जिस गुरू, संत-महापुरूष में ये सब बातें हों-
1 - जो हमारी दृष्टि में वास्तविक बोध्वान, तत्वग्य दीखते हों और जिनके सिवाय और किसी में वैसी अलौकिकता, विलाक्शंता नहीं दीखती हो.2 - जो कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि साधनों को तत्व से ठीक-ठीक जानने वाले हों.
3 - जिनके संगसे, वचनों से हमारे ह्रदय में रहने वाली शंकाएं बिना पूछे ही स्वतः दूर हो जाती हों.
4 - जिनके पास में रहने से प्रसन्नता, शान्ति का अनुभव होता हो.
5 - जो हमारे साथ केवल हमारे हितके लिये ही संबंध रखते हुए दीखते हों.
6 - जो हमारे से किसी भी वास्तु की किंचिन्मात्र भी आशा न रखते हों.
7 - जिनकी सम्पूर्ण चेष्टाएं केवल साधकों के हित के लिये ही होती हों.
8 - जिनके पासे में रहने से लक्ष्य की तरफ हमारी लगन स्वतः बढ़ती हो.
9 - जिनके संग, दर्शन, भाषण, स्मरण आदि से हमारे दुर्गुण-दुराचार दूर होकर स्वतः सद्गुण-सदाचार रूप देवी संपत्ति आती हो.
श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज के प्रवचन से
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