11 सितंबर 2010

शिल्पा शेट्टी ( Shilpa Shetty )


साल की उम्र में अपना एक्टिंग कैरियर शुरू करने वाली शिल्पा ने बौलीवुड को अनेक सफल फ़िल्में दी हैं। उन्होंने बतौर अभिनेत्री अपने कैरियर की शुरूआत 'फिल्म गाता रहे मेरा दिल' से की थी। इस फिल्म के बाद उन्हें 'बाजीगर' फिल्म में काम करने का ऑफर मिला और इस फिल्म के हिट होने के साथ की उन के भविष्य के रास्ते खुदबखुद खुलते गए।

जिस समय उन का कैरियर ढलान पर था उस समय वह बिग ब्रदर का खिताब जीत कर एक बार फिर दुनिया भर में सुर्ख़ियों में छा गईं।

8 जून, 1975 को कर्नाटक में जन्मी शिल्पा का निक नेम है मान्या, जबकि उन की माँ उन्हें  बबूचा नाम से पुकारती हैं। शिल्पा की माँ सुनंदा और पिता सुरेन्द्र शेट्टी अपने समय के मशहूर मॉडल रह चुके हैं।

अवार्ड से सम्मानित
शिल्पा को 3 बार फिल्मफेयर के बेस्ट ऐक्ट्रेस अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। शिल्पा ने अनेक फ़िल्में की हैं जैसे 'आग', 'आओ प्यार करें', 'हथकड़ी', 'छोटे सरकार', 'जमीर: द अवेकनिंग ऑफ ए सोल', 'गैंबलर', 'धड़कन', 'डरना मना है', 'शादी कर के फंस गया यार' आदि.. फिल्म फिर मिलेंगे में उन की एक्टिंग को दर्शकों और फिल्म समीक्षकों ने विशेष रूप से सराहा। इस फिल्म के लिये उन्हें बेस्ट ऐक्ट्रेस अवार्ड से भी सम्मानित किया गया। इस के अलावा उन्हें 1998 में आई फिल्म 'परदेसी' के लिये जी गोल्ड बौलीवुड बेस्ट सपोर्टिंग अवार्ड भी प्रदान किया गया।

फिल्म और टीवी के अलावा उन का नाम क्रिकेट से भी जुडा है। वह राजस्थान रायल्स की सह मालकिन हैं और क्रिकेट में गहरी रुचि रखती हैं। शिल्पा आज अनेक महिलाओं की आइडियल बन चुकी हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और संघर्षों से जूझते हुए अपने रास्ते खुद तलाशे हैं। शिल्पा के साथ अनेक विवाद जुड़े हैं।

रिचर्ड गेरे और शिल्पा के किस का मामला लम्बे समय तक सुर्ख़ियों में रहा। वहीं शिल्पा के पेरेंट्स को जबरदस्ती वसूली की धमकी भरे फोन करवाने के भी चर्चे सुर्ख़ियों में रहे। प्रफुल्ल साडी के मालिक पंकड़ अग्रवाल ने आरोप लगाया था की शिल्पा के पेरेंट्स ने उसे मुंबई अंडरवर्ल्ड गैंग से जबरन वसूली के लिये धमकाया। क्योंकि उस के पेरेंट्स का कहना था की शिल्पा ने प्रफुल्ल साडी  के लिये जो मॉडलिंग असाइंमेंट साइन किया था उस के लिये शिल्पा को 3 करोड़ रूपये अदा करने की बात थी जबकि उसे मात्रा 50 लाख रूपये ही दिए गए। लेकिन पंकज अग्रवाल का कहना था की वह शिल्पा को एडवांस में ही पूरी रकम दे चुके हैं। इस विवाद से शिल्पा काफी परेशानियों में घिर गई थीं।

राखी सावंत ( Rakhi Sawant )


लीवुड की आइटम गर्ल यानी राखी सावंत किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं। इस का कारण यह है की उन्हें हमेशा सुर्ख़ियों में बने रहने का हुनर आता है। राखी सावंत और विवादों का चोलीदामन का साथ रहा है। कभी उन के बॉयफ्रेंड अभिषेक से उन का ब्रेकअप के कारण तो कभी मीका के चुम्बन विवाद से वे हमेशा लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती रही हैं।

राखी ने फिल्मों में काम करने के बाद टीवी का रूख करते हुए कई शो किये, जिन से उन की लोकप्रियता खूब बढी। लेकिन 'राखी का स्वयंवर' शो के बाद घरघर में उन की चर्चा शुरू हो गई। यहाँ तक की उन्होंने टीवी पर स्वयंवर रचाने की नई प्रथा की शुरूआत की। राखी का जन्म 25 नवम्बर 1978 को मुंबई में हुआ। उन का नाम पहले कुट्टी  सावंत था।

विवादों का साया
राखी सावंत में दूसरों का ध्यान आकर्षित करने की विशेष योग्यता है। उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरूआत 1997 में 'अग्निचक्र' के साथ की। राखी के लिये यह कहना गलत नहीं होगा की हिट आइटम नंबरों और अलबमों में डांस की वजह से राखी आईटम डांसर के नाम से मशहूर हुईं।

इस के बाद फिल्मों में आइटम डांस के जरिये उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ली।

राखी सावंत का सब से विवादस्पद मुद्दा राखी और मीका चुम्बन रहा, जिस के बाद से विवादों ने उन का साथ नहीं छोड़ा। इस से पहले राखी का विवाद उन के बॉयफ्रैंड अभिषेक को ले कर रहा। काफी लम्बे समय तक राखी का अभिषेक के साथ अफेयर आखिरकार 'नच बलीए' शो के बाद ख़त्म हो गया।

बिग बौस रियलिटी शो में राखी सावंत का विवाद कश्मीरा शाह के साथ शुरू हुआ, जो अब तक चला आ राह है। अपने बडबोलेपन और तेज स्वभाव की वजह से आए दिन राखी किसी न किसी नए विवाद को जन्म दे देती हैं।

बनीं बिजनेस विमन
सेंसर बोर्ड ने राखी से कहा है की वे अपने ने अलबम के एक गीत से 'कमीनी' शब्द को हटाएं। इस बारे में राखी सावंत का कहना है की जब सेंसर बोर्ड एक पूरी फिल्म 'कमीने' को रिलीज होने दे सकता है तो मेरे वीडियो अलबम  से उन्हें क्या दिक्कत है।

विवादों और रियालिते शो में थकहार राखी आजकल बिजनेस विमन के नाम से जानी जा रही है। मुंबई में स्पा का बिजनेस शुरू कर चुकीं राखी अब प्रोडक्शन हाउस, डांस एकेडमी और रेकार्डिंग स्टूडियो भी खोलने जा रही हैं। इस स्टूडियो को ले कर अब राखी बड़ेबड़े सपने देख रही हैं। यही नहीं वे बाइबल पर सीरियल बनाए का फैसला भी कर चुकी हैं।

10 सितंबर 2010

कुछ बातें नाखून के बारे में ( Some things about Nail )


मीन पर पडी पतली से पतली पिन को उठाने में आपके नाखून आपकी मदद तो करते ही हैं। ज़रा सोचिये, यदि उँगलियों पर नाखून न होते तो समाज इस खूबसूरती से वंचित न रह जाता?

आपके नाखूनों में और भी बहुत से रहस्य छिपे हैं, आपके नाखून आपके व्यक्तित्व, आपके स्वस्थ और आपकी समृद्धि के संबंध में भी बताते हैं। यदि अपने नाखूनों पर प्रकृति द्वारा अंकित शुभ संदेशों को पढ़ लें तो आप अपने जीवन को और अधिक सुखी बना सकते हैं।

वो कैसे, आइए जाने-
यदि किसी के नाखून बढे हुए हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि वह व्यक्ति बहुत ही आलसी और कामचोर है।

यदि नाखूनों में मेल भी है तो समझिये कि वह अत्यंत दुखी व्यक्ति है। लेकिन इसी के साथ ऐसे व्यक्ति का विशेष गुण यह है कि वह किसी को धोखा नहीं देना चाहता। वह अधिकतर चुप रहना चाहता है।

यदि आपके नाखून लाली दर्शा रहे हैं तो आप प्यार के मामले में बहुत ही भाग्यशाली हैं। आप प्यार दे सकते हैं, और प्यार पा सकते हैं।

यदि नाखूनों में सफेदी की चमक अधिक है तो इसका अर्थ है- दुर्भाग्य।

कभी-कभी यदि गुलाबी नाखून वाले व्यक्ति को देखें तो पायेंगे कि वह अपने वायदे निभाने में पका है, चाहे इन वायदों का संबंध पैसे से हो या प्यार-मुहब्बत के मामलों से हो।

किसी व्यक्ति को आप नाखून चबाते देखें तो समझ लें कि वह व्यक्ति अपनी जिन्दगी को भी यूं ही चबा रहा है, अर्थात गँवा रहा है और जीवन के संघर्ष में समय के साथ नहीं चल रहा, इसका अर्थ यह भी हुआ कि व्यक्ति का अपने ऊपर नियंत्रण नहीं है और तनाव में जी रहा है। ऐसा व्यक्ति अक्सर तनाव सम्बन्धी तकलीफें अपने बारे में बताता हुआ मिलेगा।

यदि कोई व्यक्ति बात करते हुए नाखूनों  को चबाता भी जा राह है तो समझ लें कि उस व्यक्ति के मन में कुछ और है वह कह कुछ और रहा है।

कई प्रकार की रक्त संबंधी बीमारियों का पता नाखूनों द्वारा लगता है। जब कभी नाखूनों के नीचे खून के धब्बे उभरते नजर आएं तो समझ लें कि कोई रक्त संबंधी बीमारी हो गई है और चिकित्सक को दिखाएँ।

ह्रदय रोग से पीड़ित व्यक्ति की पहचान है कि उसके नाखून हलके नीले पद जाते हैं। यदि आपके नाखून सफेदी लिये हुए हैं तो समझ लें आपमें खून की कमी हो गई है और आप 'एनीमिक' हैं।

हम अपने नाखूनों को काटते हैं, घिसते हैं, उन्हें रूप देते हैं, सुन्दर बनाते हैं, लेकिन हमारे स्वस्थ में वे महत्वपूर्ण सूचनाएं देते हैं, जैसे- एनीमिक होने के साथ और विटामिनों की कमी के बारे में भी बताते हैं।

नाखूनों के संबंध में मजेदार बात यह है कि गर्मियों में वे अधिक तेजी से बढ़ते हैं।

नाखूनों के बढ़ने की औसत गति गर्मियों के मौसम में एक मास में एक इंच का आंठवा भाग बढ़ने की है। बीच की ऊंगली का नाखून अधिक तेजी से बढ़ता है, जबकि बाकी दो ऊँगलियाँ कम गति से बढती हैं। इनसे भी कम गति से अंगूठे और छोटी ऊंगली के नाखून बढ़ते हैं। यदि किसी दुर्घटनावश आपकी ऊंगली या अंगूठे का पूरा नाखून ही उतर जाए तो नया नाखून पूर्ण रूप से बढ़ने में लगभग आधा साल लग जाता है। यदि आप अपने नाखून कभी न काटें या उन्हें टूटने भी न दें और पचास वर्षों तक इसी प्रकार से बढ़ने दें तो उनकी औसत लम्बाई 6 फुट हो जायेगी।

इस खीरे में बड़े-बड़े गुण ( The Cucumbers large - large properties )

खीरा बहुत गुणकारी है, यह तो सभी जानते हैं। फिर भी खीरे के ऎसे कई गुण हैं, जिनसे हम अनजान हैं। आइए जानते हैं खीरे के कुछ ऎसे ही गुणों के विषय में...

खीरे में विटामिन-बी और कार्बोहाइड्रेट होता है, जो तुरंत एनर्जी देता है। यह फैट्स कम करता है। साथ ही यह सिरदर्द भगाने और मुंह की दुर्गन्ध दूर करने में भी काम आता है। इसे खाना डायबिटीज, किडनी, लीवर आदि की बीमारियों में भी लाभदायक है।

भोजन के साथ ही खीरा अन्य कार्यों में भी उपयोगी है। इससे आप स्टील के बर्तनों पर पड़े पुराने दाग मिटा सकते हैं। साथ ही यह कपड़ों से पेन के दाग मिटाने के काम भी आता है।

खीरे की तासीर ठंडी होती है। ऐसे में यह त्वचा के लिए काफी लाभदायक होता है। इसका रस चेहरे पर लगाने से चमक आती है। इसमें फाइटो केमिकल होता है, जिससे झुर्रियां कम होती हैं।

खीरे में विटामिन-बी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, मैगनीशियम, फासफोरस, मिनरल और जिंक जैसे कई तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के पोषण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

09 सितंबर 2010

थकान से बचिए विश्राम करिए ( Do rested from fatigue Bacie )


यः यह देखा गया है कि जब मनुष्य थकता है तो वह तुरंत पोषक तत्व विटामिंस, खनिज लावण और टांनिक की गोलियों या पेय पदार्थों की ओर झुकता है। परन्तु इस प्रकार की विधियों से थकावट मिटती नहीं, दब जाती है। ज्योंही इन पोषक तत्वों को बंद किया जाता है, थकावट पहले से अधिक विकृत अवस्था में उभरकर सामने आ जाती है। अतः शारीरिक और मानसिक थकावट को प्राकृतिक ढंग से दूर किया जाए तो वे जड़ से दूर होती है दबती नहीं।

शारीरिक थकावट
थकावट दो प्रकार की होती है शारीरिक और मानसिक। मानव शरीर की रचना ऐसी होती है कि यदि उसके विभिन्न अवयवों से आवश्यकता एवं उसकी शक्ति से अधिक कार्य लिया जाए तो वे कुछ समय पश्चात विद्रोह कर बैठते हैं और परिणामतः शारीरिक थकावट बढ़ती जाती है। आवश्यकता एवं सामर्थ्य से अधिक कार्य करने के कारण शरीर के अवयवों के शिथिल हो जाने को हम शारीरिक थकावट कहते हैं।

मानसिक थकावट
मानसिक थकावट के अनेक कारण होते हैं- यदि किसी व्यक्ति को कोई ऐसा कार्य दे दिया जाए, जिसमे उसे रुचि न हो या वह काम उसकी कार्यक्षमता से अधिक हो तो वह व्यक्ति मानसिक थकावट महसूस करेगा। मानसिक थकावट का वैसे वास्तविक कारण है अव्यवस्थित जीवन, अनावश्यक दौड-धूप और चिंतन से इसका जन्म होता है। थकावट के अन्य मुख्य कारण हैं- कब्ज, गर्म और उत्तेजक पदार्थों का सेवन, सिर से रक्त की अधिकता, रक्त की अल्पता, अत्यधिक चिंतन, पौष्टिक आहार की कमी, असंतुलित भोजन, क्रोध, भय, चिंता, घृणा, ईर्ष्या-द्वेष तथा चिडचिडेपन की अधिकता, मानसिक थकावट के अन्य प्रमुख कारण हैं।

थकावट दूर करने के उपाय
यदि आप रोज थके-थके से रहते हैं तो सबसे पहले अपनी रोज की कार्यप्रणाली पर ध्यान देकर उसमें उचित परिवर्तन लाएं। अपनी कार्यक्षमता से अधिक कार्य न करें।
प्रत्येक कार्य को एक-एक कर निपटाइए। जब थकावट या ऊब महसूस करें तो काम बंद कर दीजिये।
अपने आहार पर विशेष ध्यान दें। पौष्टिक तत्वों, खनिज लवणों से भरपूर संतुलित और सात्विक भोजन की आदत डालें।
आवश्यकता से अधिक भोजन करने से लाभ के बजाय हानि ही होती है, क्योंकि पाचन-तंत्र उन्हें पचाने में असमर्थ रहते हैं और वह पचा-अधपचा आँतों में इधर-इधर जमा होकर विकार उत्पन्न करता है।
सप्ताह में एक बार उपवास अवश्य करें। किसी खुले, हवादार स्थान पर जाकर गहरी-गहरी साँसे लेकर छोड़ें। इससे आपको एकदम आराम महसूस होगा। वैसे भी स्वस्थ्य और शारीरिक सौंदर्य के लिये शुद्ध वायु सेवन बहुत जरूरी है।
जम्हाई या उबासी आने को लोग बहुधा आलस्य और थकावट का चिन्ह मानते हैं, परन्तु वास्तव में जम्हाई तब आती है जब फेफड़ों को सुचारू रूप से कार्य करने के लिये अतिरिक्त आक्सीजन की आवश्यकता पड़ती है।
कब्ज से बचिए तथा अपने आपको चिंताओं से मुक्त रखने का प्रयास कीजिये।
रात्री को प्रायः हल्का-सुपाच्य भोजन कीजिये और भोजन के बाद थोड़ा टहलिए।
सोने से पहले ठन्डे पानी से हाथ-मुंह, पैरों को अच्छी तरह धोइए। इससे अच्छी और गहरी नींद आयेगी और शरीर का तनाव दूर होगा।
गर्म, उत्तेजक, अधिक मिर्च-मसाले का भोजन मत कीजिये।
अधिक से अधिक हरी सभियों, मौसमी फलों का उपयोग कीजिये, जो सब्जियां कच्ची खाने लायक हों, उन्हें कच्चा ही खाइए।
पेट, आतों, फेफड़ों, नस-नाड़ियों आदि को विकारयुक्त रखने के लिये नियमित योग, व्यायाम-प्राणायाम की आदत डालिए। कुल मिलाकर 15-20 मिनट भी उचित ढंग से व्यायाम योग आदि कर लिया जाए तो काफी आराम होता है।
प्रतिदिन आंवला, नीम्बू या थोड़े से शहद का नियमित सेवन कीजिये।
शरीर की थकन मिटाने के लिये मालिश सबसे कारगर इलाज है। तेल मालिश से शरीर की मासपेशियों, नस-नाड़ियों क तनाव दूर होता है।

अनूठा है गुरु शिष्य का संबंध ( Unique master disciple relationship )



म संबंधों में एक इंसान अपने लिये, अपनी इच्छा अनुसार, अपने जैसा, अपने योग्य-अयोग्य, भला-बुरा आदि देख कर ही किसी को चुनता है, और संबंध बनाता है। प्रेम में इंसान बिना सोचे-समझे, किसी भी नफ़ा-नुकसान की चिंता के, किसी को चुनता नहीं है बल्कि किसी  का हो जाता है। सामने वाले को ज्यों का त्यों हर बुराई-अच्छाई के साथ स्वीकार करता है और बिना किसी लोभ के संबंध बनाता है। एक मतलबी, चालाक व्यक्ति या राजनीतिज्ञ बहुत सोच समझकर किसी से संबंध बनाता है वह अपने से ऊंचे, ताकतवर या कामयाब आदि से संबंध बनाता है ताकि वह उसके  काम आ सके, उसे अपनी सफलता का सोपान बना सके। तमाम तरह के संबंधों में से एक संबंध ऐसा भी है जो स्वयं में अद्भुत एवं पूजनीय है और वह है गुरू-शिष्य संबंध। यह एक ऐसा संबंध है जिससे जीवन के सारे द्वार खुल जाते हैं। यह एक ऐसा बंधन है जहाँ बंधन मुक्ति बन जाता है। न केवल संसार का बल्कि स्वयं का मोह भी पीछे छूट जाता है। यह बंधन जन्म-जन्म के बंधनों से शिष्य को स्वतंत्र कर देता है।

इस संबंध को और भी निराला बनाती है गुरू-शिष्य के बीच की असमानता। अर्थात जहाँ एक ओर अन्य संबंध अपने आपसी संबंधों में समानता तलाशते हैं वहीं गुरू-शिष्य संबंध में दोनों एक दूसरे के ठीक विपरीत होते हैं बल्कि असमान भी होते हैं। दोनों की अवस्था एवं स्तर में जमीन आसमान का अंतर होता है परन्तु यही अंतर दोनों के संबंध का आधार होता है। गुरू महाज्ञानी होता है तो शिष्य महामूढ़ होता है। गुरू मुक्त होता है, तो शिष्य बंधा होता है। गुरू देने वाला होता है तो शिष्य लेने वाला। इतनी असमानता होने के बावजूद भी दोनों में संबंध निर्मित होता है।

अन्य संबंधों में हर कोई स्वयं को ऊपर या श्रेष्ठ समझता है तथा अपने सामने वाले को हराना चाहता है। स्वयं की हार या नुकसान को कभी गले नहीं लगाना चाहता बल्कि अपनी हार या कमी को दूसरों के कंधे पर लाद देता है और अपनी हर असफलता के लिये दूसरे को जिम्मेदार ठहराता है परन्तु गुरू शिष्य संबंध में ऐसा नहीं है। जिस दिन गुरू अपने शिष्य से हार जाता है उस दिन उसका सीना गर्व से और चौड़ा हो जाता है। ठीक इसके विपरीत यदि शिष्य कहीं कोई  गलती करता है या अपनी  कमी के कारण लज्जित होता है तो गुरू स्वयं को जिम्मेदार पाता है। कमी अपने शिष्य में नहीं अपनी शिक्षा-दीक्षा में ढूँढता है।

अन्य सांसारिक संबंधों में हर इंसान  पल  प्रतिपल घुटता है, मरता है लेकिन किसी का शिष्य होकर इंसान पल-पल मिटता  नहीं संवारता है, बल्कि बार-बार मिटने में ही वह बनाता है, सच तो यह है इस संबंध में इंसान का पुनर्जन्म होता है। गुरू के सानिध्य में आत्मिक  रूपांतरण द्वारा इंसान को शिष्य के रूप में पुनःजीवन  मिलता है। असली मुक्ति, असली जीवन या दूसरा जन्म का अवसर इंसान को इस संबंध से गुजर कर ही प्राप्त हो सकता है।

यह तो सभी जानते हैं कि शिष्य अपने गुरू से बहुत कुछ सीखता है तथा उसके निर्देशन में स्वयं को निखरता है। परन्तु इसी दीक्षा के दौरान गुरू भी स्वयं को मांझता  रहता है। गुरू न केवल शिष्य की परीक्षाएं लेता है बल्कि स्वयं भी एक मूक, अद्रश्य परीक्षा से गुजरता रहता है। हर गुरू अपने हर शिष्य के साथ नए अनुभवों से गुजरता है और यहीं अनुभव गुरू को और भी ज्ञानी या परम ज्ञानी बनाते हैं। क्योंकि शिष्य के सवालों एवं जिज्ञासाओं को शांत करते-करते गुरू भी और निखरता रहता है। इसलिए जितना एक शिष्य एक अच्छा गुरू पाकर स्वयं को कृतज्ञ महसूस करता है, उतना ही एक गुरू भी एक अच्छा शिष्य पाकर स्वयं को धन्यभागी समझता है।

गुरू यदि अपने ज्ञान एवं अनुभव से गुरू बनाता तो शिष्य अपने समर्पण एवं सीखने के भाव से शिष्य बनता है। गुरू का ज्ञानी होना जरूरी है तो शिष्य का समर्पित होना जरूरी है। गुरू के देने एवं शिष्य के लेने के ढंग पर यह रिश्ता टिकता है। एक तरफ़ा यह संबंध नहीं टिक सकता। दोनों की समान रूप से  प्रतिक्रया बहुत जरूरी है। गुरू चाहे कितना ही ज्ञानी हो यदि शिष्य ही मिटने को राजी नहीं है तो गुरू के ज्ञान का कोई लाभ नहीं। ठीक उसी तरह शिष्य कितना ही सच्चा या समर्पित शिष्य हो यदि गुरू ही नाम का गुरू निकले, ज्ञान का नहीं, तब भी सब व्यर्थ है।

सच्चे गुरू और सच्चे  शिष्य का मिलाप ही इस संबंध की नींव है। बांटना एक कला है तो ग्रहण करना भी के हुनर है। यदि यह प्रमुख है कि गुरू क्या व कैसे बांटता है तो यह भी महत्वपूर्ण है कि शिष्य क्या, कैसे व कितना समझता है? गुरू के उपदेश में दम होना चाहिए तो शिष्य के अनुसरण में भक्ति। ताली दोनों हाथों से बजनी चाहिए ये नहीं कि बातें सुनी, कंठस्थ की और जीवन में नहीं उतारी। गुरू हर एक को शिष्य नहीं बनाता। गुरू पहले परिक्षा लेता है, परखता है तब किसी को अपना शिष्य बनाता है। गुरू अपने ज्ञान एवं गुणों से गुरू बनता है ठीक ऐसे ही शिष्य भी किसी का गुरू मंत्र लेने या किसी आश्रम में नियमित तौर में चक्कर काटने में शिष्य नहीं बनता, उसके स्वयं के सीखने की, झुकने की, मिटने की, नया होने की प्रबल इच्छा व लगन ही उसे सही मायने में शिष्य बनाती है।

आज के गुरू-शिष्य
आज टी.वी. खोलने की देर है आपको तमाम संत, गुरू आदि उपदेश देते दिख जायेंगे। लगता है कि गुरू बनाना, प्रवचन देना एक ट्रेंड सा बन गया है। कोई भगवे कपड़ों की आड़ ले रहा है तो कोई 'पर्सनेलिटी डेवलेपर' के मुखौटे में जनता को बदलने में लगा हुआ है। मजे की बात तो यह है कि गुरू बनने की ही होड़ नहीं लगी हुई शिष्य बनने की भी लोगों में एक अच्छी-खासी दौड़ जारी है।

शिष्य होना जैसे एक फैशन सा हो गया है। लोग भले ही गुरू का अनुसरण करे न करे, लेकिन उनके आसपास इकट्ठे होकर यह जरूर जता देते हैं कि उनसे बड़ा और सच्चा शिष्य कोई और नहीं है। गुरूओं के नाम पर लोग लड़ रहे हैं। एक पंथ दूसरे पंथ को नीचा दिखाने में तुला हुआ है। एक संस्थान दूसरी संस्थान की पोल खोलना चाहती है। हालत तो यह है कि गुरू-शिष्य एक दूसरे पर निर्भर हो गए हैं, दोनों की साझेदारी से ही दोनों की गाडी चलती है, तथा एक दूसरे की सहायता में ही एक दूसरे की भलाई है। शिष्य ज्यादा हैं तो गुरू को लाभ है और गुरू विख्यात है तो शिष्यों की चांदी हैं। संतुष्टि न शिष्य को न गुरू को। शिष्य गुरू होना चाहता है और गुरू भगवान् होना चाहता है। इसलिए न तो गुरू कहीं पहुंचता मालून होता है ना ही शिष्य।   

08 सितंबर 2010

बछेंद्री पाल ( Bachendri pal )


छेंद्री पाल वह शाख्शीयत है जिस ने बहुत ही कम उम्र में पर्वत शिखर एवरेस्ट की ऊंचाई को छुआ। इस ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं  महिला और भारत की पहली महिला के रूप में भारतीयों का सिर ऊंचा किया। उत्तरकाशी  की पैदाइश बछेंद्री पाल पहाड़ों की गोद में पलींबढीं। 1954 में पैदा हुई बछेंद्री बचपन से ही थोड़ी विद्रोही स्वभाव की थीं।

बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की सहपाठियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। यह चढ़ाई उन्होंने किसी योजनाबद्ध तरीके से नहीं की थी। दरअसल, वे स्कूल पिकनिक पर गई हुए थीं। चढ़ाई चढ़ती गईं। लेकिन तब तक शाम हो गई। जब लौटने का खयाला आया तो पता चला की उतरना सम्भव नहीं है। जाहिर है, रातभर ठहरने के लिये उन के पास पूरा इंतजाम नहीं था। बगैर भोजन और टैंट  के उन्होंने खुले आसमान के नीचे रात गुजार दी।

बुलंद हौसला
मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। जो मिला वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और वेतन भी बहुत कम था। इस से बछेंद्री को निराशा हुई और उन्होंने नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट  ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ से बछेंद्री के जीवन को नई राह मिली। 1982  में एडवांस कैम्प के तौर पर उन्होंने गंगोत्री (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दी।

इस बीच  1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। दुनिया में अब तक सिर्फ 4 महिलाऐं एवरेस्ट की चढ़ाई में कामयाब हो पाई थीं।

1984 के इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरूषों को शामिल किया गया था। 1 बजे 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर सागरमाथा (एवरेस्ट) पर भारत का झंडा लहराया गया। इस के साथ एवरेस्ट अपर सफलतापूर्वक कदम रखने वाले वे दुनिया की 5वीं महिला बनीं। केंद्र सरकार ने उन्हें पदमश्री  से सम्मानित किया।

फिलहाल वे जमशेदपुर स्थित टाटा  स्टील एडवेंचर फ़ौंडेशन की ओर से आयोजित एडवेंचर अभियान की प्रमुख हैं। यह कंपनी अभियान न सिर्फ जमशेदपुर में बल्की देश और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आयोजित करती है। रिवर क्रासिंग, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग से ले कर विभिन्न किस्म के अभियानों की वे मुखिया हैं।

07 सितंबर 2010

वास्तुदोष मुक्ति के कुछ सरल उपाय ( Some simple steps to enlightenment Architectural defects )


आपको मालूम होना चाहिए कि मकान के प्रवेश द्वार के सामने कोई रोड, गली या टी जक्शन हो, तो ये गंभीर वास्तुदोष उत्पन्न करते हैं, खासकर उन भवनों में जो दक्षिण व पश्चिम मुखी होते हैं। ऐसा माना जाता है कि ऐसे मकान में निवास करने वाले लोगों को प्रत्येक काम में असफलता ही हाथ लगती है।

वास्तुदोष से मुक्ति के लिए यह उपाय करें :-

- आप अपने मकान के बाहर उस नकारात्मक टी की तरफ मुँह किए 6 इंच का एक अष्टकोण आकार का मिरर लटका दें। ऐसा करने से दक्षिण एवं पश्चिम दिशाओं की टी का सम्पूर्ण वास्तुदोष ठीक हो जाता है।

- आपके मकान में कमरे की खिड़की, दरवाजा या बॉलकनी ऐसी दिशा में खुले, जिस ओर कोई खंडहरनुमा मकान स्थित हो। या वहाँ कोई उजाड़ जमीन या प्लाट पड़ा हो या फिर बरसों से बंद पड़ा मकान हो, श्मशान या कब्रिस्तान स्थित हो, तो यह अत्यंत अशुभ है। ऐसे मकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए किसी शीशे की प्लेट में कुछ छोटे-छोटे फिटकरी के टुकड़े आदि खिड़की या दरवाजे या बालकनी के पास रख दें तथा उन्हें हर महीने नियम से बदलते रहें, तो वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है।

- यदि मकान के किसी कमरे में सोने पर तरह-तरह के भयावह सपने आते रहते हों, इसके कारण आपको रात में नींद नहीं आती हो, बुरे सपने देखने के बाद छोटे बच्चे सो नहीं पाते और रतजगा करने लगते हैं अथवा रोते रहते हैं, इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए कमरे में एक जीरो वॉट का पीले रंग का नाइट लैम्प या बल्ब जलाए रखें। यह उस कमरे में बाहर से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को मार भगाता है।

- कभी-कभी बच्चों को मकान के किसी कमरे में अकेले जाने से डर लगता है, उस कमरे में सोने के नाम से ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं, ऐसे में बेड या पलंग के सिरहाने के पास वाले दोनों किनारों में ताँबे के तार से बने स्प्रिंगनुमा छल्ले डाल दें। ये छल्ले नकारात्मकता को दूर करते हैं। छल्लों को कोने पर डालने से और तेजी से लाभ प्राप्त होगा।

- यदि किसी मकान की छत पर पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर दिशाओं में कमरा, स्टोर या सर्वेन्ट रूम आदि बने हों तथा ये तीनों दिशाएँ दक्षिण-पश्चिम के नैऋत्य कोण से ऊँची बन गई हों, तो ऐसा मकान गृह स्वामी को कभी सुख नहीं देता। गृह स्वामी हमेशा परेशान व दुखी रहता है।

ऐसा गृह स्वामी अपने जीवन में नौकरियाँ बदलते रहता है अथवा व्यापार में भाग्य आजमाते रहता है। इस समस्या से मुक्ति व वास्तुदोष से छुटकारा पाने के लिए मकान के दक्षिण-पश्चिम कोने में छत पर एक पतला-सा लोहे का पाइप एवं उस पर पीली या लाल रंग की झंडी लटका दें। इससे दक्षिण-पश्चिम का कोना सबसे ऊँचा हो जाता है।

इस तरह के छोटे-मोटे कई उपाय करके नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में तब्दील किया जा सकता है।

05 सितंबर 2010

क्या आपकी शादी होने जा रही है? ( What are you getting married? )



दी एक ऐसा बंधन है, जी दो दिलों, दो आत्माओं को एक सूत्र में बांधता है। यह यौन जीवन के शुरूआत की हरी झंडी भी है, जिसका मकसद गृहस्थी व जिम्मेदारियों का संतुलन व विकास लाना होता है। अगर शादी यौन जीवन के शुरुआत की सामजिक व कानूनी स्वीकृति है, तो इसे नजरंदाज करना ठीक नहीं है।

अधिकाश युवक भावी पत्नी को लेकर तरह-तरह के ख्यालों में खोये रहते हैं। उनमें कुछ बातें ऐसी भी होती हैं, जो उन्हें तनाव व दुःख में डुबो देती हैं। जैसे शिशन के आकार, उत्थान, टेढापन, लिंग पर उभरी नसों का होना, वृषण कोष का आकार, वीर्य की मात्रा व पतलापन, सम्भोग क्षमता, समय, स्त्री जननांगो के बारे में अज्ञानता, सेक्स तकनीक, शीघ्र स्खलन आदि के बारे में सोच-सोचकर वे दुःख में घिर जाते हैं। सौ में से साठ  प्रतिशत मामलों में युवक हस्तमैथुन से उपजी काल्पनिक नपुंसकता को लेकर चिंतित रहते हैं।

इसी प्रकार युवतियों में शादी से पूर्व प्रथम शारीरिक संबंध के दौरान होने वाले दर्द रक्तस्त्राव के बारे में चिंता रहती है। कुछ युवतियों में इस बात का भय रहता है की प्रथम शारीरिक संबंध के दौरान काफी दर्द होगा, खून बहेगा.... आदि। इस चिंता के कारण कुछ लड़कियां यौन संबंध के दौरान असहज हो जाती हैं। परिणाम स्वरुप यौन संबंधों में मिलने वाले आनंद के स्थान पर संबंध बनाने में ही दिक्कत आती है। संभावित दर्द व रक्त स्त्राव की कल्पना मात्र से ही लड़की अपने आपको तथा योनि द्वार को इतना कस लेती हैं की संभोग हो पाना ही कठिन हो जाता है।

युवक-युवतियों में ऐसी स्थिति को दूर करने के लिये उन्हें उचित ज्ञान-विज्ञान व तकनीकी को समझाए जाने की जरूरत है। साथ ही उनकी इस धारणा को बदलने की जरूरत है, जो उनमें भय व अंधविश्वास की जड़ है। यहाँ संक्षेप में शादी से पूर्व और शादी के बाद की स्थितियों पर गौर करते हुए कुछ आवश्यक बातों पर प्रकाश डाल रहे हैं, ताकि लड़के-लडकियां इसे आत्मसात करके सहजता से नए यौन-जीवन का सुखद शुभारम्भ कर सकें-

पत्नी के साथ संभोग के लिये मन में उत्साह, शारीरिक सक्रियता, आत्मबल, आत्मविश्वास व आत्मा नियंत्रण आवश्यक है। बाकी बातें गूढ़ हैं, जैसे की शिशन छोटा, टेढा होना, शीघ्र स्खलन आदि। हाँ, पुरूष को स्त्री जननांगों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। उसी प्रकार से दुल्हन को यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए की प्रथम सहवास के समय जो हल्का-सा दर्द होता है, वह संभोग में मिलने वाले आनंद के मुकाबले में कहीं नहीं ठहरता। दर्द सिर्फ क्षण भर के लिये होता है, फिर गायब हो जाता है। यह कोई ऐसा दर्द नहीं की दुल्हन बेहोश हो जाए।

प्रथम सहवास के दौरान कौमार्य झिल्ली फटती है और रक्तस्त्राव होता है। लेकिन वह मामूली-सा। योनीद्वार पर एक पतली झिल्ली होती है, जिसे हाईमन कहते हैं। योनिद्वार इससे ढका होता है। युवक-युवतियों को यह जान लेना चाहिए की झिल्ली की उपस्थिति का कौमार्य से कोई सीधा संबंध नहीं है। स्कूल-काँलेज में होने वाले खेल-कूद, साइकिल चलाने, दौड़ने आदि के दौरान यह झिल्ली फट सकती है। अतः झिल्ली का फटना कौमार्य नष्ट होना हरगिज नहीं माना जाता चाहिए।

दूल्हा-दुल्हन को प्रथम सहवास के दौरान कमरे में अन्धेरा नहीं रखना चाहिए। अन्धकारक के दौरान दोनों को शारीरिक संरचना (जननांगों के बारे में) का ज्ञान नहीं हो पाता। उसके अलावा अन्धकार के कारण स्त्री-पुरूष को एक-दूसरे से मिलने वाली उत्तेजना तथा आकर्षण का लाभ नहीं मिल पाता।

सुहागरात को कक्ष में प्रवेश करने से पूर्व पुरूष अपने मन में यह संकल्प करके न जाए की उसे हर हाल में दुल्हन के साथ यौन संबंध कायम करना है। यह जरूरी नहीं है की पहली रात में ही यौन संबंध स्थापित किया जाए। यह सब पति-पत्नी की सहमति, इच्छा, वातावरण आदि पर निर्भर करता है। दुल्हन का स्वभाव होता है की वह पहले प्यार चाहती है, फिर सेक्स। पुरूष को उसकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

सुहागरात को पति हो या पत्नी, दोनों में से किसी को भी अपने पूर्व संबंधों (अगर भूलवश ऐसा हो) के बारे में चर्चा नहीं करनी चाहिए। विवाहित संबंध परस्पर विश्वास व सहयोग के तालमेल पर टिके होते हैं। इस विश्वास को पहली रात में ही तोड़ने की चेष्टा न करें।

यौन संबंध स्थापित करने से पूर्व पुरूष दुल्हन का मूड देखकर उसे इसके लिये तैयार करे। चूंकि स्त्रियाँ स्वभाव से ही लज्जाशील व संकोची होती हैं, अतः वह जल्दी तैयार नहीं होती। इसके लिये पुरूष को ही पहल करने की जरूरत पड़ती है। पति, स्त्री से प्यार करे, उसे हौले से आलिंगन में ले, स्त्री के बालों को सहलाए, उसे चूमे, स्त्री का सिर अपनी गोदी में रखकर उसकी आँखों के समक्ष एक रोमांटिक सीन तैयार करे, शेरो-शायरी करे, साथ ही स्त्री के अंगों पर हाथ फेरता रहे। कुछ देर के प्रयास में स्त्री का मूड बनने लगेगा। इसके बाद प्यार व फोर प्ले शुरू कर देना चाहिए। हालांकि पहली रात में युवक इतने बेसब्र होते हैं की वे जल्द से जल्द दुल्हन का जिस्म पा लेना चाहते हैं। वे खुद पर ज्यादा देर तक नियंत्रण में नहीं रख सकते। पर उन्हें याद रखना चाहिए की फर्स्ट इम्प्रेसन का प्रभाव ताउम्र बना रहता है। पत्नी का दिल जीतने और सफल संभोग के लिये थोड़ा धैर्य, थोड़ी समझदारी  आवश्यक है।

जब लगे की स्त्री काम विहल्ल होती जा रही है, जैसे की स्त्री आँख मूंदने लगे। चुम्बनों का आदा-प्रदान करने लगे, अपनी टाँगे पुरूष की टांगों पर फेंकने की चेष्टाएं समेत उसके शारीरिक गतिविधियों में यौन बदलाव आते ही पुरूष को संभोग का कार्य शुरू कर देना चाहिए। संभोग में सहज आसनों का प्रयोग करना चाहिए अथवा दोनों की सहमति होने पर ही आगे बढना चाहिए

जिस प्रकार पुरूष को स्त्री जननांगों का ज्ञान होना चाहिए आवश्य है, उसी तरह स्त्री को भी पुरूष के जननांगों के बारे में जानकारे होना जरूरी है। उत्तेजित अवस्था में लिंग मोटा व लंबा हो जाता है। इससे घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि योनि की दीवारें लचीली होती हैं। वह आसानी से प्रवेश के समय फ़ैल जाती हैं। इसलिए लिंग प्रवेश को लेकर मन में किसी तरह की कोई चिंता न पालें पति का सहयोग करें, लज्जाशील अवश्य रहें, मगर इतना भी नहीं की पति को आगे बढ़ने में परेशानी हो। संभोग के लिये तत्पर होने पर शरीर को ढीला छोड़ दें।

संभोग के बाद पति-पत्नी को तुरंत एक दूसरे  से अलग नहीं हो जाना चाहिए। चूंकि यह पहली रात होती है, अतः संभोग के बाद प्यार व वार्तालाप करें, घर-गृहस्थी की चर्चा कर सकते हैं, अनुशासन व पारिवारिक सामंजस्य पर बातें करें। बीच-बीच में चुम्बन-आलिंगन करते रहें। पत्नी को ऐसे लगेगा की वह अजनबियों के बीच में नहीं है तथा उसका पति उसके दिल में रहता है।

अतः यदि आपका विवाह होने जा रहा है, और आप सुखी दाम्पत्य जीवन जीना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम अपनी गलतफहमियों व शंकाओं का समाधान करें, अच्छी यौन विज्ञान की पुस्तक पढ़ें अथवा किसी कुशल सेक्स विशेषज्ञ से परामार्श करें। अभी से ही आने वाले कल की तैयारे में जुट जाएं।

आत्मविश्वास है तो सफलता है ( Confidence will make Success )


ले ही आपके पास कितने ही डिग्रीयां एवं योग्यताएं हों यदि आपमें आत्मविश्वास नहीं है तो सब बेकार है। आत्मविश्वास आपका जीवन ही नहीं बनाता बल्कि आपके व्यक्तित्व को दुगना बल भी देता है। कुछ लोगों में आत्मविश्वास की कमी बचपन से ही होती है, तो कुछ में समय के बदलते फेर तथा जिन्दगी के खट्टे अनुभवों के कारण हो जाती है। इसलिए आत्मविश्वास जगाने के लिये जरूरी है कुछ बातें।

सकारात्मक सोच और आशावादी दृष्टिकोण
आत्मविश्वास जगाने के लिये सबसे जरूरी है सकारात्मक सोच एवं आशावादी दृष्टिकोण जो आपको आपके आस-पास के वातावरण से मिलता है इसलिए हमेशा ऐसे लोगों के संपर्क में रहें जिनके साथ कुछ सीखने को मिलता हो। अच्छी पुस्तकें पढ़ें तथा उन पुस्तकों की महत्वपूर्ण सीख, उर्जावान एवं प्रेरणादायक पंक्तियों आदि को काटकर या लिखकर, ऐसी जगह लगाएं जहाँ बार-बार आपकी नजर जाए। साथ ही अच्छा एवं सकारात्मक संगीत सुने।
खुद में आत्मविश्वास जगाने के लिये जरूरी है हमारी सोच सही हो और सही सोच वही होती है जो सकारात्मक होती है। भले ही हम कैसे भी हालातों में हो, लेकिन हमें घबराना नहीं चाहिए, एक उम्मीद, एक भरोसा रखना चाहिए। इस बात की आशा रखनी चाहिय की आज नहीं तो कल सब ठीक  हो ही जाएगा। क्योंकि अगर हम ऐसा नहीं सोचेंगे तो सदा भयभीत रहेंगे। हममें आगे चलने या बढ़ने की हिम्मत नहीं रहेगी, जिससे हमारा मनोबल घटेगा, विश्वास कमजोर होगा और हमारे आत्मविश्वास में कमी आएगी।

बोलने की कला सीखें 
बोली का हमारी व्यक्तित्व पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। किसी को आकर्षित करने के लिये हमारी बातें, बातों का ढंग बहुत मायने रखता है। इससे न केवल हम लोगों का दिल जीतते हैं बल्कि अपने भीतर एक आत्मविश्वास को भी पातें हैं। यदि भीड़ से भय लगता है तो शीशे के सामने खुद से बातें करें, झिझक  खोलें आत्मविश्वास जगाएं। सही समय पर हाँ-ना कहना सीखें ताकि बाद में पछताना न पड़े। बोल-चाल एवं वातावरण में कमी एक कारण है जिसकी वजह से हम बोलने तथा औरों के सामने अपने विचार या भाव व्यक्त करने से शर्माते या घबराते हैं, जिसकी वजह से आत्मविश्वास का स्तर और नीचा होने लगता है। इसके लिये आपको चाहिए की आप जिस विषय पर बोलना चाहते हैं उस विषय से सम्बंधित जानकारी एवं सामग्री का पूरा ज्ञान रखें। खूब पढ़ें, अपना सामान्य ज्ञान बढाएं। भाषा, व्याकरण एवं बोलने के ढंग पर गौर करें तथा  दूसरों को सुनें, एक अच्छा श्रोता बनें फिर स्वयं बोलने की कोशिश करें और व्यवहार में अपनाएं।

बन-ठन के रहें
हमारा आत्मविश्वास हमारे ओढने-पहनने, सजने-संवारने से भी बनता है। यदि हम इच्छानुसार स्वयं को अच्छे ढंग से रखते हैं तो खुद-ब-खुद अंदर से एक ताजगी महसूस करते हैं। हमें लोगों के सामने से न केवल गुजरने का मन करता है बल्कि उनके समक्ष खड़े होने का हौंसला भी मिलता है। हम खुद को खुद से बेहतर और औरों से अलग पाते हैं। खुद को अच्छा प्रस्तुत कर सकते हैं।

भले ही हमारा रंग-रूप, कद-काठी हमारे हाथ में नहीं हैं परन्तु शरीर का रख-रखाव एवं-श्रृंगार तो हमारे हाथ में हैं जिससे हम  अपने शरीर एवं चेहरे को सुन्दर एवं आकर्षक बना सकते हैं तथा सौंदर्य सम्बंधित आत्मग्लानि से उबार सकते हैं। इसलिए समय के साथ-साथ बदलते फैशन तथा ट्रेंड के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयत्न करें। यदि कोई शारीरिक अक्षमता है तो कास्मेटिक सर्जरी का सहारा लें। शारीरिक स्वच्छता का ख़याल रखें। सुगन्धित  परफ्यूम आदि का प्रयोग करें। भले ही आपके पास कुछ जोड़ी कपड़ें ही क्यों न हों पर जब भी पहने तो ध्यान रखें की वह धुले एवं स्त्री किये हुए हों। हो सके तो ब्रांड वाली वस्तुओं का उपयोग करें इससे आप अपने भीतर आत्मविश्वास को पनपता हुआ पाएंगे तथा स्वयं को भीड़ से जोड़ सकेंगे।

अपना हुनर पहचानें
कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं होता, इसलिए अपने भीतर छुपी अच्छाइयों को उजागर करें। हाँ अपनी कमियों एवं गलतियों में सुधार व संशोधन अवश्य करें लेकिन उन कमियों व गलतियों को अपने जीवन का केंद्र बिंदु न बनने दें।
हर इंसान  में कोई न कोई हुनर अवश्य होता है, यदि इंसान अपने उस छिपे हुए को खोज ले तो उसे जीने में आनंद आने लगता  है। उस हुनर के जरिये वह लोगों के दिलों एवं समाज में जगह बना सकता है, इसलिए स्वयं के गुणों को खोजें। जो आपके पास है, जो आपको मिला हुआ है यदि आप इस पर नजर रखेंगे तो ही संतुष्ट को पायेंगे और यही संतुष्टि आपके आत्मविश्वास में कारगर सिद्ध होगी।

अच्छे दिन व उपलब्धियों को याद करें
समय कभी एक-सा नहीं रहता। याद करें उन दिनों को जब आप बहुत खुश और संतुष्ट थे। सोचिये क्या थे खुशी के कारण?, कैसी और क्यों थी आपकी मनःस्थिति और सोच? क्या नकारात्मक था आपमें? कैसे प्राप्त किया था मैंने उस स्थिति को? आदि। वही शक्ति, वही विश्वास को फिर पैदा करें। यह भी सोचें जब अच्छे दिन हमेशा नहीं रहे तो बुरे दिन भी हमेशा नहीं रहेंगे।

बीते समय में यदि आपकी कुछ उपलब्धियां है तो उन पर नजर जरूर डालें समय-समय पर उन पुरस्कारों, इनामों आदि का ध्यान करें। सकारात्मक ऊर्जा को बनाएं एवं खोई हुई ऊर्जा तथा आत्मविश्वास को पुनः जाग्रत करें।


अच्छी  संगत अपनाएं
कहते हैं जैसी सांगत वैसी रंगत। हम जैसे लोगों के संपर्क में आते हैं वैसे ही लोगों की तरह हो  जाते हैं। यदि हमारे आसपास सकारात्मक, उर्जावान, आत्मविश्वासी व्यक्ति होंगे तो हम भी उनके जैसा बनने का प्रयास करें। क्योंकि सामने वाले से हमें सदा प्रेरणा मिलती रहेगी। हमारे अंदर उत्साह जगाता रहेगा इसलिए वरिष्ठ एवं अनुभवी लोगों के साथ बैठें, उनके विचारों को सुनें तथा उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें।

किस तरह उन्होंने जीवन में संघर्ष किया व मुसीबतों का सामना किया, उन बातों से सबक लें। जिस तरह उनके बुरे दिन हमेशा नहीं रहे, उसी तरह आपके भी बुरे दिन हमेशा नहीं रहेंगे इस बात को समझ लें और अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाकर, आत्मविश्वास द्वारा भविष्य को और उज्जवल बनाएं।

बाँडी लैंग्वेज सुधारें
आत्मिश्वास को जगाने में हमारी बाँडी लैंग्वेज का भी बहुत योगदान होता है। हम कैसे उठते-बैठते हैं। चलते-फिरते हैं, खड़े होते हैं आदि सब हमारे अंदर आत्मविश्वास को दर्शाती हैं इसलिए जब भी बैठें सीधे बैठें, कन्धों को नीचा या आगे की ओर झुकाकर नहीं बैठें। सीना सीधा रखें, पूरी कुर्सी पर बैठें, गर्दन को सीधा रखें, नजर चुराकर नहीं नजर मिलाकर बात करें। सीधा, तानकर, तेज गति से चलें।

चलने में या भीड़ का सामना करने में आपको घबराहट होती है तो अपने दोनों हाथों को खाली न रखें, पैन, डायरी, रजिस्टर, रूमाल या मोबाइल आदि को हाथ में रखें फिर देखें आपके अंदर स्वतः ही विश्वास पैदा होने लगेगा।


कार्य को पूरा करें
पूरा कार्य हमें आत्मविश्वास देता है तथा आधे-अधूरे कार्य हमें निराशा देते हैं और यदि ऐसा लगातार होता रहता है की हमारे सारे या अधिकतर कार्य अधूरे रह जाते हैं तो हमारी यह सोच बन जाती है की 'मुझसे कोई काम पूरा नहीं होता, मैं कुछ नहीं कर सकता।' एक बार यदि हमारे खुद के प्रति यह धारणा बन जाती है तो हमारा स्वयं के प्रति विश्वास भी लडखडाने लगता है। हम स्वयं को कमजोर और हारा हुआ समझते हैं। आगे के लिये भी हमारी सोच नकारात्मक होने लगती है और हमारा पूरा नजरिया एवं व्यक्तित्व नकारात्मक होने लगता है। इसलिए किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले उसको अच्छी तरह से समझ लें। अपनी क्षमताओं को ठीक से तौल लें। फिर किसी कार्य को हाथ में लें। और यदि कार्य को किसी परिस्थितिवश, चाहे अनचाहे जिम्मेदारी में लेना पड  गया है तो उसे बोझ या सिरदर्दी न समझें। सोचें, जब यह कार्य आपको ही करना हो तो जी क्यों जलाना? खुशी खुशी स्वीकार करें।

कुछ अलग करके देखें
एक तरह  का कार्य न केवल हमें बोरियत देता है बल्कि हमारी काबीलियत एवं क्षमताओं को भी कम करता है, जिससे हमारा आत्मविश्वास कम होने लगता है। इसलिए कुछ नया, कुछ अलग करने की कोशिश जरूर करें जिसको सोचकर ही आप में जोश और स्फूर्ति आ जाए, आपके मष्तिस्क में विचार आने लगे। चुनौतियां आपको कुछ अलग करने के लिये उकसाती रहें। ऐसा करके आपको अपने भीतर छिपे हुनर एवं क्षमताओं का पता चलेगा। आपको एहसास होगा की आपकी शक्ति आपके विचार, आपकी क्षमताएं फैलने व मजबूत होने लगी हैं। आपके अनुभव आपको और भी दक्ष व कुशल बना रहे हैं, जिससे आत्मविश्वास का स्तर बढ़ने लगा है।

अपनी क्षमताओं को बढाएं
जीवन विस्तार और फैलाव का नाम है, इसलिए जीवन को एक यात्रा कहते हैं क्योंकि इसी यात्रा में हम न केवल दूरी तय करते हैं बल्कि हमारा विकास भी होता है, इसलिए जो भी हमें जन्म के साथ मिला उसको बढाना चाहिए, उसमें वृद्धि होनी चाहिए, तभी हममे आत्मविश्वास जागेगा।

इंसान को चाहिए कि अपनी क्षमताएँ बढाए फिर वह धैर्य  हो या किसी को माफ़ करना, सुनना हो या सहना, सबको विस्तार दें अपनी सोच को सीमित न रखें, परम्पराओं और अंधविश्वास में बंधकर न रहें।


खुद का सम्मान करें
अधिकतर लोग स्वयं को कम ही आंकते हैं, जितना हमें सामने वाला अच्छा व प्रिय लगता है उतना हम खुद को पसंद नहीं कर पाते। हम दूसरे को तो प्यार करते हैं पर स्वयं को नकार देते हैं। हमें लगता है खुद को तवज्जो देना, खुद की तारीफ़ करना या खुद के बारे में सोचना या प्राथमिकता देना गलत है। ऐसा करना अहंकार के लक्षण हैं इसलिए जितना सम्मान हम सामने वाले को या उसके विचारों को देते हैं, उतना खुद को नहीं देते। सामने वाले को सम्मान  देना गलत नहीं लेकिन स्वयं को नजरअंदाज करना, स्वयं के प्रति हीनता या ग्लानी का भाव रखना गलत है। ऐसी सोच हमें  हमारे प्रति सही नहीं सोचने देती। हम खुद को प्यार नहीं कर पाते जिसके कारण हम चिडचिड़े व अतृप्त  रहने लगते हैं, यही स्थिति व सोच हमारे तनाव के स्तर को बड़ा कर आत्मविश्वास के स्तर को घटा देती है। यह स्तर इतना घाट जाता है कि हम स्वयं को ठीक से प्रस्तुत  भी  नहीं कर पाते। इसलिए स्वयं की भी क़द्र करें, खुद को भी प्यार करें, अपने जीवन, भावनाओं एवं जरूरतों का भी सम्मान करें।




भय को भगाएं
जहाँ भय है  वहां आत्मविश्वास नहीं हो सकता। भय के चलते ही हमारा आत्मविश्वास लडखडाने लगता है और हमारा पूरा व्यक्तित्व प्रभावित होता है। इसलिए कलम और कागज़ लें और उन पर एक-एक करके अपने भय लिखें, जैसे- मंच पर बोले से भय, नए लोगों के सामने जाने से भय, लोग क्या कहेंगे इस बात का भय, आदि। उस भय पर विचार करें और किसी एक पर विजय पाना चालू करें। पूरी योजना सहित प्रयास करें, फिर दूसरे को चुने। ऐसे एक-एक करके अपने मन से भय को निकालें, फिर वह भय स्कूटर चलाने या अँग्रेजी बोलने का ही क्यों न हो। आप पायेंगे कि आपका भय जाने लगा है और आत्मविश्वास आने लगा है। साथ ही जिन चीजों से आपको भय लगता है उससे बचने के बजाय उन्हें बार-बार करें। ऐसा करके भय भागेगा और आत्मविश्वास आयेगा।

किसी एक कार्य में प्रवीण बनें
सर्वगुण संपन्न कोई नहीं होता। इन्सान चाहे भी तो न तो सारे काम कर सकता है न ही सभी का दिल जीत सकता है। आत्मविश्वास के लिये यह जरूरी नहीं कि आप हर चीज या क्षेत्र में उत्तीर्ण होंगे, तभी वह जागेगा। हम अपनी ऐसी पहचान बनाने में जुटेंगे तो एक भी पहचान नहीं बन पायेगी। नाम बनाने की बजाय बिगड़ और जायेगा।

इसलिए किसी एक कार्य को चुनें। उसी में अपनी कुशलता या दक्षता दिखलाएं। उसे ही अपने नाम एवं आत्मविश्वास की सीढी  बनाएं। कोई भी एक कार्य ही हमारे अंदर आत्मविश्वास जगाने और बढाने के लिये काफी है।


लक्ष्य निर्धारित करें
बिना लक्ष्य के जीना यानी वक्त, ऊर्जा और धन को व्यर्थ गंवाना है। इससे न केवल इन तीनों का नुक्सान होता है बल्कि हम स्वयं को औरों से पीछे और हारे हुए पाते हैं। बिना उद्देश के, नियम के जिन्दगी खाली एवं बोझिल लगने लगती है जो आत्मविश्वास को खोखला कर देती है। इसलिए अपनी दिनचर्या को नियमबद्ध  करें। अधिक से अधिक समय क सदुपयोग करें। कुछ भी करें तुरंत उसे करने के पीछे  अपने लक्ष्य व उद्देश को जरूर निर्धारित करें। जिन विषयों में आपकी रुचि हो उनसे सम्बंधित अनुभवी लोगों से बातचीत करें और अपने जानकारी के दायरे को विस्तार प्रदान करें। हो सके तो अपना कोई रोल माँडल  जरूर चुनें व बनाएं, जो आपको समय-समय पर ऊर्जावान  बनाने के साथ-साथ मार्गदर्शन भी प्रदान करें।

मनोरंजन को जीवन में शामिल करें
जीवन में कुछ बनने के लिये अपना लक्ष्य जरूर बनाएं परन्तु उस लक्ष्य को पाने के लिये स्वयं को जरूरत से ज्यादा भी न उलझाएँ। ऐसा न हो कि आपका सामजिक व निजी जीवन से तारतम्य टूट जाए, जो कि बेहत जरूरी है। लक्ष्य प्राप्ति के साथ-साथ अपना कुछ समय मनोरंजन के लिये भी निकालें। मन एवं विचारों को अपने भीतर कैद न होने दें बल्कि उसका उपयोग करें। जीवन को जरूरत से ज्यादा संजीदगी से भी न लें। लोगों से मिलें, घूमने जाएं, मन की  रूचियों को पूरा करें, अपने अंदर का बच्चा तलाशें, उसके जैसे हो जाएं। जीवन को तनाव के साथ नहीं मस्ती के साथ जीयें। जरूरत से जयादा औपचारिकताओं, नियमों, सिद्धान्तों  आदि में न बंधें। खुद को स्वतंत्र रखें। जीवन का आनंद लें, इस बात से स्वयं को आश्वत रखें कि आप कुछ अपने लिये भी करते हैं। आपके जीने का भी कोई मतलब है। जब आपको लगेगा कि आपका जीवन आपका है तो आपको संतुष्टि होगी, जिससे भीतर आत्मविश्वास का जन्म होगा।

ध्यान और योग का सहारा लें
आत्मविश्वास को जगाने, बढ़ने व बनाए रखने में ध्यान और योग का बड़ा हाथ है। इससे न केवल आत्मविश्वास का बल्कि पूरे व्यक्तित्व का विकास होता है। इंसान इन्द्रियों और मन से मिलकर बना है यदि यह दोनों ही बस में हो जाएं तो आत्मविश्वास क्या आत्मरूपांतरण तक हो सकता है। ध्यान और योग से मन शांत और एकाग्रचित होता है। जीवन में संतुष्टि का पर्दापर्ण होता है। तब हमें न केवल अपनी कमियाँ नजर आती हैं, बल्कि इन कमियों को दूर करने की शक्तियां भी मिलने लगती है। भय साहस में बदलने लगता है, भटकाव स्थिरता में बदलने लगता है। ध्यान एवं योग को दिनचर्या में नियमित शामिल करें और आत्मविश्वास को पैदा करें।