्णात तो हो ही जाता है.
29 मई 2010
विष्णु ने कहा और भृगु ने रचा
Posted by Udit bhargava at 5/29/2010 12:33:00 am
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