22 अप्रैल 2011

सादगी ही सफलता है

मेरी सफलता का राज क्या है? कोई मुझे यह पूछे तो मैं यही कहूंगा कि सिर्फ सादगी। मैं यही कहूंगा कि आप काम कोई भी करें सादगी के साथ करें। यह सादगी न सिर्फ आपके काम के तरीके में होनी चाहिए अपितु आपके व्यवहार और व्यक्तित्व में भी होनी चाहिए। मैंने इसका साथ कभी नहीं छोड़ा। सादा जीवन उच्च विचार आपके जीवन का मूल मंत्र होना चाहिए। आप जो भी काम करने जा रहे हैं, उसे करने से पहले उस पर कई बार विचार करें। यह भी विचार करें जो काम आप करने जा रहे हैं, उस काम का आपके आसपास के लोगों पर क्या असर पडेगा, आपके समाज व आपके देश पर क्या असर पडेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके काम से आपके माता-पिता को आपके देश को शर्मिन्दा होना पडेगा, इसलिए आपके द्वारा किया गया काम ऐसा हो जिससे आपकी सफलता का आपके समाज और देश अपर सकारात्मक प्रभाव पड़े।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : मैं मानता हूँ कि इंसान में ईमानदारी जरूर होनी चाहिए। यह ईमानदारी उसके काम में ही नहीं बल्कि उसकी नजर में भी होनी चाहिए, उसके जमीर में होनी चाहिए। जब तक इंसान का जमीर साफ़ नहीं होगा वह ईमानदार नहीं हो पाएगा। इसलिए आप जिस क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं, यह ध्यान रहे कि उस काम को ईमानदारी से करें। आपकी यह ईमानदारी न सिर्फ दिखे बल्कि आप स्वयं इस ईमानदारी को महसूस भी करें। अक्सर लोग सफलता के लिये कई हथकंडे अपनाते हैं। ऐसे लोग दुनिया के नजरों में भले ही कितने सफल कहलाएं पर खुद अपनी सफलता से डरते हैं। सफलता को एंजाय नहीं कर पाते हैं।

सूत्र = सादगी
==========
मुजफ्फर अली, फिल्मकार, फैशन डिजाइनर

आशावादी बनों




मैं इन उसी व्यक्ति को सफल मानता हूँ जो सुबह उठकर पहले यह तय करता है कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं और रात तक वह उन सारे कामों को कई परेशानियों के बाद भी पूरा कर लेता है।


शावादी : मेरी सफलता में आशावादी सोच का महत्व काफी रहा है। मैं अपने मन में निराशा का भाव आने ही नहीं देता हूँ। इसका मुख्य कारण मेरा आशावादी होना है। अगर एक तरीके से देखा जाए तो मेरी सफलता की रेसिपी में आशावादी सोच का तडका कुछ ज्यादा लगाता हूँ। मैं इसी सोच की बदौलत नया और नया करता रहता हूँ व अच्छा करने की आशा में निरंतर आगे बढ़ता रहेगा। युवाओं को मेरी यही सलाह है कि जिन्दगी में हमेशा आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं। जो युवा निर्देशन के क्षेत्र में आना चाहते हैं उन्हें मेरी सलाह है कि प्रयोग जरूर करें, प्रयोग करने से बिलकुल न हिचकिचाएं। प्रयोगवादी दृष्टिकोण व्यक्ति को हमेशा नया, अच्छा व अलग हटकर काम करने के लिये प्रेरित करता है। प्रयोगवादी लोग पुराने ढर्रे पर नहीं चलते बल्कि अपने लिये नया रास्त बनाते हैं। हमेशा उन चीजों को सामने लाने की कोशिश करें जो समाज को कुछ नया दे सकें। आपकी कोशिश होनी चाहिए कि आप समाज की तस्वीर के सामने प्रस्तुत कर सकें।
.
एंजाय : लोग कहते हैं कि सफलता पाने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है। अगर मैं अपनी बात करूं तो मैं मेहनत नहीं करता। मैंने किसी भी काम को करने में कभी मेहनत नहीं की क्योंकि जब मैं कोई काम कर रहा होता हूँ तो उसमें पूरी तरह डूब जाता हूँ। सच तो यह है कि काम में डूबने से ही मोती (सफलता) मिलते है। मैं काम को एंजाय करता हूँ और केवल काम को ही नहीं मैं अपनी जिन्दगी के हर पल को एंजाय करता हूँ। इसलिए मैं चाहे कितने भी घंटे काम करूं, मुझे कभी थकावट नहीं होती। मैं मानता हूँ कि अगर आप किसी काम को यह मानकर करेंगे कि इस काम को करने में मुझे मेहनत करनी है और वह काम आप अच्छी तरह कर भी लेंगे लेकिन उस काम को करते समय आप थकावट महसूस करेंगे, काम का बोझ भी महसूस करेंगे। आप उस काम का आनंद नहीं ले पाएंगे जबकि काम का तो अर्थ की आनंद है।
.
क्स्ट्रा स्ट्रोक : मेरी नजर में सफलता का अर्थ है कि आप जो भी काम कर रहे हैं, उसे करने के बाद आपको लगता है कि काम आपकी उपेक्षा के अनुसार हुआ है तो मैं मानता हूँ कि आप सफल हैं। मैं मानता हूँ कि अगर कोई आदमी सुबह उठकर पहले यह तय करे कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं और रात तक अगर वह वे सभी काम जो उसने सुबह सोचे थे, पूरे कर लेता है तो दुनिया का सफल आदमी है।

मेरी सफलता = आशावादी + एंजाय
===========================
रामगोपाल वर्मा, मशहूर फिल्म निर्देशक

21 अप्रैल 2011

अनुशासन ही जीत है

मंगल और ब्रहस्पति के बीच स्थित एक छोटे से ग्रह का नाम मेरे नाम पर '(12599) सिंघल' रखा गया। यह पुरस्कार मैसाच्युस्टेट  इंस्टीटयूट आँफ टेक्नोलांजी (एमआईटी) की लिंकन लेबोरेट्री (अमेरिका) की तरफ से दिया गया। मुझे 14 साल की उम्र में सबसे कम उम्र का (भारत में) माइक्रोसाफ्ट सर्टिफाइड सिस्टम इंजीनियर (एमसीएसई) घोषित किया गया। इसके बाद सर्टिफाइड लोटस प्रोफेशनल (सीएलपी) और सर्टिफाइड लोटस स्पेशलिस्ट (सीएलएस) भी बना।

नुशासन : मेरी सफलता का सचमुच कोई रहस्या नहीं है। मैंने जीवन में सिर्फ दो चीजें मानीं-पहली जो सीमाएं हैं उसी में सपने साकार करून और दूसरी, उत्साह के साथ अनुशासन को निभाऊं।

क्ष्य : मैंने कम्प्यूटर के बारे में सुना था, लेकिन यह क्या बला है, जानता नहीं था। आठ साल की उम्र में एक महीने का बेसिक कम्प्यूटर कोर्स ज्वाइन किया। इसके तीन साल बाद एक दोस्त के घर जाना हुआ। उसका पीसी एडवांस था, उसकी मल्टीमीडिया कित ने मुझे अपनी और खींचा। पहली बार कम्प्यूटर पर गेम्स देखे। फिर गर्मियों की छुट्टियों में दूसरी बार एक इंस्टीटयूट जाना शुरू किया। मेरे मन में एक पीसी खरीदने की बात आई और इस सपने को पापा ने पूरा किया। अब मेरी बारी थी बस लक्ष्य तय किया और लग गया उसे पाने में।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : बेहतर विकल्प के लिए समस्याओं से मुकाबला करना चाहिए। तभी आप में 'स्किल' आते हैं। परेशानियों से डरकर किसी दूसरे का सहारा लेने की आदत न पालें तो बेहतर हो।

मेरी जीत = अनुशासन + लक्ष्य
=========================
अक्षत सिंघल, सिस्टम इंजीनियर

अपनी दुनिया खोजो


आप अपनी आँख बंद करके ध्यान लगाएं और खुद से पूछें की कौन सा काम करते समय आपको आनंद आता है। ऐसी कौन-सी दुनिया है जो आपको बुलाती है। तभी आप सही फैसला कर पाएंगे।

जरिया : मैं मानता हूँ की यदि कोइ युवा अपने जीवन में करियर का सही चुनाव कर लेता है, तो समझो उसने अपनी सफलता का आधा रास्ता पार कर लिया है। आपकी मंजिल कहाँ हैं? आप क्या बनाना चाहते हैं? अपने जीवन को क्या दिशा देना चाहते हैं? आदि सवालों को लेकर नजरिया साफ़ होना चाहिए। मैं अपने नजरिया को हमेशा साफ़ रखा है। शायद यही कारण है की मैं अपने काम और अपने क्षेत्र से बेहतर न्याय कर पाया और सफलता की सीधे चढ़ता गया।

काम : मेरा मानना है की इंसान का अपना-अपना टेस्ट होता है और वह टेस्ट ही उसे एक-दूसरे से अलग व्यक्तित्व प्रदान करता है। जहाँ तक मेरी सफलता है तो मैंने फोटोग्राफी के क्षेत्र को अपने रुचि से चुना। मुझे मालूम था की मैं फोटोग्राफी बहुत अच्छी कर सकता हूँ। युवाओं से मेरा कहना यही है की यदि उन्हें सफलता का स्वाद चखना है तो अपने व्यक्तित्व से मेल खाते करियर को ही चुनें। जो व्यक्ति ऐसा करते हैं वे लम्बी पारी खेलते हैं नहीं तो कुछ दूर जाने के बाद ही थक जाते हैं।

नो शार्टकट : मैंने कभी अपने करियर में शार्टकट नहीं अपनाया और न ही इस बात की चिंता की की मैं कब सफल हो पाउँगा? बस मेहनत करता गया। दिन-रात काम किया। न्यूजपेपर में बेहतर काम करने की कोशिश की। हमेशा कुछ नया करने का जज्बा मन में बनाए रखा। आज युवाओं में शार्टकट प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। वे हर चेज का फल तुरंत चाहते हैं। युवा इस बात का हमेशा ध्यान रखें की जिस तरह फास्ट फ़ूड खाने में तो स्वादिस्ट होता है, लेकिन सेहत के लिहाज से वह ठीक नहीं है। फास्ट फ़ूड एटीटयूट  अपनाकर आप शार्ट पीरियड में सफलता तो पा लेंगे, लेकिन वह सफलता भी मात्र शार्ट पीरियड के लिए ही होगी। इसलिए युवाओं को मेरी सलाह है की वे अपने जीवन के कार्यक्षेत्र में शार्टकट कभी न अपनाएं।

क्स्ट्रा स्ट्रोक :  मैं इंसान में ईमानदारी  का होना बहुत जरूरी मानता हूँ। यह ईमानदारी खुद को नहीं जानेगा, वह कुछ नहीं कर पाएगा। जब तक आप अपने काम के प्रति इमानदार नहीं रहेंगे तब तक कभी आगे नहीं पहुँच पाएंगे। लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे और जब लोगों को आप पर, आपके काम पर विश्वास नहीं होगा तब तक तरक्की संभव नहीं है।

मंजिल = नजरिया + काम + नो शार्टकट
=================================
रघु राय, प्रसिद्ध फोटोग्राफर

20 अप्रैल 2011

हर प्रयास आख़िरी मानो

मर्पण : आपको जितनी जिम्मेदारी दी गयी है, उससे कुछ ज्यादा नतीजे देने की। आपने क्रिकेट के खेल में देखा होगा जब गेंद बाउंड्री की और जा रही होती है तो कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जो उसे रोकने के खुद को पूरी तरह से झोंक देते हैं। उसे देख कर लगता है जैसे उसने मान लिया हो की यही जिन्दगी का आख़िरी मौक़ा है। छलांग लगा कर, घिसटते हुए, पलटते हुए, लुढ़कते हुए, किसी भी तरह उसे रोकना जरूरी है। हर मौके पर अपना बेहतरीन प्रयास और पूरा समर्पण करना जरूरी है।

संतोष : हम संतोष नहीं करते और खुश रहना नहीं जानते। एक हो जाए तो चार क्यों नहीं, यह सोच कर निराश रहते हैं। उपलब्धियों को ले कर 'और और' की भावना तो अच्छी है लेकिन इन चीजों को ही उपलब्धि नहीं मान लेना चाहिए। इससे आपका तनाव बढेगा और कामयाबी आपसे दूर हो जाएगी।

लीडरशिप : मैं भी एक लीडर हूँ। मेरे परिवार के 22 हजार सदस्य हैं, जिनके साथ मैं काम करता हूँ। आप जब यह मानने लगेंगे की भगवान् ने जितने लोगों को बनाया है, उसमें अपना कुछ हिस्सा लगा दिया है, तो आप अपने साथ के लोगों का महत्व भी स्वीकार करने लगेंगे। फुटपाथ पर सोया आदमी भी अपने अन्दर एक बेशकीमती चीज छुपाए है। आपको जिन लोगों के साथ काम करना है, कम से कम उनके अन्दर की उस चीज को जरूर पहचान होगा।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : दुनिया आपको मुफ्त में कुछ नहीं देती। सफलता जैसी बेशकीमती चीज तो बिलकुल नहीं। जो लोग सफलता का पकवान चखना चाहते हैं, उन्हें कड़ी मेहनत के लिए तैयार रहना ही होगा। मैं दिन में 14 से 16 घंटे काम करता हूँ। 60 साल का हूँ और आज भी रात नौ बजे तक दफ्तर में काम करता हूँ।

मेरी सफलता = समर्पण + संतोष + लीडरशिप 
-------------------------------------------------
आर.ए. माशेलकर, वैज्ञानिक और सीएसआईआर के निदेशक

साहसी बनो प्रयोग करो

डिश की तरह ही सफलता की रेसिपी में भी कुछ मसाले लगते हैं। इंसान के गुण यदि चावल हैं तो पानी हुनर है कोइ भी इन्हें सीखने की आंच पर तपा कर बेहतर बना सकता है। फिर बेचने की कला मिलाओ 'स्वादिष्ट सफलता' तैयार। 
 
प्रयोग : पुराने नियमों के आधार पर सिर्फ खोज की जा सकती है, आविष्कार नहीं होते। मैं हमेशा से नए-नए प्रयोग करता रहा हूँ। शायद मेरी सफलता का राज भी यही है। बस साहस करके आपको अपने खुद के प्रयोग करने होंगे। नए की तलाश करनी होगी। परम्परा से बांध कर आप साहसी नहीं बन सकते। मैं एक फिल्म निर्देशक के साथ सेट पर था, उसके काम को गौर से देख रहा था। एक कलाकार काफी कोशिश के बावजूद अपना किरदार ठीक नहीं कर पा रहा था। मैंने इजाजत ले कर उसे करने की कोशिश की। इस प्रयोग की सफलता के बाद मैं एक कलाकार भी हूँ और फिल में भी काम कर रहा हूँ।

सोच : आम तौर पर हम तर्क और ज्ञान के आधार पर ही सभी चीजों को देखते हैं, लेकिन रचनात्मकता इन सबसे अलग और बेहतर चीज है। ज्ञान और तर्क का इस्तेमाल रचनात्मकता (नई सोच) के साथ करने से कामयाबी हासिल हो सकती है। आज दुनिया भर में लोग मेरे योगा को पसंद करते हैं, तो इस सफलता में रचनात्मकता प्रमुख वजह है। मैंने योग को भी एक ले दी. योग नृत्य शुरू किया। योग का अभ्यास करने की जगह को मैं स्टूडियो कहता हूँ।

खोज : अगर आप्मने कामयाबी हासिल करने की चाहत है तो इसके लिए खुद में खोज करनी होगी। एक हद तक खतरे उठाने के लिए भी तैयार रहना होगा। आम तौर पर हमें अपनी खूबियों का पता तब चलता है, जब उनका इस्तेमाल करना होता। इंसान भी कुछ हद तक कई आवरणों से घिरा होता है। आम आईने में जिसे देखते हैं, दरअसल आप वह हैं ही नहीं। अपनी खूबियों का पता लगाइए। आप और शानदार आदमी हैं।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : नई चीजें सीखने के क्रम में आप अपना ध्यान न भटकाएँ। जो सीख रहे हैं, उसका उपयोग अपने लक्ष्य को हासिल करने में करें। मैंने बताया की फिल्म की शूटिंग के दौरान मैं अभिनय का प्रयोग किया था। इसके बाद मुझे निर्देशक ई. निवासी की एक फिल्म में अभिनय के लिए कहा। मैं वह फिल्म कर रहा हूँ, किन्तु मुझे भटकना नहीं है। योग ही मेरा जीवन है और मुझे अपने इस अनुभव का इस्तेमाल भी उसी में करना है।

मेरी सफलता = प्रयोग + सोच + खोज
-----------------------------------------
भरत ठाकुर, योग गुरू


कोशिश करते रहो


जब भी लक्ष्य तय करो, उसके लिए जुनूनी होना होगा। नाकामियों का आप पर नकारात्मक असर नहीं होना चाहिए। लक्ष्य को हासिल करने में कितना समय लग रहा है, उससे विचलित होने की जरूरत नहीं है।

जुनून : जीवन में किसी भी काम के लिए जूनून होना बहुत जरूरी है। मैं अपने जीवन में इसे बहुत महत्व दिया है। जब भी लक्ष्य तय करो, उसके लिए जुनूनी होना होगा। नाकामियों का आप पर नकारात्मक असर नहीं होना चाहिए। लक्ष्य को हासिल करने में कितना समय लग रहा है, इससे विचलित नहीं होना चाहिए। वर्ष 1996 में मैंने मैनेजमेंट कंसल्टेंसी ग्रुप प्लानमैन शुरू किया था। पहले साल इसके जितने डिवीजन खोले, वे सब अगले साल बंद हो चुके थे। मैंने एक पत्रिका शुरू की थी, एक टीवी प्रोडक्शन सिवीजन था, एक मीडिया मार्केटिंग डिवीजन था, लेकिन उस विफलता से मैंने अपनी पहल रोकी नहीं। नाकामी के बाद आप तय करें की अब अगला कदम क्या हो सकता है। हमें खुद अपने अन्दर से प्रेरणा लेने की क्षमता विकसित करनी होगी। प्रेरणा के लिए दूसरों पर निर्भर हो कर कामयाबी कभी नहीं हासिल हो सकती। सभी कामयाब लोग Self motivated होते हैं। आम तौर पर हम सोचते हैं की जिनको सफलता की जरूरत ज्यादा होती है, वे ज्यादा बड़े खतरे मोल लेते हैं, लेकिन हकीकत ठीक उल्टी । जब आप बड़े खतरे मोल लेते हैं तो विफलता और फिर उससे Demotivated होने की आशंका भी बढ़ जाती है। मैंने अपनी शुरूआती गलतियों के बाद इस बात को और अच्छी तरह से समझ लिया है की हमने अगर कामयाबी हासिल करनी है तो हमेशा Calculated risk ही लेनी होगी। हालांकि लक्ष्य बहुत आसान भी नहीं हो और चुनौती बनी रहे।

रिश्ते : अपनी ही और से बनाए गए श्रेष्ठता के पैमाने से मुकाबले करते रहना चाहिए। नहीं तो आपको हमेसा अपनी जिन्दगी और अपने अस्तित्व पर दुःख होगा। खुशी की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिए। इससे आपके विफल होने की आशंका ज्यादा बढ़ जाएगी। मेरे लिए Excelence क्या हो यह खुद तय करना है। दूसरों को क्या हासिल हुआ है इससे मुझे प्रभावित नहीं होना । रिश्तों को दीर्घकालिक। दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ बनाए ऐसे रिश्ते आपको बहुत मदद पहुंचा सकते । जिन लोगों के उपलब्धि की कामना होती है। उनके अन्दर एक ख़ास किस्म का स्पार्क होता है। ऐसा व्यक्ति टिकाऊ रिश्तों में भरोसा करेगा। आखिरकार हम सामाजिक प्राणी हैं। यह ठीक है की हम अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं और हमें प्रेरणा लेने के लिए भी किसी की जरूरत नहीं है लेकिन इसके बावजूद हम बिलकुल अकेले नहीं चल सकते। हमें एक भावनात्मक सहयोग की जरूरत होती है।

लीडरशिप : मैंने अपने संस्थान की पिछली सालाना बैठक में एक ही एजेंडा पेश किया। मैंने यहाँ काम करने वाले सभी लोगों से सिर्फ यही कहा की अगली मुलाक़ात में मुझे आप सब यह बताएं की आपने इस दौरान कितने लीडर बनाए। एक सफल लीडर वही है जो दूसरा सफल लीडर पैदा कर सकता है। अगर आप आगे बढना चाहते हैं तो आपको लीडर पैदा करने। ऐसे लोग पैदा करने होंगे, जो आपकी जगह ले। 1996 में जब मैंने प्लानमैन कंसल्टेंसी शुरू की थी, तब हम पांच लोग थे. आज हम 300 लोग हैं और यहाँ 15 डिवीजन हैं। अगर मैं चाहूं की सभी 15 डिवीजन के काम मैं खुद संभालूँगा, तो यह मुमकिन नहीं हो सकता। मुझे अपने साथ ऐसे लोग विकसित करने होंगे, जो अपने फैसले खुद ले सकें। मेरे साथ काम करने वाले बहुत-से लोग हैं और वे भी अपनी टीम का नेतृत्व कर रहे हैं।

क्स्ट्रा स्ट्रोक : लोग सोचने लगते हैं की उनके पास जितने उत्पाद होंगे, वे उतनी ही खुश होंगे। आज पूरी मानवता इस समस्या से प्रभावित है। लोग ज्यादा से ज्यादा सामान हासिल करने को ही सफलता मानने लगे हैं। लेकिन उत्पादों से पैदा होने वाली खुशी और संतोष बहुत थोड़े समय के लिए होती है। आज अगर आप 29 इंच का कलर टीवी घर लाए हैं तो तीन दिन तक बहुत उत्साह रहेगा। चौथे दिन आप शायद टीवी चलाना भूल जाएंगे और फिर अगले साल आप सोचेंगे की होम थिएटर कैसे खरीदा जाए। उत्पाद का उपभोग उसकी कीमत घटाता है, वह उतनी ही कम पसंद आने लगेई है। इससे हमारा दिमाग अस्थिर होता है और कभी संतुष्टि नहीं मिलती. हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं। जबकि रिश्ते, किताबें, पेंटिंग, संगीत और प्रकृति जैसी चीजें ऐसी होती हैं, जिनसे आप जितना अधिक नजदीक जाएंगे, उतना अधिक प्यार करेंगे। अगर कल को इतना पैसा हो जाए की और बड़ा टीवी खरीदा जा सकता है तो मैं लें आउंगा, लेकिन उसको अपना लक्ष्य नहीं बनाया जा सकता. अपने खुद के बनाए आदर्श को छूना है और फिर पीछे छोड़ना है। मेरा लक्ष्य नहीं होना चाहिए।

सफलता  =  जूनून + रिश्ते + लीडरशिप 
---------------------------------------------
अरिंदम चौधरी, मैनेजमेंट गुरू, मोटिवेटर

सबसे पहले सपना पालो


सपने जरूर देखें और उन सपनों को साकार करने की तीव्र चाह अपने अन्दर पैदा करें मेहनत व दिल से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता।
 .
फलता, असफलता तो सभी के साथ लगी रहती है। पर आत्मविश्वास आपकी जिन्दगी में बहुत जरूरी है। मेरा यह सफ़र सपने और आशावादी की मजबूत बुनियाद पर खडा है।
अपनी चरम आशावादी प्रवृत्ति और उन्मुक्त वैचारिक श्रृंखलाओं के बीच वायुसेना में पायलेट बनने का एक मात्र लक्ष्य मैं कब निर्धारित कर लिया था इसका मुझे पता ही नहीं चला। खैर, अपनी पढाई के समाप्त होते ही अपने इस एक मात्र ख्वाब को हकीकत में बदलने के लिए मैं देहरादून में आयोजित वायुसेना की मौखिक परीक्षा में सम्मलित हो गया। मौखिक परीक्षा में अंतिम रूप से अपने चयन के प्रति मैं पूरी तरह से आश्वस्त था। लेकिन परिणाम के घोषित होने के साथ मानो मैं आसमान से गिरकर खजूर में अटक गया। मुझे असफल करार दे दिया गया था। इसके साथ ही मेरा एक मात्र खवाब भी बुरी तरह से टूटकर मिट्टी में मिल चुका था। मैं निराश था।

घनघोर निराशा के इसी दौर में ऋषिकेश में मेरी मुलाक़ात स्वामी शिवानन्द से हुई जिनके चेहरे से झलकती हुई निर्विकल्प शांति और बालसुलभ मुस्कराहट ने बरबस ही मुझे उनकी और आकर्षित कर दिया। मैंने अपनी सारी परेशानियाओं का उल्लेख स्वामी जी से किया। मेरी परेशानियों को ध्यानपूर्वक सुनाने के बाद स्वामी जी ने स्नेह से मेरे सर पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए बोले - 'कलाम, तीव्र चाह हमेशा एक विशुद्ध ऊर्जा से भरी होती है और जो सूर्य की किरणों की भाँती ही अविराम, सत्य और शास्वत है अतः इस असफलता को भूलकर अपनी नियती और ऊर्जा को पहचानो। उसी पथ का निर्माण करो, जिसके लिए तुम बने हो, मंजिल तुम्हारे कदम चूमेगी।

स्वामी जी के इन वचनों के साथ ही मेरी सारी उलझनें, मेरे सारे गतिरोध, सारी परेशानियां काफूल होगी। मैं अपनी समस्त आतंरिक शक्तियों के साथ अपनी मंजिल के लिए जुट गया। लक्ष्य के प्रति समर्पित मेरी चाहतों ने मेरे कई सपनों को जन्म दिया...... और मैं अपने सार्थक प्रयासों तथा समर्पित कार्यों की बदौलत हर एक सपनो को साकार करता चला गया। मैं जब भी अपने अतीत में झांकता हूँ तो इस कथन को सौ फीसदी सच पाता हूँ। यह सच है की अपने समस्त जीवन में वास्तविक सपनों के निर्माण में मैंने कहीं कोइ कोताही नहीं बरती। जब भी कभी मेरी आशा, सपने या लक्ष्य अपारदर्शी होते दिखे मैंने हमेशा इसके पीछे छिपे लक्ष्य प्राप्ति के स्वर्णिम अवसर को ढून्ढ निकाला। एक राष्ट्रपति के रूप में भी मैं देश और जनता को शान्ति, सफलता और सम्रद्धि की सफलतम मंजिल तक पहुंचाने का एक मात्र ख्वाब ही देखता हूँ।
 .
देश के सभी युवाओं को मैं कहना चाहता हूँ की सपने जरूर देखें और उन सपनों को साकार करने की तीव्र चाह अपने अन्दर पैदा करें और जुट जाएं अपने ख़्वाबों को साकार करने में। मेहनत व दिल से किया गया प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता। अतः सफलता के लिए सपने देखना बहुत जरूरी है क्योंकि सपने ही नहीं देखोगे तो उन्हें पूरा भी नहीं कर पाओगे।
.
कामयाबी = सपने + आशावादी  
---------------------------------
एपीजे अब्दुल कलाम, भूतपूर्व राष्ट्रपति